नई दिल्ली. चुनाव आयोग (ईसी) ने पिछले दिनों कहा था कि वह वोटिंग की 100 फीसद वेबकास्टिंग की तैयारी कर रहा है, लेकिन अब लगता है कि इस योजना को टाला जा सकता है क्योंकि वीडियो जारी करने से मतदाता की गोपनीयता पर पड़ेगा असर. ईसी सूत्र ने शनिवार को यह जानकारी दी. वेबकास्टिंग की सीसीटीवी फुटेज की मांग पर चुनाव आयोग के सूत्रों के हवाले से खबर मिली है कि वेबकास्टिंग की रिकॉर्डिंग को पब्लिक के सामने नहीं लाया जा सकता. चुनाव आयोग ने फुटेज को सार्वजनिक न करने के कारण भी बताए हैं.
दूसरी तरफ, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने इलेक्ट्रॉनिक डेटा से संबंधित निर्वाचन आयोग के निर्देश का हवाला देते हुए शनिवार को आरोप लगाया कि साफ दिख रहा है कि ‘मैच फिक्स’ है जो लोकतंत्र के लिए जहर है. आयोग ने अपने इलेक्ट्रॉनिक डेटा का उपयोग ‘दुर्भावनापूर्ण विमर्श’ गढ़ने के लिए किए जाने की आशंका के चलते अपने राज्य निर्वाचन अधिकारियों को निर्देश दिया है कि यदि 45 दिन में चुनाव को अदालत में चुनौती नहीं दी जाती तो वे सीसीटीवी कैमरा, वेबकास्टिंग और चुनाव प्रक्रिया के वीडियो फुटेज को नष्ट कर दें.
राहुल गांधी ने एक्स पर क्या लिखा?
राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों को 30 मई को लिखे पत्र में आयोग ने कहा कि उसने चुनाव प्रक्रिया के दौरान कई रिकॉर्डिंग उपकरणों के साथ ही फोटोग्राफी, वीडियोग्राफी, सीसीटीवी और वेबकास्टिंग के माध्यम से चुनाव प्रक्रिया के विभिन्न चरणों को रिकॉर्ड करने के निर्देश जारी किए हैं. लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘वोटर लिस्ट? ‘मशीन रीडेबल फ़ॉर्मेट’ नहीं देंगे. सीसीटीवी फुटेज? कानून बदलकर छिपा दी. चुनाव की फोटो-वीडियो? अब 1 साल नहीं, 45 दिनों में ही मिटा देंगे.’ उन्होंने दावा किया कि जिससे जवाब चाहिए था, वही सबूत मिटा रहा है. उन्होंने आरोप लगाया, “साफ दिख रहा है – मैच फिक्स है. और फिक्स किया गया चुनाव, लोकतंत्र के लिए जहर है.”
वेबकास्टिंग फुटेज से कैसे नुकसान पहुंच सकता है
सूत्रों के मुताबिक, वेबकास्टिंग फुटेज साझा करना, जिससे किसी भी व्यक्ति या समूह द्वारा आसानी से मतदाताओं की पहचान की जा सकती है, उन मतदाताओं को – जिन्होंने मतदान किया है या नहीं किया – असामाजिक तत्वों द्वारा दबाव, भेदभाव और डराने-धमकाने का शिकार बना सकता है. उदाहरण के तौर पर, यदि किसी विशेष राजनीतिक दल को किसी बूथ पर कम वोट मिलते हैं, तो वह सीसीटीवी फुटेज के माध्यम से यह पहचान सकता है कि किस मतदाता ने मतदान किया और किसने नहीं, और इसके बाद वह मतदाताओं को परेशान कर सकता है या उन्हें धमका सकता है.
45 दिनों के बाद चुनाव आयोग को चुनौती नहीं दी जा सकती
यह स्पष्ट किया जाना चाहिए कि भारत निर्वाचन आयोग वेबकास्टिंग का सीसीटीवी फुटेज केवल आंतरिक प्रबंधन उपकरण के रूप में रखता है. यह कोई कानूनी अनिवार्यता नहीं है, और इसे केवल 45 दिनों की अवधि के लिए संरक्षित रखा जाता है, जो चुनाव याचिका दायर करने की समयसीमा के अनुरूप है. क्योंकि 45 दिनों के बाद कोई भी चुनाव आयोग को चुनौती नहीं दे सकता, इसलिए इस अवधि से अधिक समय तक फुटेज संरक्षित रखने से गैर-प्रतियोगियों द्वारा इसके दुरुपयोग की आशंका बढ़ जाती है. यदि 45 दिनों के भीतर कोई चुनाव याचिका दायर की जाती है, तो यह फुटेज नष्ट नहीं की जाती और आवश्यक होने पर सक्षम न्यायालय को सौंपी जाती है.
