Last Updated:November 05, 2025, 07:40 IST
Women Welfare Schemes: कर्नाटक की गृह लक्ष्मी योजना, मध्य प्रदेश की लाड़ली बहना, महाराष्ट्र की लाडकी बहिन योजना और बिहार की मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना जैसी योजनाओं ने राजनीतिक और सामाजिक दोनों स्तरों पर बड़ा असर डाला है. इन योजनाओं के जरिये राज्य सरकारें महिलाओं तक सीधी आर्थिक मदद पहुंचा रही हैं, जिससे एक तरफ़ महिला मतदाताओं में सीधा जुड़ाव बढ़ा है, तो दूसरी ओर सरकारी खजाने पर बोझ भी बढ़ा है.
तमाम राजनीतिक दल महिला वोट बैंक को रिझाने के लिए पैसे बांटने में जुटे हैं.देश के राज्यों में महिलाओं को डायरेक्ट कैश ट्रांसफर (Direct Cash Transfer) देना अब नई राजनीतिक और सामाजिक नीति का हिस्सा बन गया है. टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर में पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च की एक हालिया रिपोर्ट के हवाले से बताया गया कि अब 12 राज्य ऐसी योजनाएं चला रहे हैं, जबकि 2022-23 में यह संख्या सिर्फ दो थी. के अनुसार, इन योजनाओं पर इस वर्ष कुल 1.68 लाख करोड़ रुपये यानी देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का लगभग 0.5% खर्च होने का अनुमान है. दो साल पहले यह आंकड़ा 0.2% से भी कम था.
कर्नाटक की गृह लक्ष्मी योजना, मध्य प्रदेश की लाड़ली बहना, महाराष्ट्र की लाडकी बहिन योजना और बिहार की मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना जैसी योजनाओं ने राजनीतिक और सामाजिक दोनों स्तरों पर बड़ा असर डाला है. इन योजनाओं के जरिये राज्य सरकारें महिलाओं तक सीधी आर्थिक मदद पहुंचा रही हैं, जिससे एक तरफ़ महिला मतदाताओं में सीधा जुड़ाव बढ़ा है, तो दूसरी ओर राजकोषीय बोझ भी बढ़ा है.
रिपोर्ट के अनुसार, आने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए असम और पश्चिम बंगाल ने भी अपने-अपने बजट में इन योजनाओं के लिए बड़े पैमाने पर आवंटन बढ़ाया है. असम ने पिछले वित्त वर्ष के संशोधित अनुमान के मुकाबले इस वर्ष 31% अधिक राशि रखी है. पश्चिम बंगाल में यह बढ़ोतरी 15% रही है. इसी तरह झारखंड ने भी अक्टूबर 2024 में अपनी मुख्यमंत्री मइयां सम्मान योजना के तहत मासिक भुगतान 1,000 से बढ़ाकर 2,500 रुपये कर दिया.
सरकारी खजाने पर बोझ, कई राज्यों में राजस्व घाटा
रिपोर्ट बताती है कि 12 राज्यों में लागू इन बिना शर्त नकद हस्तांतरण योजनाओं (Unconditional Cash Transfers) से आधे राज्यों के राजस्व संतुलन पर गहरा असर पड़ा है. उदाहरण के लिए, कर्नाटक का राजस्व अधिशेष 0.3% से घटकर घाटा 0.6% तक जा सकता है. मध्य प्रदेश का राजस्व अधिशेष 1.1% से घटकर 0.4% रह जाएगा.
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने पहले ही राज्यों को सब्सिडी, कर्जमाफी और नकद सहायता पर बढ़ते खर्च को लेकर आगाह किया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि इन योजनाओं के खर्च को राजस्व संतुलन से अलग किया जाए, तो राज्यों की वित्तीय स्थिति में सुधार दिखाई देता है… यानी इन योजनाओं का सीधा असर वित्तीय अनुशासन पर पड़ रहा है.
राजनीतिक लाभ बनाम आर्थिक चुनौती
राजनीतिक रूप से ये योजनाएं बेहद प्रभावी साबित हो रही हैं. महिलाओं को हर महीने नकद सहायता मिलना राज्य सरकारों के लिए तुरंत जनसंपर्क और वोटर कनेक्ट का साधन बन गया है. रिपोर्ट बताती है कि कई जगहों पर लाभार्थी महिलाओं की संख्या लाखों में पहुंच चुकी है, जिससे चुनावी रणनीति पर भी असर पड़ा है. हालांकि, वित्तीय दबाव के कारण कुछ राज्यों को अपने वादे घटाने पड़े हैं.
महाराष्ट्र ने अप्रैल 2024 में अपनी मुख्यमंत्री लाडकी बहिन योजना के तहत मिलने वाली राशि 1,500 रुपये से घटाकर 500 रुपये कर दी, खासतौर पर उन महिलाओं के लिए जो पहले से ही किसानों की नकद सहायता योजना के तहत 1,000 रुपये पा रही थीं.
कैसे शुरू हुआ यह ट्रेंड
महिलाओं को सीधे नकद देने का यह सिलसिला ओडिशा में किसानों के लिए शुरू की गई नकद सहायता योजना से प्रेरित बताया जाता है. बाद में इसे महिलाओं के सशक्तिकरण के साथ जोड़ा गया और अब यह लगभग सभी राजनीतिक दलों की नीतियों का अभिन्न हिस्सा बन चुका है.
विश्लेषकों का मानना है कि आने वाले चुनावों में महिलाओं के लिए ऐसी नकद योजनाएं राज्यों के घोषणापत्रों का अहम हिस्सा बनेंगी. हालांकि, सवाल यह भी उठता है कि क्या राज्यों के सीमित संसाधन इस तरह के भारी खर्च को लंबे समय तक वहन कर पाएंगे, या फिर राजनीतिक लाभ के लिए उठाया गया यह कदम भविष्य में आर्थिक बोझ साबित होगा.
An accomplished digital Journalist with more than 13 years of experience in Journalism. Done Post Graduate in Journalism from Indian Institute of Mass Comunication, Delhi. After Working with PTI, NDTV and Aaj T...और पढ़ें
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Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
November 05, 2025, 07:31 IST

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