Last Updated:September 24, 2025, 19:11 IST
चीनी राजदूत कह रहे कि भारत के साथ रिश्ता एक नए मुकाम पर पहुंच रहा है, जहां दोनों मिलकर दुनिया की पॉलिसी तय कर रहे हैं. लेकिन क्या सच में रिश्ता इतना मजबूत हो रहा कि चीन यूएन सिक्योरिटी काउंसिल में भारत का समर्थन कर दे?

एक दिन पहले चीन के राजदूत शू फेइहोंग ने जो बयान दिया, उसे पढ़कर एक तरह की उम्मीद जगी कि भारत-चीन संबंध शायद सच में ‘नए स्तर पर दोस्ती’ की ओर बढ़ रहे हैं. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की तियानजिन में हुई मुलाकात ने दोनों देशों के रिश्तों को नए लेवल पर पहुंचा दिया है. काफी वक्त बाद संबंधों में इस तरह का सुधार देखने को मिला है. दोनों देश वैश्विक स्तर पर स्ट्रैटजिक अप्रोच अपनाकर सहयोग बढ़ा रहे हैं. हमारे इकोनॉमिक और बिजनेस रिलेशन तेजी से मजबूत हो रहे हैं. उन्होंने ये तक कहा कि भारत-चीन अब वर्ल्ड पॉलिसी तय कर रहे हैं. अपने भाषण में उन्होंने समझाने की कोशिश की कि भारत के साथ रिश्ता एक ऐसे मुकाम पर पहुंच रहा है, जहां सबकुछ अच्छा-अच्छा होगा. लेकिन सवाल वही है, क्या रिश्ता इस स्तर तक पहुंच सकता है कि चीन यूएन में भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन करे?
चीनी राजदूत ने भारत-चीन दोस्ती के आगे बढ़ने के कई संकेत दिए. उन्होंने बताया कि कोरोना के बाद से जो फ्लाइट्स बंद थीं, वो फिर से शुरू हो रही हैं. हम कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए रास्ते खोल रहे हैं. ट्रेड तेजी से बढ़ा है. जनवरी से अगस्त तक दोनों देशों के बीच ट्रेड 102 अरब डॉलर तक पहुंच गया है. इतना ही नहीं, चीन 265,000 भारतीयों को वीजा जारी कर रहा है. यह सबकुछ दिखाता है कि रिश्ता नए मुकाम पर पहुंच गया है.
जियोपॉलिटिक्स में की वजह तो नहीं?
लेकिन क्या यह सब संकेत हैं कि चीन भारत को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मान्यता देगा? राजदूत ने साफ कहा कि दोनों देश ग्लोबल साउथ के हितों की रक्षा करें और मानवता के हित में साझा भविष्य का निर्माण करें. किसी भी तरह के टैरिफ और ट्रेड वॉर का खुलकर विरोध करें. यह संदेश मुख्य रूप से अमेरिका को था, जो भारत और चीन दोनों पर वॉर फंडिंग का आरोप लगा रहा है. इसका मतलब यह हुआ कि चीन अपनी रणनीति और भारत के साथ सहयोग को जियोपॉलिटिक्स में हो रहे बदलाव के हिसाब से देख रहा है, न कि भारत को किसी तरह समर्थन के रूप में इसे देखना चाहिए.
चीन क्यों नहीं दे सकता समर्थन?
भारत लंबे समय से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में स्थायी सदस्यता का प्रयास कर रहा है. यह भारत की वर्ल्ड पावर, आबादी, मिलिट्री पावर और इकॉनमी के आधार पर वाजिब मांग है. लेकिन चीन इस पर हमेशा चुप रहता है. इसकी कई वजह है. चीन खुद को एशिया में एक प्रमुख शक्ति के रूप में देखता है. अगर वह भारत को स्थायी सदस्यता देने का समर्थन करता है, तो पाकिस्तान और अन्य पड़ोसी देशों के साथ उसके रिश्ते प्रभावित हो सकते हैं. चीन का पाकिस्तान के साथ करीबी सैन्य और राजनीतिक संबंध है. UNSC की स्थायी सदस्यता का समर्थन देने का मतलब है कि भारत को अपने बगल में बिठाना. चीन ये कभी नहीं चाहेगा. वह कभी नहीं चाहेगा कि यूएन में भारत उसके सामने खड़ा हो. उसका इतिहास रहा है कि अपने हितों के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाना चाहता. भले ही राजदूत नए स्तर की दोस्ती का दावा कर रहे हों, वास्तविकता यह है कि 2020 के गलवान संघर्ष के बाद भारत-चीन संबंधों में अविश्वास कायम है. सीमा पर विवाद अभी भी अनसुलझा है और सैनिकों की तैनाती जारी है. स्थायी सदस्यता के समर्थन का सवाल तभी उठता है जब दोनों देशों में पूर्ण भरोसा हो.Mr. Gyanendra Kumar Mishra is associated with hindi.news18.com. working on home page. He has 20 yrs of rich experience in journalism. He Started his career with Amar Ujala then worked for 'Hindustan Times Group...और पढ़ें
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Location :
Delhi,Delhi,Delhi
First Published :
September 24, 2025, 19:07 IST