Last Updated:December 27, 2025, 10:44 IST
Special Leave Petition: उन्नाव रेप केस में ट्रायल कोर्ट की ओर से दोषी ठहराए गए कुलदीप सिंह सेंगर को दिल्ली हाईकोर्ट ने बड़ी राहत दी है. अब सीबीआई ने इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. जांच एजेंसी की ओर से शीर्ष अदालत में SLP दाखिल किया गया है.
Special Leave Petition: SLP के तहत भारत का संविधान सुप्रीम कोर्ट को व्यापक अधिकार देता है. (फाइल फोटो)Special Leave Petition: सीबीआई ने 2017 के उन्नाव रेप मामले में पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की आजीवन कारावास की सजा निलंबित करने और उन्हें जमानत देने के दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है. संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत दायर विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) में हाईकोर्ट के 23 दिसंबर के उस आदेश को चुनौती दी गई है, जिसमें कुलदीप सिंह सेंगर की अपील लंबित रहने के दौरान उनकी सजा निलंबित करने की अर्जी स्वीकार करते हुए उन्हें जमानत दी गई थी. इससे पहले यह जानकारी सामने आई थी कि सीबीआई और पीड़िता का परिवार दोनों ही दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी में हैं. हाईकोर्ट के समक्ष सीबीआई ने सेंगर की याचिका का कड़ा विरोध किया था और अपराध की गंभीरता तथा इससे जुड़े संभावित जोखिमों को रेखांकित किया था. हाईकोर्ट की जस्टिस सुब्रमणियम प्रसाद और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की पीठ ने सेंगर की आजीवन कारावास की सजा को अपील लंबित रहने तक निलंबित कर दिया और कड़ी शर्तों के साथ उन्हें सशर्त जमानत दे दी थी. हालांकि, दुष्कर्म मामले में जमानत मिलने के बावजूद सेंगर की तत्काल रिहाई की संभावना कम है, क्योंकि वह पीड़िता के पिता की मौत से जुड़े अन्य मामलों में अलग सजा काट रहे हैं. अब सवाल उठता है कि सीबीआई की ओर से सुप्रीम कोर्ट में जो SLP दाखिल की गई है वो क्या है? कुलदीप सेंगर को दी गई राहत पर इसका असर पड़ेगा?
SLP क्या होती है?
SLP का मतलब है Special Leave Petition. यह एक ऐसी याचिका है, जिसके माध्यम से किसी भी अदालत या ट्रिब्यूनल (सैन्य ट्रिब्यूनल को छोड़कर) के फैसले, आदेश या डिक्री के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट से विशेष अनुमति मांगी जाती है. महत्वपूर्ण बात यह है कि SLP कोई अधिकार नहीं, बल्कि एक विशेष अनुमति (Privilege) है, जो सुप्रीम कोर्ट अपने विवेक से देता है.
संविधान में इसको लेकर क्या है प्रावधान?
SLP का प्रावधान भारतीय संविधान के अनुच्छेद 136 में है. इसके तहत सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार है कि वह किसी भी अदालत या ट्रिब्यूनल के फैसले के खिलाफ अपील की विशेष अनुमति दे सकता है. हालांकि, यह शक्ति तभी इस्तेमाल होती है जब कानून का कोई बड़ा सवाल (Substantial Question of Law) जुड़ा हो या गंभीर अन्याय (Gross Injustice) हुआ हो.
उन्नाव रेप कांड में कुलदीप सेंगर को दिल्ली हाईकोर्ट से राहत मिली है. (फाइल फोटो/PTI)
किन मामलों में SLP दाखिल हो सकती है?
नागरिक (Civil) और आपराधिक (Criminal) दोनों तरह के मामलों में एसएलपी दाखिल की जा सकती है. हाईकोर्ट के फैसलों के खिलाफ और ट्रिब्यूनल या अर्ध-न्यायिक (Quasi-Judicial) संस्थाओं के आदेशों के खिलाफ भी यह याचिका दायर की जा सकती है. सशस्त्र बलों से जुड़े ट्रिब्यूनल इसके दायरे से बाहर हैं. अंतरिम (Interim) आदेश के खिलाफ भी SLP दायर की जा सकती है.
कौन SLP दाखिल कर सकता है?
SLP वही दाखिल कर सकता है, जो फैसले से प्रभावित या पीड़ित हो. जैसे कोई व्यक्ति या कंपनी, केंद्र या राज्य सरकार, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (PSU) या फिर NGO या कोई एसोसिएशन.
क्या SLP दाखिल करने की समय-सीमा भी तय है?
हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ 90 दिन के भीतर SLP दायर करना अनिवार्य है. यदि हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट में अपील के लिए सर्टिफिकेट ऑफ फिटनेस देने से इनकार किया हो तो 60 दिन के भीतर इसे दाखिल करना होगा.
क्या SLP खारिज होने पर मामला खत्म हो जाता है?
हां, आमतौर पर SLP खारिज होने का मतलब होता है कि सुप्रीम कोर्ट ने उस मामले में हस्तक्षेप से इनकार कर दिया. हालांकि, इसका यह अर्थ नहीं कि सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को सही मान लिया. इस याचिका के खारिज होने का मतलब बस इतना है कि शीर्ष अदालत ने अपील की अनुमति नहीं दी.
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बिहार, उत्तर प्रदेश और दिल्ली से प्रारंभिक के साथ उच्च शिक्षा हासिल की. झांसी से ग्रैजुएशन करने के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता में PG डिप्लोमा किया. Hindustan Times ग्रुप से प्रोफेशनल कॅरियर की शु...और पढ़ें
Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
December 27, 2025, 10:42 IST

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