Last Updated:December 13, 2025, 05:56 IST
SC on UAPA Bail: सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस हादसे में यूएपीए के तहत गिरफ्तार आरोपी की जमानत याचिका खारिज की. इस हादसे में 148 लोगों की मौत हुई थी और 170 से अधिक यात्री घायल हुए थे. आरोपी ने बताया कि वह 12 साल से जेल में बंद है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों में व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर अपवाद लागू होते हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों में जमानत को लेकर एक बेहद अहम टिप्पणी की है. (फाइल फोटो)सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों में जमानत को लेकर एक बेहद अहम टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा है कि आरोपी के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार महत्वपूर्ण है, लेकिन यही आधार यूएपीए (UAPA) जैसे गंभीर मामलों में जमानत देने के लिए पर्याप्त नहीं हो सकता. अदालत ने साफ किया कि जब मामला देश की संप्रभुता, अखंडता और राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने वाला हो, तो व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर ‘उचित अपवाद’ लागू होते हैं.
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजय करोल और जस्टिस एनके सिंह की बेंच ने सीबीआई की उस याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें कलकत्ता हाईकोर्ट की तरफ से दिए गए जमानत आदेश को चुनौती दी गई थी. यह मामला 9 जून 2010 को ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस के पटरी से उतरने और मालगाड़ी से टकराने से जुड़ा है, जिसमें 148 लोगों की मौत हुई थी और 170 से अधिक यात्री घायल हुए थे.
राष्ट्रीय हित सर्वोपरि
जस्टिस संजय करोल ने फैसले में कहा, ‘व्यक्तिगत स्वतंत्रता निरपेक्ष नहीं है. यह राष्ट्रीय हित, देश की संप्रभुता और अखंडता जैसे सर्वोच्च सरोकारों के अधीन है.’ अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच संतुलन बनाना जरूरी है.
पीठ ने कहा कि कुछ मामले अपनी प्रकृति और प्रभाव के कारण व्यापक दृष्टिकोण की मांग करते हैं और यह मामला सीधे तौर पर राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा है.
‘बर्बर कृत्य माफ नहीं किए जा सकते’
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हर नागरिक को सरकार की नीतियों के खिलाफ कानून के दायरे में रहकर विरोध करने का संवैधानिक अधिकार है, लेकिन ‘रेल पटरियों को नुकसान पहुंचाकर ट्रेन हादसा कराना, जिसमें करीब 150 निर्दोष नागरिकों की जान गई, एक बर्बर कृत्य है और इसे किसी भी आधार पर सही नहीं ठहराया जा सकता.’
अदालत ने यह भी नोट किया कि यह साजिश माओवादी कैडरों ने रची थी, जिसका मकसद झारग्राम में माओवादियों के खिलाफ तैनात सुरक्षा बलों को हटाने के लिए सरकार पर दबाव बनाना था. इस घटना में सरकारी संपत्ति को करीब 25 करोड़ रुपये का नुकसान भी हुआ था.
12 साल की कैद के बावजूद जमानत से इनकार
वहीं आरोपियों की तरफ से यह दलील दी गई थी कि वे 12 साल से अधिक समय से जेल में हैं, इसलिए उन्हें धारा 436A के तहत जमानत मिलनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि ‘आतंकी गतिविधियों जैसे अपराधों में अधिकतम सजा मृत्यु दंड भी हो सकती है. ऐसे में 12 साल की हिरासत को जमानत का आधार नहीं बनाया जा सकता.’
अदालत ने यूएपीए के तहत आरोपी पर लगाए गए ‘रिवर्स बर्डन ऑफ प्रूफ’ यानी उल्टे सबूत के भार का भी जिक्र किया. कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट की यह जिम्मेदारी है कि आरोपियों को उनके खिलाफ इस्तेमाल किए गए सभी दस्तावेज उपलब्ध कराए जाएं, ताकि वे अपनी बेगुनाही साबित कर सकें. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने 15 साल से अधिक पुराने इस मामले में शीघ्र सुनवाई पूरी करने के निर्देश भी दिए.
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An accomplished digital Journalist with more than 13 years of experience in Journalism. Done Post Graduate in Journalism from Indian Institute of Mass Comunication, Delhi. After Working with PTI, NDTV and Aaj T...और पढ़ें
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New Delhi,Delhi
First Published :
December 13, 2025, 05:56 IST

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