Last Updated:December 13, 2025, 11:59 IST
राजनीति में उत्तराधिकार का सवाल नया नहीं है और अब यही सवाल बिहार की राजनीति में एक बार फिर गूंज रहा है. नीतीश कुमार के बाद जेडीयू और सरकार का नेतृत्व कौन करेगा? इसी संदर्भ में पहली बार गंभीरता से नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार के नाम पर चर्चा तेज है. निशांत कुमार अब तक विवादों से दूर रहे हैं और उनकी छवि एक सहज और सरल व्यक्ति की रही है. बीजेपी पहले ही साफ कर चुकी है कि नीतीश कुमार का फैसला उन्हें मंजूर होगा.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार की जेडीयू में एंट्री के कयास की खबरों से बिहार राजनीति में हलचलपटना. सूत्र पत्रकारिता की रीढ़ होते हैं जो अक्सर खबरों को सबसे पहले सामने लाते हैं. सत्ता, प्रशासन और संगठनों के भीतर की गहरी जानकारी सूत्रों के जरिए ही मिलती है. खास बात यह है कि बिना सूत्र के खोजी और राजनीतिक पत्रकारिता लगभग असंभव मानी जाती है. अब सूत्रों के हवाले से ही राजनीतिक जगत की ऐसी खबर सामने आ रही है जो आने वाले दशकों में बिहार की राजनीति को प्रभावित करने का माद्दा रखती है. अब खबर भी जान लीजिए. सूत्र बताते हैं कि हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के घर एक छोटी बैठक हुई थी. इस बैठक में अमित शाह समेत कुल तीन लोग थे. बाकी दो लोग जो पटना से आए थे वे थे- जेडीयू के टॉप नेता और मोदी सरकार में मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह तथा पार्टी के कार्यवाहक राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय झा. बैठक का मुख्य एजेंडा बीजेपी से जुड़ा नहीं था, बल्कि नीतीश कुमार के बाद बिहार का क्या होगा, इस पर बात हुई.
सूत्रों की ही जानकारी है कि अमित शाह ने दोनों नेताओं से पूछा कि अगर नीतीश कुमार की सेहत खराब होने की वजह से वे मुख्यमंत्री पद छोड़ते हैं तो आगे का प्लान क्या है? क्या नीतीश के बेटे निशांत कुमार को डिप्टी सीएम बनाया जा सकता है? यह जानकारी अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस से आई है. हालांकि, न तो जेडीयू ने और न ही बीजेपी ने इस खबर की पुष्टि की है.
निशांत कुमार की राजनीति में एंट्री के कयास ऐसे ही नहीं
कथित तौर पर हुई इस मीटिंग के कुछ दिनों बाद संजय झा और निशांत कुमार पटना एयरपोर्ट पर साथ नजर आए थे. इनके साथ नीतीश कुमार के करीबी हरेंद्र भी थे.मीडिया से बात करते हुए तब संजय झा ने निशांत कुमार के राजनीति में आने पर कहा कि पार्टी के लोग, शुभचिंतक और समर्थक अब चाहते हैं कि निशांत पार्टी में आकर काम करें. हम सब लोग यही चाहते हैं. अब फैसला निशांत को ही करना है कि कब वे पार्टी में शामिल होंगे. संजय झा के इस बयान से लगता है कि नीतीश कुमार भी अब राजी हैं और बस सही समय का इंतजार है. जेडीयू में चर्चा है कि खरमास खत्म होने के बाद यानी 14 जनवरी के बाद निशांत को पार्टी में शामिल किया जा सकता है. अगर वे शामिल होते हैं तो उनका रोल क्या होगा- यह बड़ा सवाल है. पार्टी के एक गुट उन्हें सरकार में देखना चाहता है, जबकि दूसरा गुट पार्टी की कमान उनके हाथों में देना चाहता है.
