Kolkata Flood: कोलकाता में मंगलवार, 23 सितंबर को रात भर हुई भारी बारिश के कारण शहर का एक बड़ा हिस्सा पानी में डूब गया. जिससे यातायात ठप हो गया और दैनिक जीवन अस्त-व्यस्त हो गया. अलग-अलग घटनाओं में कम से कम दस लोगों की मौत हो गई, जिनमें से आठ बिजली का झटका लगने से और दो डूबने से मारे गए. दुर्गा पूजा समारोह से कुछ ही दिन पहले आयी बाढ़ ने पूर्वी भारत के इस महानगर पर बर्बादी की स्पष्ट छाप छोड़ी.
कोलकाता में बाढ़ कोई नई बात नहीं है, खासकर मानसून के मौसम में. लेकिन कोलकाता में 23 सितंबर को रात भर हुई भारी बारिश असामान्य थी. इसे ‘सालों में एक बार होने वाली घटना’ माना जा सकता है. जिसने शहर के बुनियादी ढांचे पर भारी दबाव डाला. रेल और मेट्रो सेवाएं बुरी तरह प्रभावित हुईं, कई लंबी दूरी की ट्रेनों के समय में फेरबदल किया गया. हवाई अड्डे के रनवे के जलमग्न रहने के कारण 90 से ज्यादा उड़ानें रद्द कर दी गईं. कोलकाता के कई निवासियों ने रात भर हुई बारिश की तुलना ‘बादल फटने’ जैसी मूसलाधार बारिश से की और कहा कि ऐसा कुछ सालों से नहीं देखा गया था. जानिए आखिर कोलकाता क्यों डूब गया पानी में…
इस बारिश की खास बातें
रिकॉर्ड तोड़ बारिश: 23 सितंबर को कोलकाता के अलीपुर में सुबह 6:30 बजे तक 247.4 मिमी बारिश दर्ज की गई. यह सितंबर महीने में दर्ज की गई अब तक की तीसरी सबसे अधिक बारिश है. इससे पहले केवल 28 सितंबर, 1978 (369.6 मिमी) और 26 सितंबर, 1986 (259.5 मिमी) को इससे अधिक बारिश हुई थी.
कम अवधि में ज्यादा बारिश: यह बारिश एक छोटी अवधि (3-4 घंटे) में बहुत अधिक हुई, जिसने शहर के जल निकासी सिस्टम को पूरी तरह से रोक दिया. यह कोई चक्रवात नहीं था, बल्कि बंगाल की खाड़ी में बने एक कम दबाव वाले क्षेत्र के कारण उत्पन्न हुआ एक तीव्र तूफान था.
जलमग्न हुआ शहर: भारी बारिश से शहर का एक बड़ा हिस्सा जलमग्न हो गया, जिससे जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया. कम से कम 9 लोगों की मौत बिजली के करंट से हो गई. कई इलाकों में सड़कों, घरों और बाजारों में पानी भर गया और दुर्गा पूजा के लिए बनाए गए पंडाल भी पानी में डूब गए.
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: मौसम विशेषज्ञों के अनुसार भले ही कोलकाता में वार्षिक कुल वर्षा कम हो रही है, लेकिन इसकी तीव्रता बढ़ रही है. यानी, बारिश कम दिनों में होती है, लेकिन जब होती है तो बहुत ज्यादा होती है. यह वैश्विक जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का एक नमूना है.
कमजोर जल निकासी सिस्टम
पुराना और अप्रभावी सिस्टम: कोलकाता की जल निकासी प्रणाली काफी पुरानी है, जिसका अधिकांश हिस्सा औपनिवेशिक काल में बनाया गया था. यह वर्तमान जनसंख्या घनत्व और जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली तीव्र बारिश को संभालने के लिए पर्याप्त नहीं है.
कम ढलान: कोलकाता एक डेल्टा मैदान पर स्थित है, जो हुगली नदी के किनारे से पूर्व की ओर नीचे की ओर ढलान वाला है. यह शहर को एक ‘सॉसर’ (गहरे प्लेट) की तरह बनाता है, जिससे पानी बाहर नहीं निकल पाता है.
नदियों और नालियों का गाद से भरना: हुगली नदी और शहर की नहरों (खाल) में गाद (silt) जमा हो गई है, जिससे पानी के निकलने का रास्ता संकरा हो गया है. इसके अलावा प्लास्टिक और अन्य कचरा इन नालियों और जल चैनलों को पूरी तरह से जाम कर देता है, जिससे जल निकासी और भी मुश्किल हो जाती है.
हाई टाइड और नदी का जलस्तर
ज्वार का प्रतिकूल समय: 23 सितंबर को हुई भारी बारिश के समय हुगली नदी में हाई टाइड चल रहा था. कोलकाता की जल निकासी प्रणाली गुरुत्वाकर्षण पर आधारित है. यानी पानी ढलान के सहारे हुगली नदी में बहता है. जब नदी में ज्वार आता है और उसका जलस्तर बढ़ जाता है, तो पानी का बहाव रुक जाता है.
