हजारों नहीं, अब ₹200 में नपवाएं अपनी ज़मीन, जानें नया सरकारी फैसला

5 hours ago

Last Updated:May 22, 2025, 18:06 IST

Farmer land mapping: महाराष्ट्र सरकार ने किसानों को बड़ी राहत दी है. अब कृषि भूमि की हिस्सेदारी तय करने का शुल्क केवल ₹200 होगा. पहले यह ₹1,000 से ₹4,000 तक था.

हजारों नहीं, अब ₹200 में नपवाएं अपनी ज़मीन, जानें नया सरकारी फैसला

कृषि भूमि सर्वे शुल्क

मुंबई से किसानों के लिए एक राहतभरी खबर आई है. अब कृषि भूमि की हिस्सेदारी तय करने के लिए केवल ₹200 ही खर्च करने होंगे. पहले यही काम कराने के लिए किसानों को ₹1,000 से ₹4,000 तक देने पड़ते थे. इस फैसले से उन लाखों किसानों को बड़ी राहत मिलेगी, जिन्हें अपनी ज़मीन का बंटवारा करवाना होता है लेकिन पैसे की कमी के कारण काम अटक जाता था.

राजस्व मंत्री की पहल से आया बदलाव
इस फैसले को लागू करवाने में महाराष्ट्र के राजस्व मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले की अहम भूमिका रही. उन्होंने राजस्व विभाग से यह प्रस्ताव पास करवाया, ताकि किसानों को आर्थिक बोझ से राहत मिल सके. मंत्री ने कहा कि उनका मकसद राजस्व व्यवस्था को पारदर्शी और आम जनता के लिए आसान बनाना है.

हिस्सेदारी की गणना क्यों ज़रूरी है?
जब एक ज़मीन कई लोगों के नाम पर होती है, जैसे परिवार में बंटवारा होता है, तो हर किसी का हिस्सा तय करने के लिए ज़मीन की सटीक माप जरूरी होती है. इससे यह पता चलता है कि किसके हिस्से में कितनी ज़मीन आएगी. साथ ही, यह माप दस्तावेज़ों में दर्ज की जाती है, ताकि आगे चलकर कोई विवाद न हो.

बिक्री और कानूनी मामलों में भी मददगार
किसी ज़मीन को बेचने या खरीदने से पहले उसकी माप जरूरी होती है. इसके अलावा, अगर ज़मीन को लेकर कोई मामला कोर्ट में चला जाए, तो वहां भी माप और हिस्सेदारी से जुड़े दस्तावेज़ पेश करने पड़ते हैं. इसलिए यह प्रक्रिया कानूनी रूप से भी बहुत अहम मानी जाती है.

कम खर्च में मिलेगा अधिकारिक नक्शा और दस्तावेज़
अब केवल ₹200 में किसान अपना हिस्सा तय करवा सकते हैं और उससे जुड़े नक्शे व कागज़ात भी आसानी से प्राप्त कर सकते हैं. इससे न सिर्फ़ ज़मीन के विवाद सुलझाने में मदद मिलेगी, बल्कि ज़मीन का खरीद-फरोख्त का काम भी आसान और पारदर्शी होगा.

मंत्री ने क्या कहा?
राजस्व मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले ने कहा, “मैं चाहता हूं कि राज्य की राजस्व व्यवस्था किसान के पक्ष में हो. इसलिए यह फैसला लिया गया है जिससे किसानों को न्याय मिले और ज़मीन के झगड़े कम हों. इससे सिस्टम पारदर्शी होगा और किसानों को अपने अधिकार दिलाने में मदद मिलेगी.”

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