पटना एयरपोर्ट पर मुस्कुराकर निकले निशांत कुमार
बीते दिनों पटना एयरपोर्ट पर जब पत्रकारों की ओर से निशांत से राजनीति में आने के बारे में पूछा गया तो वे सिर्फ मुस्कुराकर आगे बढ़ गए. जानकारी यह भी आई है कि निशांत भी दिल्ली गए थे और बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व से उनकी मुलाकात हुई. दरअसल, बीजेपी की सबसे बड़ी चिंता है कि नीतीश के बाद अति पिछड़ों का वोट बिखर न जाए. इसलिए नीतीश के सत्ता में रहते हुए ही बीजेपी उनका उत्तराधिकारी तय करना चाहती है. जेडीयू भी यही चाहता है. पिछले एक साल से निशांत के जेडीयू जॉइन करने की बात चल रही है. बता दें कि विधानसभा चुनाव के समय तो खबर आई थी कि वे नालंदा के हरनौत से चुनाव लड़ सकते हैं. निशांत ने जेडीयू के यूथ कार्यकर्ताओं के साथ चाय पर चर्चा भी की थी. लग रहा था कि वे जल्द आने वाले हैं, लेकिन कहा जाता है कि नीतीश कुमार ने खुद इसे रोक दिया. चुनाव से पहले उन्होंने निशांत को बुलाकर कहा कि अब कोई सार्वजनिक कार्यक्रम में नहीं जाएंगे और मीडिया से बात नहीं करेंगे. हरेंद्र को भी निर्देश दिया कि चुनाव तक निशांत लक्ष्मण रेखा में रहें.
सूत्रों की खबर के अनुसार, अमित शाह, राजीव रंजन सिंह, संजय झा और निशांत कुमार की बैठक के बाद बिहार की राजनीति में बड़ा बदलाव संभव है.
परिवारवाद का मुद्दा, बिहार चुनाव के बाद बदल गई हवा
जानकार बताते है कि नीतीश कुमार नहीं चाहते थे कि परिवारवाद के खिलाफ वे जीवन भर लड़ते रहे और चुनाव में यही मुद्दा उनके खिलाफ हो जाए. लेकिन एनडीए की बिहार में प्रचंड जीत के बाद परिवारवाद का मुद्दा पीछे छूट गया लगता है. जेडीयू के कोर वोटर मानते हैं कि निशांत ही नीतीश की विरासत को आगे बढ़ा सकते हैं. इसलिए पटना की सड़कों पर निशांत के समर्थन में पोस्टर-बैनर लगने लगे हैं. इसके अलावा जेडीयू में वर्चस्व की लड़ाई भी है.निशांत की चर्चा के बीच इस कहानी में मनीष वर्मा का नाम भी जुड़ता है. वे आईएएस छोड़कर जेडीयू में आए और राष्ट्रीय महासचिव बने.विधानसभा चुनाव के समय वे ज्यादातर निशांत के साथ थे. कहते हैं कि वर्मा ने निशांत को बिहार की राजनीति और इतिहास की किताबें पढ़ने को दीं.
निशांत कुमार के लिए संगठन या सरकार? बसे बड़ा सवाल
जानकार कहते हैं कि अब तक निशांत का रोल सीमित रहा है. वह विवादों से दूर रहे हैं और सरल-सहज दिखते हैं. माहौल बना है कि नीतीश की विरासत वे ही संभाल सकते हैं. चूंकि भारतीय राजनीति में अगर पार्टी किसी नेता के करिश्मे पर टिकी है तो बाहरी व्यक्ति को उत्तराधिकारी नहीं माना जाता. मुलायम सिंह, लालू यादव और करुणानिधि की मिसालें हैं. ऐसे में सवाल यही कि- क्या निशांत का जेडीयू में आना तय है? सवाल यह भी है कि वे संगठन में आएंगे या सरकार में? जानकार कहते हैं कि नीतीश कुमार के सीएम रहते सरकार में एंट्री की संभावना कम है, ऐसे में संगठन में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिल सकती है. सरकार में जगह तभी, जब नीतीश कुर्सी छोड़ें. दूसरी ओर बीजेपी को नीतीश का हर फैसला मंजूर है. हाल में ही संजय झा ने फिर कहा कि कई लोग निशांत को राजनीति में चाहते हैं, जाहिर है यह सब घटनाक्रम बिहार की राजनीति में नया मोड़ ला सकता है.
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First Published :
December 13, 2025, 11:59 IST

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