बाढ़ रोकने के लिए गेट बंद करना: हाई टाइड के दौरान नदी का पानी शहर में वापस न घुस जाए, इसलिए निकासी गेट को बंद कर दिया जाता है. इस दौरान शहर के अंदर गिरने वाला बारिश का पानी बाहर नहीं निकल पाता और शहर में ही फंस जाता है, जिससे बाढ़ की स्थिति और गंभीर हो जाती है.
अतिक्रमण अनियोजित विकास
शहर के जल निकासी चैनलों और नहरों पर लगातार हो रहे अतिक्रमण ने भी पानी के प्राकृतिक बहाव को बाधित किया है. नए निर्माण और विकास परियोजनाओं को अक्सर उचित जल निकासी योजनाओं के बिना ही किया जाता है, जिससे नए-नए इलाकों में भी जलभराव की समस्या पैदा हो रही है. इन सभी कारणों ने 23 सितंबर को हुई रिकॉर्ड-तोड़ बारिश को एक बड़ी आपदा में बदल दिया, जिससे कोलकाता का एक बड़ा हिस्सा पानी में डूब गया.
अगर दिल्ली में वैसी बारिश हो तो क्या होगा?
कोलकाता जैसी भारी बारिश अगर दिल्ली में हो जाए तो स्थिति बहुत गंभीर हो सकती है. हालांकि दिल्ली और कोलकाता की भौगोलिक और जल निकासी व्यवस्था अलग-अलग है, लेकिन दिल्ली में भी बाढ़ और जलभराव के अपने जोखिम हैं. भले ही दिल्ली का भूगोल कोलकाता से थोड़ा अलग है, लेकिन अगर वहां भी उतनी ही भारी बारिश होती है, तो खराब जल निकासी प्रणाली, यमुना नदी के बढ़ते जलस्तर और अनियोजित शहरीकरण के कारण दिल्ली में भी कोलकाता जैसी ही या उससे भी बदतर स्थिति उत्पन्न हो सकती है. कोलकाता एक डेल्टा क्षेत्र में स्थित है. वहीं, दिल्ली एक मैदानी इलाका है जो यमुना नदी के किनारे स्थित है. दिल्ली की जल निकासी प्रणाली भी पुरानी है, लेकिन इसका मुख्य खतरा यमुना नदी के बढ़ते जलस्तर और नालियों के अवरुद्ध होने से जुड़ा है.
व्यापक जलभराव
दिल्ली की जल निकासी प्रणाली 1976 में 60 लाख की आबादी के लिए डिजाइन की गई थी, जबकि आज दिल्ली की आबादी 2 करोड़ से अधिक है. यह प्रणाली 50 मिमी से अधिक की बारिश को संभालने में सक्षम नहीं है. अगर 24 घंटे में 250 मिमी से अधिक बारिश होती है तो शहर के प्रमुख इलाके जैसे कि कनॉट प्लेस, आईटीओ, रिंग रोड और प्रमुख आवासीय क्षेत्रों में व्यापक जलभराव होगा. सड़कों पर पानी भरने से यातायात पूरी तरह से रुक जाएगा और शहर में भारी जाम लगेगा.
यमुना नदी में बाढ़ का खतरा
दिल्ली में बाढ़ का सबसे बड़ा खतरा यमुना नदी से है. कोलकाता की बारिश की तरह अगर दिल्ली में भी इतनी ही बारिश होती है, तो यमुना का जलस्तर तेजी से बढ़ जाएगा. दिल्ली में बाढ़ की मुख्य वजह हरियाणा के हथिनीकुंड बैराज से छोड़ा जाने वाला पानी है, लेकिन शहर में हुई भारी बारिश नदी के पानी को शहर में वापस ला सकती है, जिससे बाढ़ की स्थिति और बिगड़ सकती है. दिल्ली के निचले इलाके, जैसे कि यमुना के खादर (बाढ़ के मैदानों) में बसे हुए इलाके, यमुना बाजार, मयूर विहार, और गीता कॉलोनी जैसे क्षेत्रों में पानी भर जाएगा, जिससे लाखों लोगों को विस्थापित करना पड़ेगा.
बुनियादी ढांचे पर असर
दिल्ली में बिजली, पानी और इंटरनेट जैसी सेवाएं बाधित हो सकती हैं. कई सब-वे और अंडरपास पानी में डूब जाएंगे, जिससे आपातकालीन सेवाएं भी प्रभावित होंगी. सार्वजनिक परिवहन, जैसे मेट्रो और बसें, भारी जलभराव के कारण अपनी सेवाएं देने में असमर्थ हो सकती हैं. जलभराव से जल जनित बीमारियों, जैसे डेंगू, मलेरिया, और टाइफाइड का खतरा बढ़ जाएगा. नालियों और सीवरों का पानी सड़कों पर भर जाएगा, जिससे स्वच्छता की स्थिति बिगड़ जाएगी और बदबू फैलेगी.
अनियोजित विकास और अतिक्रमण
दिल्ली में नालियों और यमुना के बाढ़ के मैदानों (floodplains) पर हो रहे अतिक्रमण ने भी स्थिति को बदतर बना दिया है. ये अतिक्रमण पानी के प्राकृतिक बहाव को रोकते हैं. अनियोजित विकास ने कंक्रीट के जंगलों का विस्तार किया है, जिससे बारिश का पानी जमीन में रिसने की बजाय सड़कों पर ही जमा हो जाता है.
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