Last Updated:September 25, 2025, 12:59 IST
Final farewell to Zubeen Garg: जुबीन गर्ग के अंतिम संस्कार में भाग लेने के लिए गुवाहाटी में लाखों लोग उमड़े. असम सरकार ने राजकीय शोक घोषित किया. जुबीन को सांस्कृतिक प्रतीक और प्रेरणास्रोत माना गया.

Final farewell to Zubeen Garg: लाखों लोगों के दिलों को जीतने वाले सिंगर जुबीन गर्ग का 19 सितंबर को 52 साल की उम्र में सिंगापुर में निधन हो गया था. सुदूर सिंगापुर से उनके निधन की खबर पहुंचते ही असम में उनके प्रशंसकों के दिलों में अंधेरा छा गया. असम के सांस्कृतिक प्रतीक जुबीन ने 33 साल के अपने करियर में 40 से ज्यादा बोलियों और भाषाओं में गाने गाए. उन्होंने फिल्मों में अभिनय और निर्देशन भी किया और अनगिनत स्टेज शो किए, जिससे हर उम्र के लोगों पर उनकी छाप छूटी. बेशक शेष भारत में जुबीन गर्ग को लेकर लोगों का जुड़ाव भले कम रहा हो, लेकिन असम और नार्थ ईस्ट में वह लीजेंड थे. इसका पता उनके निधन के बाद ज्यादा चला जब उनकी अंतिम यात्रा में लाखों की भीड़ उमड़ी. असम के लोगों में अपने प्रिय सिंगर को खोने का गम था. उनके फैन उनके नाम के नारे लगा रहे थे और उनके गीत गा रहे थे. कुछ लोगों की नजर में वे राज्य का सबसे प्रिय बेटा और उनके दादा (बड़ा भाई) थे.
जुबीन गर्ग ने हिंदी में जो गाने गाए उसने उन्हें नार्थ ईस्ट से परे भी पहचान दिलाई. लेकिन यह उनकी विराट शख्सियत का एक छोटा सा हिस्सा ही था. हालांकि उनके एक हिट गाने ‘या अली’ ने उन्हें पूरे भारत में मशहूर कर दिया. लेकिन वह एक ऐसे प्रसिद्ध अभिनेता, फिल्म निर्माता और एक ऐसी आवाज थे जो असम और नार्थ ईस्ट के मुद्दों के लिए खड़े होने से कभी नहीं हिचकिचाते थे. 52 वर्षीय गायक-संगीतकार पिछले हफ्ते पूर्वोत्तर महोत्सव के एक लाइव कॉन्सर्ट में प्रस्तुति देने के लिए सिंगापुर में थे, जो इस क्षेत्र की संस्कृति और संगीत को बढ़ावा देने वाला एक मंच है. वहीं पर हुआ वो दुखद हादसा जिसने उनको हम सबसे छीन लिया.
एक ऐसी आवाज थे जो असम और नार्थ ईस्ट के मुद्दों के लिए खड़े होने से कभी नहीं हिचकिचाते थे.
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अंतिम संस्कार में लंबी कतारें
जुबीन गर्ग का अंतिम संस्कार मंगलवार (23 सितंबर) को राजकीय सम्मान के साथ 21 तोपों की सलामी के साथ उनके पार्थिव शरीर को गुवाहाटी लाए जाने के दो दिन बाद किया गया. शहर के सरुसजाई स्टेडियम से लगभग 30 किलोमीटर दूर सोनापुर स्थित उनके अंतिम संस्कार स्थल की ओर ले जाते समय सड़कों पर लोगों की लंबी कतारें लगी हुई थीं. भीड़ ने उनका सबसे लोकप्रिय गीत, मायाबिनी गाया. 19 सितंबर को उनकी मृत्यु की खबर आने के बाद से ही जुबीन के लाखों प्रशंसक असम भर में एकत्रित हो रहे थे और मायाबिनी गा रहे थे. जुबीन ने एक बार कहा था कि जिस दिन उनका निधन होगा उस दिन इसे गाया जाना चाहिए. इससे पहले, असम सरकार ने तीन दिवसीय राजकीय शोक की घोषणा की थी और स्मारक के निर्माण के लिए सोनापुर में 6.2 एकड़ भूमि आवंटित की. दो दिनों तक उनका पार्थिव शरीर लोगों के अंतिम दर्शन के लिए सरुसजाई स्टेडियम में रखा गया. पुलिस के अनुसार स्टेडियम में 15 लाख से ज्यादा लोग आए थे.
