सरकारी स्‍कूल की छत गिरने से 4 बच्‍चों की मौत, कब-कब हुए ऐसे स्कूल हादसे?

1 month ago

Last Updated:July 25, 2025, 11:03 IST

Rajasthan school collapse: राजस्‍थान के एक स्‍कूल की छत गिरने से चार बच्‍चों की मौत हो गई.कई बच्‍चों के मलबे में दबे होने की आशंका है.ऐसा नहीं कि यह कोई पहला स्‍कूल हादसा हो, इससे पहले भी कई जगहों पर ऐसे हादसे ...और पढ़ें

सरकारी स्‍कूल की छत गिरने से 4 बच्‍चों की मौत, कब-कब हुए ऐसे स्कूल हादसे?Rajasthan school collapse, school news, rajasthan news: राजस्‍थान के सकूल में हादसा.

हाइलाइट्स

राजस्‍थान के झालावाड़ का मामला.छत गिरने से बच्‍चों की मौत.इससे पहले भी हुए कई हादसे.

Rajasthan school collapse: राजस्थान के झालावाड़ जिले में एक सरकारी स्कूल की छत गिरने की घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया.इस हादसे में पांच बच्चों की मौत हो गई और लगभग 15 बच्‍चे घायल हो गए. अभी 41 बच्‍चों के मलबे में दबे होने की आशंका है. यह घटना हमें उन तमाम स्कूल हादसों की याद दिलाती है, जो पहले भी देश के अलग अलग हिस्‍सों में हो चुके हैं और जिन्होंने स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा को लेकर सवाल खड़े किए हैं. आइए जानते हैं कि भारत में कब-कब और कहां-कहां बड़े स्कूल हादसे हुए और झालावाड़ की ताजा घटना से क्या सीख मिलती है?

Rajasthan’s Jhalawar Hadsa: झालावाड़ के प्रायमरी स्‍कूल में क्‍या हुआ?

राजस्थान के झालावाड़ जिले के मनोहरथाना में पिपलोदी प्राइमरी स्कूल की छत अचानक गिर गई.यह हादसा सुबह करीब 8 बजे हुआ, जब बच्चे क्लास में पढ़ रहे थे. इस हादसे में पांच बच्चों की मौत हो गई और 17 बच्चे घायल हुए. बताया जा रहा है कि हादसे के समय स्‍कूल में 70 बच्‍चे मौजूद थे. अभी भी मलबे में 44 बच्‍चों के फंसे होने की आशंका है. जिसके बाद पुलिस, प्रशासन, और NDRF की टीमें तुरंत रेस्क्यू ऑपरेशन में जुटी हुई हैं. झालावाड़ के SP अमित कुमार बुदानिया ने बताया कि जिला कलेक्टर और पुलिस तुरंत मौके पर पहुंचे और घायलों को अस्पताल ले जाया गया.यह हादसा स्कूलों में पुरानी इमारतों और रखरखाव की कमी को लेकर फिर से सवाल उठाता है, लेकिन यह पहली बार नहीं है जब देश में ऐसा कुछ हुआ हो. आइए पहले के कुछ बड़े स्कूल हादसों पर नजर डालते हैं

School Incident in India: कहां कहां हुए ऐसे हादसे?

भारत में स्कूलों में होने वाले हादसे चाहे इमारत ढहने से हों, सड़क दुर्घटनाओं से, या प्राकृतिक आपदाओं से हमेशा से चिंता का विषय रहे हैं.

ट्रक से टकरा गई स्‍कूल बस

11 जनवरी 2024 को पाली जिले के सुमेरपुर बायपास पर एक स्कूल टूर बस एक ट्रक से टकरा गई. इस बस में गुजरात के मेहसाणा से बच्चे और शिक्षक सवार थे. इस हादसे में दो लोगों की मौत हो गई और 20 स्कूली बच्चे घायल हो गए. 11 बच्चों को शिवगंज अस्पताल ले जाया गया, जबकि 9 गंभीर रूप से घायल बच्चों को सिरोही रेफर किया गया.

पानी में फंस गई स्‍कूली वैन

हाल ही में 18 जुलाई 2025 को राजसमंद के केलवाड़ा इलाके में सैलाब में एक स्कूली वैन फंस गई. तेज बहाव के कारण वैन पानी में बहने लगी, लेकिन ड्राइवर की सूझबूझ और स्थानीय लोगों की मदद से बच्चों को सुरक्षित निकाल लिया गया. सौभाग्य से इस हादसे में कोई हताहत नहीं हुआ, लेकिन यह स्कूल वाहनों की सुरक्षा पर सवाल उठाता है.

स्‍कूल की इमारत ढही

वडोदरा के एक निजी स्कूल में बारिश के कारण चार मंजिला इमारत का एक हिस्सा ढह गया. इस हादसे में दो बच्चों की मौत हुई और कई घायल हो गए.जांच में पता चला कि इमारत का निर्माण खराब गुणवत्ता की सामग्री से हुआ था जिसके कारण यह हादसा हुआ. इस घटना ने स्कूलों में बिल्डिंग सेफ्टी को लेकर देशभर में बहस छेड़ दी.

