हिंदी-अंग्रेजी का झोल... मरे शख्स ने 20 साल बाद कैसे खोल दी भ्रष्टाचार की पोल

1 month ago

Last Updated:August 25, 2025, 09:35 IST

यह मामला दिल्ली के गोपालपुर इलाके में शिव किरोसिन तेल डिपो से जुड़ा है. इसमें सबसे बड़े शेयरधारक डुंगर सिंह थे. दिलचस्प बात यह है कि 12 जुलाई 2005 को जारी लाइसेंस नवीनीकरण फॉर्म पर डुंगर सिंह के हस्ताक्षर किए ग...और पढ़ें

हिंदी-अंग्रेजी का झोल... मरे शख्स ने 20 साल बाद कैसे खोल दी भ्रष्टाचार की पोलडुंगर सिंह के हस्ताक्षर ने 20 साल पुराने भ्रष्टाचार के खेल को भरी अदालत में उजागर कर दिया. (प्रतीकात्मक)

दिल्ली के गोपालपुर इलाके में करीब 20 साल पुराना भ्रष्टाचार का मामला एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है. आरोप है कि साल 2005 में खाद्य सुरक्षा अधिकारी सुनील कुमार सचान ने एक मृत व्यक्ति के नाम से केरोसिन ऑयल डिपो (KOD) का लाइसेंस रिन्यू कर दिया था.

यह मामला शिव KOD से जुड़ा है, जिसमें सबसे बड़े शेयरधारक डुंगर सिंह थे. लेकिन दिलचस्प बात यह है कि 12 जुलाई 2005 को जारी लाइसेंस नवीनीकरण फॉर्म पर डुंगर सिंह के हस्ताक्षर किए गए, जबकि 5 अगस्त 2004 को ही उनका निधन हो चुका था.

ACB ने दर्ज किया था मामला

इस मामले की जांच के बाद साल 2006 में दिल्ली सरकार की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा (ACB) ने सुनील कुमार सचान के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धाराओं के तहत FIR दर्ज की थी.

अब लगभग 20 साल बाद, 18 अगस्त को दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने सचान और दो अन्य आरोपियों सिम्पल गर्ग और डुंगर सिंह के बिज़नेस पार्टनर राजीव कुमार पर आरोप तय करने का आदेश दिया है.

हिन्दी अंग्रेजी से खुला खेल

विशेष न्यायाधीश डॉ. रुचि अग्रवाल असरानी ने कहा, ‘गंभीर संदेह पैदा होता है कि आरोपी सुनील कुमार सचान, सह-आरोपी सिम्पल गर्ग और राजीव कुमार के साथ मिलकर मृतक डुंगर सिंह के हस्ताक्षर जालसाजी से किए गए, ताकि अवैध रूप से केरोसिन डिपो का लाइसेंस हासिल कर आरोपी राजीव कुमार को आर्थिक लाभ पहुंचाया जा सके.’

जांच में यह भी सामने आया कि डुंगर सिंह ने जीवनभर सभी सरकारी दस्तावेज़ों में केवल अंग्रेज़ी में हस्ताक्षर किए थे, लेकिन 2005 के नवीनीकरण फॉर्म पर बेहद साफ-सुथरे हिंदी हस्ताक्षर पाए गए.

पहले ACB ने इस केस में क्लोज़र रिपोर्ट दाखिल की थी, लेकिन अदालत ने इसे खारिज कर दिया. उस समय कोर्ट ने यह टिप्पणी की थी कि 1986 से लेकर 2002 तक सभी फाइलों में डुंगर सिंह के अंग्रेज़ी हस्ताक्षर मौजूद हैं, जबकि सिर्फ 2005 के नवीनीकरण फॉर्म में हिंदी में हस्ताक्षर हैं.

दो डेथ सर्टिफिकेट, दो अलग तारीखें

मामले में एक और मोड़ तब आया जब ग्राम पंचायत अधिकारी और जन्म-मृत्यु रजिस्ट्रार, बागपत की ओर से डुंगर सिंह की मौत की दो अलग-अलग तारीखें दर्ज की गईं. एक प्रमाणपत्र में 5 अगस्त 2004, जबकि दूसरे में अक्टूबर 2005 की तारीख लिखी गई. ACB का आरोप है कि यह गड़बड़ी आरोपियों को बचाने के लिए की गई थी.

कोर्ट ने कहा, ‘अभियोजन पक्ष यह साबित करने में सफल रहा है कि आरोपी सुनील कुमार सचान ने उस समय डुंगर सिंह के फोटो और हस्ताक्षर अटेस्ट किए, जब वह जीवित ही नहीं थे. साथ ही, FSL रिपोर्ट से यह भी स्पष्ट हुआ कि हस्ताक्षर जाली थे.’

Saad Omar

An accomplished digital Journalist with more than 13 years of experience in Journalism. Done Post Graduate in Journalism from Indian Institute of Mass Comunication, Delhi. After Working with PTI, NDTV and Aaj T...और पढ़ें

An accomplished digital Journalist with more than 13 years of experience in Journalism. Done Post Graduate in Journalism from Indian Institute of Mass Comunication, Delhi. After Working with PTI, NDTV and Aaj T...

और पढ़ें

न्यूज़18 को गूगल पर अपने पसंदीदा समाचार स्रोत के रूप में जोड़ने के लिए यहां क्लिक करें।

Location :

New Delhi,Delhi

First Published :

August 25, 2025, 09:30 IST

homenation

हिंदी-अंग्रेजी का झोल... मरे शख्स ने 20 साल बाद कैसे खोल दी भ्रष्टाचार की पोल

Read Full Article at Source