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वो केवल एक सिंगर नहीं थे
ज़ुबीन सिर्फ एक सिंगर ही नहीं थे. वे अपनी ईमानदारी और बेबाक व्यक्तित्व के लिए जाने जाते थे. वे बेबाकी से बोलते थे और अक्सर ऐसे सरल शब्दों का इस्तेमाल करते थे जिनसे लोग जुड़ सकें. उन्होंने पाखंड को चुनौती दी, गरीबों की मदद की, सामाजिक मुद्दों पर बात की और प्रकृति व जानवरों से गहरा प्रेम किया. इन गुणों ने उन्हें असम और उसके बाहर एक आदर्श बना दिया. मंच पर, ज़ुबीन ऊर्जावान और कभी-कभी अप्रत्याशित होते थे. भूपेन हजारिका जैसे दिग्गजों के शांत और मधुर गीतों के आदी पुराने श्रोता पहले तो उन पर यकीन नहीं कर पा रहे थे. लेकिन उनके संगीत ने असमिया संस्कृति में एक नया चलन शुरू कर दिया. उनके गीत भावना, प्रेम, आशा, उदासी और आनंद से भरे थे और उन्होंने अपने आलोचकों का भी दिल जीत लिया.
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मंगलवार (23 सितंबर, 2025) को गुवाहाटी के बाहरी इलाके में गायक जुबीन गर्ग के अंतिम संस्कार के दौरान असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा. फोटोः पीटीआई
सीएए का किया जमकर विरोध
ज़ुबीन ने धमकियों और परंपराओं का भी डटकर सामना किया. उन्होंने बिहू के आयोजनों में हिंदी गाने न गाने के उल्फा के नियम की अनदेखी की, कुछ धार्मिक प्रथाओं पर सवाल उठाए और यहां तक कि राजनेताओं के साथ उनकी नृत्य शैली की नकल करने का मजाक भी उड़ाया. उन्होंने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के विरोध सहित कई विरोध प्रदर्शनों में भाग लिया, जिससे पता चला कि उनका प्रभाव संगीत से परे भी है. राजनीतिक अफवाहों के बावजूद उन्होंने स्पष्ट किया, “मैं गैर-राजनीतिक हूं. मैं एक गायक हूं. जो भी मुझे पैसे देगा, मैं उसके लिए गाऊंगा.” फिर भी ज़ुबीन का एक कोमल पक्ष भी था. वह अपनी दिवंगत मां और छोटी बहन जोंकी बोरठाकुर के बारे में प्यार से बात करते थे. उनकी मां और बहन की एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी. वे जानवरों की बहुत परवाह करते थे, अक्सर उन्हें बचाते और उन्हें नाम देते थे. उनके साहस और दयालुता के मिश्रण ने लोगों को उनकी प्रशंसा करने और उनसे जुड़ने के लिए प्रेरित किया.
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किससे प्रेरित हो अपनाया जुबीन नाम
जिबोन बोरठाकुर के रूप में जन्मे, उन्होंने ज़ुबिन मेहता से प्रेरित होकर ज़ुबीन गर्ग नाम अपनाया. उन्होंने अपना ब्राह्मण उपनाम छोड़ दिया और कहा कि वे ‘मानवता के धर्म’ में विश्वास करते हैं. उन्होंने तीन साल की उम्र में गाना शुरू किया और असमिया लोक, शास्त्रीय, पश्चिमी और बॉलीवुड संगीत में महारत हासिल की. हालांकि बॉलीवुड ने उन्हें प्रसिद्धि और पैसा दिया, फिर भी वे अपने लोगों के प्रति अपना कर्तव्य समझते हुए और उन्हें प्रेरित करने वाला संगीत रचते हुए असम लौट आए.
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कई सपनों को अधूरा छोड़ गए
हालांकि ज़ुबीन अपनी जीवनशैली के कारण स्वास्थ्य समस्याओं से जूझते रहे, फिर भी वे सकारात्मक बने रहे. वह अक्सर फैंस से कहते थे, “मुझे कुछ नहीं होगा. मुझे अभी भी कई सपने पूरे करने है.” उनके पास कई योजनाएं थीं, गाने लिखने थे, फिल्में बनानी थीं, यूकेलिप्टस नामक एक आत्मकथा लिखनी थी और लोगों की मदद करनी थी. उनके आकस्मिक निधन ने इन सपनों को अधूरा छोड़ दिया है, लेकिन उनका संगीत और आत्मा हमेशा जीवित रहेगी. हकीकत में ज़ुबीन गर्ग एक गायक से कहीं बढ़कर थे.
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Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
September 25, 2025, 12:59 IST