Last Updated:July 15, 2025, 04:46 IST
Kargil Hero Captain Neikezhakuo: कैप्टन नीकेझाकू केंगुरीज ने गोली लगने के बाद भी हिम्मत नहीं हारी और पाकिस्तानी सेना के बंकर की ओर लगातार बढ़ते रहे. उन्होंने तब तक लड़ना नहीं छोड़ा, जब तक कि बंकर पूरी तरह नष्ट ...और पढ़ें

कैप्टन नीकेझाकू केंगुरीज कारगिल की जंग में शहीद हो गए थे.
हाइलाइट्स
कैप्टन नीकेझाकू ने 12 दिसंबर 1998 को भारतीय सेना में शामिल हुए.सेना में आने से पहले नीकेझाकू 1994 से 1997 तक एक स्कूल में शिक्षक रहे.नीकेझाकू का जन्म नागालैंड के कोहिमा जिले के नेरहेमा गांव में हुआ था.नई दिल्ली. 15 जुलाई को भारत अपने एक वीर सपूत कैप्टन नीकेझाकू केंगुरीज की जयंती मनाता है, जिन्होंने कारगिल युद्ध में अपने अद्भुत साहस और बलिदान से देश को गौरवान्वित किया. नागालैंड के कोहिमा जिले के नेरहेमा गांव में जन्मे केंगुरीज 13 भाई-बहनों में दूसरे नंबर पर थे. बचपन से ही निडर और समर्पित नीकेझाकू को उनके परिवार और मित्र “नेइबू” के नाम से जानते थे, जबकि सेना में उनके साथी उन्हें स्नेह से “नींबू साहब” कहा करते थे.
नीकेझाकू ने जलूकी के सेंट जेवियर स्कूल से पढ़ाई की और कोहिमा साइंस कॉलेज से स्नातक की डिग्री प्राप्त की. 1994 से 1997 तक वे एक स्कूल में शिक्षक रहे, लेकिन देशसेवा का जुनून उन्हें 12 दिसंबर 1998 को भारतीय सेना में ले आया. उन्हें सेना सेवा कोर (एसीएस) में अधिकारी नियुक्त किया गया. कुछ महीने बाद वे राजपूताना राइफल्स के साथ अटैच हुए और जल्द ही कारगिल युद्ध के दौरान दुश्मनों से लोहा लेने के लिए तोलोलिंग भेजी गई टुकड़ी के कमांडर बनाए गए.
कैप्टन केंगुरीज को दुश्मन की मशीनगन पोस्ट को कब्जे में लेने की जिम्मेदारी मिली थी. लगातार पाकिस्तानी गोलाबारी और दुर्गम बर्फीली चट्टानों के बीच उन्होंने हौसला नहीं खोया. उनकी टुकड़ी ने पांच दिनों तक लगातार लड़ाई लड़ी, लेकिन 18 जून 1999 को एक जबर्दस्त मोर्टार हमले में कई साथी शहीद हो गए और खुद कैप्टन केंगुरीज भी पेट में गोली लगने से घायल हो गए.
स्थिति गंभीर थी, लेकिन पीछे हटना उनके स्वभाव में नहीं था. उन्होंने रस्सी की मदद से बर्फीली चट्टानों पर चढ़ाई जारी रखी. 16000 फीट की ऊंचाई, ठंडी हवा और -10 डिग्री सेल्सियस का तापमान भी मनोबल कम नहीं हुआ. जूते फिसल रहे थे, इसलिए उन्होंने नंगे पांव चढ़ाई की. रस्सी के सहारे उन्होंने खुद को ऊपर खींचा और आरपीजी से दुश्मन के बंकर पर हमला किया. नजदीक आते पाकिस्तानी सैनिकों से उन्होंने राइफल्स और चाकुओं से मुकाबला किया. जब तक बंकर पूरी तरह नष्ट नहीं हो गया, वे लड़ते रहे.
आखिरकार, वह गोली लगने के बाद चट्टान से नीचे फिसल गए और वीरगति को प्राप्त हुए, लेकिन उनका बलिदान व्यर्थ नहीं गया. उनकी टुकड़ी ने दुश्मनों को खदेड़ दिया और तोलोलिंग पर तिरंगा फहरा दिया.
आज भी ‘नींबू साहब’ यानी नीकेझाकू केंगुरीज की कहानी देशभक्ति, साहस और बलिदान की एक अमिट मिसाल है. उनका जीवन हर भारतीय के लिए प्रेरणा है और उनके जज्बे को कभी भुलाया नहीं जा सकता. कैप्टन नीकेझाकू केंगुरीज को मरणोपरांत भारत के दूसरे सर्वोच्च वीरता पुरस्कार ‘महावीर चक्र’ से सम्मानित किया गया. वे सेना सेवा कोर के पहले और एकमात्र अधिकारी हैं, जिन्हें यह सम्मान मिला.
राकेश रंजन कुमार को डिजिटल पत्रकारिता में 10 साल से अधिक का अनुभव है. न्यूज़18 के साथ जुड़ने से पहले उन्होंने लाइव हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण, ज़ी न्यूज़, जनसत्ता और दैनिक भास्कर में काम किया है. वर्तमान में वह h...और पढ़ें
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