Why Iran Recall its Ambassadors from E3 Countries: ईरान ने फ्रांस, ब्रिटेन और जर्मनी से अपने राजदूतों को वापस बुला लिया है. इन तीनों देशों को सामूहिक रूप से ई3 कहा जाता है. शनिवार को ईरान के विदेश मंत्रालय ने यह जानकारी दी. मंत्रालय का कहना है कि ई3 देशों द्वारा लिए गए 'उकसावे वाले फैसलों' के चलते यह कदम उठाया गया है. रिपोर्ट के मुताबिक, इस सारे विवाद की जड़ है 'स्नैपबैक व्यवस्था'. ई3 देशों ने हाल ही में इसे फिर से लागू करने का निर्णय लिया. इस व्यवस्था के तहत अगर ईरान 2015 के परमाणु समझौते का पालन नहीं करता है, तो 30 दिनों के भीतर संयुक्त राष्ट्र के पुराने प्रतिबंध फिर से लागू हो सकते हैं. ईरान का कहना है कि यह कदम अनुचित और उकसावे वाला है.
परमाणु समझौते की पृष्ठभूमि
बताते चलें कि जुलाई 2015 में ईरान और छह बड़ी ताकतों-ब्रिटेन, चीन, फ्रांस, जर्मनी, रूस और अमेरिका—ने संयुक्त व्यापक कार्य योजना (जेसीपीओए) पर हस्ताक्षर किए थे. इस समझौते के तहत ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने पर राज़ी हुआ था, जिसके बदले उस पर लगे कई अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध हटा दिए गए थे.
लेकिन 2018 में अमेरिका ने अचानक इस समझौते से हाथ खींच लिया. इसके बाद से ही ईरान ने धीरे-धीरे अपनी प्रतिबद्धताओं को कम करना शुरू कर दिया. अमेरिका के बाहर होने के बाद भी ई3 देश समझौते को बनाए रखने की कोशिश करते रहे, मगर हालात लगातार बिगड़ते गए.
संयुक्त राष्ट्र में गतिरोध
19 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में जेसीपीओए से जुड़े प्रतिबंधों में राहत बढ़ाने वाला प्रस्ताव पारित नहीं हो सका. इसके बाद शुक्रवार को फिर एक नया प्रस्ताव लाया गया, जिसमें छह महीने का विस्तार मांगा गया था. लेकिन यह प्रस्ताव भी पारित नहीं हो पाया. इस विफलता का मतलब हुआ कि पुराने संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंध शनिवार से अपने-आप फिर से लागू हो जाएंगे.
ईरान की नाराजगी
ईरान का कहना है कि ई3 देशों ने जानबूझकर उसके खिलाफ माहौल बनाया और स्नैपबैक तंत्र को सक्रिय कर दिया. 28 अगस्त को ई3 ने संयुक्त राष्ट्र को सूचित किया था कि ईरान समझौते के तहत अपनी जिम्मेदारियों का “गंभीर उल्लंघन” कर रहा है. इसी सूचना के आधार पर स्नैपबैक प्रक्रिया शुरू की गई.
वोटिंग का नतीजा
संयुक्त राष्ट्र में जब इस मसौदे पर मतदान हुआ, तो चीन और रूस ने ईरान के पक्ष में वोट दिया. अल्जीरिया और पाकिस्तान ने भी समर्थन किया, जबकि कोरिया गणराज्य और गुयाना ने मतदान में हिस्सा ही नहीं लिया. बाकी नौ सदस्यों ने विरोध में वोट दिया. प्रस्ताव पारित करने के लिए नौ सकारात्मक वोटों की ज़रूरत थी, जो पूरे नहीं हो पाए.
आगे क्या होगा?
ईरान के राजदूतों को वापस बुलाने से यह साफ है कि अब उसके और ई3 देशों के बीच तनाव और बढ़ेगा. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह टकराव और गहराया, तो परमाणु समझौते को बचाना लगभग नामुमकिन हो जाएगा और मध्य पूर्व में अस्थिरता बढ़ सकती है. कुल मिलाकर यह चिंगारी आगे चलकर पूरे पश्चिम एशिया को अस्थिर कर सकती है.