दिल्ली में गिर गई स्‍कूल की दीवार

दिल्ली के कन्हैया नगर में एक स्कूल की दीवार गिरने से पांच बच्चों की मौत हो गई और कई घायल हुए. यह स्कूल एक पुरानी इमारत में चल रहा था और रखरखाव की कमी के कारण यह हादसा हुआ.इस घटना के बाद दिल्ली सरकार ने स्कूलों में सुरक्षा ऑडिट को अनिवार्य करने की बात कही थी.

भूकंप में गईं थीं स्‍कूली बच्‍चों की जानें

26 जनवरी 2001 में गुजरात के भुज में आए भूकंप के कारण कई स्‍कूलों की इमारतें धाराशायी हो गईं. भूकंप ने कई स्कूलों को नुकसान पहुंचाया. इस प्राकृतिक आपदा में कई स्कूली बच्चों की जान गई और सैकड़ों घायल हुए. इस हादसे ने स्कूलों में भूकंप-रोधी इमारतों की जरूरत पर जोर दिया.

स्‍कूलों में क्‍यों होते हैं ऐसे हादसे?

झालावाड़ हादसे की तरह कई स्कूल पुरानी इमारतों में चल रहे हैं, जिनका समय-समय पर रखरखाव नहीं होता.वडोदरा जैसे हादसों में खराब सामग्री और गलत डिजाइन के कारण इमारतें ढह गईं. इसके अलावा स्‍कूलों में सुरक्षा नियमों की अनदेखी होती है. स्कूल बसों या वैन में ओवरलोडिंग, ड्राइवर की लापरवाही या सड़क सुरक्षा नियमों का पालन न करना भी एक कारण है.बाढ़, भूकंप या तालाब फटने के कारण भी ऐसे हादसे देखने में आए हैं. यही नहीं स्कूलों में नियमित सुरक्षा ऑडिट और बिल्डिंग सर्टिफिकेशन की कमी भी इसके लिए जिम्‍मेदार है.

झालावाड़ हादसे से क्‍या मिला सबक?

झालावाड़ की ताजा घटना ने फिर से स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा को लेकर सवाल खड़े किए हैं. इस हादसे के बाद कई सवाल उठ रहे हैं.सबसे प्रमुख सवाल यह है कि स्कूल की इमारत का नियमित निरीक्षण क्यों नहीं हुआ? क्या इमारत का रखरखाव ठीक था? क्या स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा के लिए सख्त नियम लागू करने की जरूरत है? तो आपको बता दें कि CBSE और अन्य शिक्षा बोर्ड पहले ही स्कूलों में सुरक्षा मानकों को लेकर गाइडलाइंस जारी कर चुके हैं. उदाहरण के लिए CBSE के नियमों में कहा गया है कि स्कूल की इमारतें कम से कम 500 वर्ग फुट की होनी चाहिए और हर बच्चे के लिए 1 वर्ग मीटर का स्पेस होना चाहिए लेकिन कई स्कूल खासकर ग्रामीण इलाकों में इन नियमों का पालन नहीं करते.

सरकार और स्कूलों को क्या करना चाहिए?

हर स्कूल की इमारत का सालाना सेफ्टी ऑडिट होना चाहिए, जिसमें भूकंप-रोधी डिजाइन और सामग्री की गुणवत्ता की जांच हो. स्कूल बसों और वैन में ओवरलोडिंग रोकने के लिए सख्त नियम और नियमित चेकिंग होनी चाहिए. स्कूलों में फायर ड्रिल, रेस्क्यू ट्रेनिंग और आपातकालीन निकास की व्यवस्था होनी चाहिए. शिक्षकों और स्टाफ को प्राथमिक चिकित्सा और रेस्क्यू ऑपरेशन की ट्रेनिंग दी जाए.

सुरक्षा से न हो कोई समझौता

झालावाड़ का हादसा एक दुखद चेतावनी है कि बच्चों की सुरक्षा से कोई समझौता नहीं होना चाहिए. चाहे वह 2001 का भुज भूकंप हो, 2013 का वडोदरा हादसा या 2024 का पाली बस हादसा, बार-बार यही सवाल उठता है कि हम अपने बच्चों को स्कूलों में कितना सुरक्षित रख पा रहे हैं.सरकार, स्कूल प्रबंधन और माता-पिता को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि स्कूल न सिर्फ पढ़ाई की जगह हों, बल्कि बच्चों के लिए एक सुरक्षित आश्रय भी हो.

Dhiraj Raiअसिस्टेंट एडिटर

न्यूज़18 हिंदी (Network 18) डिजिटल में असिस्टेंट एडिटर के तौर पर कार्यरत. करीब 13 वर्ष से अधिक समय से मीडिया में सक्रिय. हिन्दुस्तान, दैनिक भास्कर के प्रिंट व डिजिटल संस्करण के अलावा कई अन्य संस्थानों में कार्य...और पढ़ें

न्यूज़18 हिंदी (Network 18) डिजिटल में असिस्टेंट एडिटर के तौर पर कार्यरत. करीब 13 वर्ष से अधिक समय से मीडिया में सक्रिय. हिन्दुस्तान, दैनिक भास्कर के प्रिंट व डिजिटल संस्करण के अलावा कई अन्य संस्थानों में कार्य...

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