मतदाताओं की गोपनीयता रखना सबसे अहम
भारत निर्वाचन आयोग के लिए मतदाताओं के हितों की रक्षा करना और उनकी गोपनीयता तथा मतदान की गोपनीयता बनाए रखना सर्वोपरि है, भले ही कुछ राजनीतिक दल या हित समूह आयोग पर दबाव डालें कि वह निर्धारित प्रक्रियाओं को छोड़ दे या मतदाताओं की सुरक्षा चिंताओं की अनदेखी करे. मतदाता की गोपनीयता और मतदान की गोपनीयता को बनाए रखना एक अटल सिद्धांत है, और भारत निर्वाचन आयोग ने कभी भी, अतीत में भी, इस सिद्धांत से समझौता नहीं किया है, जिसे न केवल कानून में मान्यता दी गई है बल्कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी बार-बार इसे बनाए रखा है.
कुछ प्रमुख मुद्दे नीचे दिए गए हैं:
A. वीडियो फुटेज साझा करने से उन मतदाताओं की गोपनीयता का उल्लंघन हो सकता है जिन्होंने मतदान नहीं किया है:
हर चुनाव में कुछ मतदाता ऐसे होते हैं जो मतदान नहीं करते. मतदान दिवस की वीडियो फुटेज साझा करने से ऐसे मतदाताओं की पहचान हो सकती है. इससे यह पता चल सकता है कि किसने वोट डाला और किसने नहीं, जो भेदभाव, सेवाओं से वंचित करने, धमकी या प्रलोभन का आधार बन सकता है.
B. पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज बनाम यूनियन ऑफ इंडिया, (2013) 10 SCC 1 में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि मतदान का अधिकार ‘मत न देने के अधिकार’ को भी शामिल करता है और गोपनीयता का अधिकार उन लोगों को भी प्राप्त है जिन्होंने मतदान नहीं किया है.
फैसले से उद्धरण:
“धारा 79(d), नियम 41(2) और (3) और नियम 49-O से स्पष्ट है कि मतदान न करने का अधिकार भी मान्यता प्राप्त है. यह लोकतंत्र में अभिव्यक्ति का एक हिस्सा है, और इसे उसी प्रकार लागू किया जाना चाहिए जैसे मतदान के अधिकार को.” “मतदान न करने वाले मतदाता का गोपनीयता अधिकार भी अत्यंत महत्वपूर्ण है.”
C. मतदान दिवस की वीडियोग्राफी, फॉर्म 17A प्रदान करने के समान है:
वीडियोग्राफी मतदान केंद्र में मतदाताओं के प्रवेश की क्रमवार जानकारी और उनकी पहचान को रिकॉर्ड करती है, जो कि फॉर्म 17A (चुनाव नियम 49L के तहत) के समान है, जिसमें मतदाता का क्रम, पहचान पत्र विवरण और हस्ताक्षर या अंगूठे का निशान दर्ज होता है. फॉर्म 17A केवल सक्षम न्यायालय के आदेश पर ही उपलब्ध कराया जा सकता है (नियम 93(1) के तहत). अतः वीडियो फुटेज भी केवल सक्षम न्यायालय के आदेश पर ही दिया जा सकता है, क्योंकि जो बात कानून में अनुमत नहीं है, उसे वीडियो फुटेज के माध्यम से प्राप्त करने की अनुमति नहीं दी जा सकती.
D. मतदान की गोपनीयता का उल्लंघन जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 128 के तहत दंडनीय अपराध है:
जो भी व्यक्ति इस प्रावधान का उल्लंघन करता है, उसे 3 महीने तक की सजा या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं. अतः भारत निर्वाचन आयोग कानूनन बाध्य है और प्रतिबद्ध भी कि वह मतदाताओं की गोपनीयता और मतदान की गोपनीयता की रक्षा करे. इसलिए, मतदान केंद्र का वीडियो फुटेज किसी भी व्यक्ति, उम्मीदवार, NGO या किसी तीसरे पक्ष को मतदाता की स्पष्ट सहमति के बिना नहीं दिया जा सकता. वेबकास्टिंग का उपयोग केवल आंतरिक निगरानी के लिए किया जाता है. हालाँकि, आयोग इसे सक्षम न्यायालय — यानी कि माननीय उच्च न्यायालय — को उपलब्ध कराने के लिए तैयार रहता है, जब किसी चुनाव को चुनौती देने वाली याचिका दाखिल की जाती है और न्यायालय द्वारा निर्देश दिया जाता है. न्यायालय भी व्यक्तिगत गोपनीयता का संरक्षक होता है.