लोकसभा चुनाव: क्या कांग्रेस बीजेपी के मजबूत किले जयपुर में लगा पाएगी सेंध?

1 month ago

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बीजेपी के मजबूत किले जयपुर में क्या कांग्रेस लगा पाएगी सेंध? जानें कैसे हैं यहां लोकसभा चुनाव के समीकरण

जयपुर लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व एकमात्र महिला पूर्व महारानी गायत्री देवी ने किया था. उनके अलावा कोई और महिला यहां से विजयी नहीं हुई.

जयपुर लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व एकमात्र महिला पूर्व महारानी गायत्री देवी ने किया था. उनके अलावा कोई और महिला यहां से विजयी नहीं हुई.

जयपुर. भारतीय राजनीति में विकल्प की बात हमेशा होती है. हैरत नहीं कि दूसरे आम चुनाव के बाद ही कांग्रेस के विकल्प के तौर पर एक नई पार्टी के गठन की तैयारी शुरू हो गई थी. तीसरे आम चुनाव से करीब डेढ़ साल पहले तत्कालीन मद्रास (चेन्नई) में 7 जून, 1959 को इस नई पार्टी का ऐलान किया गया. इसका नाम था स्वतंत्र पार्टी और उसके मुख्य वास्तुकार थे स्वतंत्रता सेनानी सी राजगोपालाचारी. स्वतंत्र पार्टी में पूर्व राजा महाराजाओं का खासा असर था.

स्वतंत्र पार्टी के निर्माण में राजगोपालाचारी के साथ ही रियासतों के विलीनीकरण में सरदार पटेल के साथ अहम भूमिका निभाने वाले वीपी मेनन और मीनू मसानी, एन जी रंगा, दर्शन सिंह फेरुमान और के एम मुंशी जैसे दिग्गज भी शामिल थे. लेकिन इन सबके अलावा एक और नाम था जिनकी अहम भूमिका नजर आई 1962 में हुए तीसरे लोकसभा के चुनाव में. यह थीं जयपुर रियासत की पूर्व महारानी गायत्री देवी. उन्होंने 1962 से 1971 तक लगातार तीन बार जयपुर लोकसभा सीट से स्वतंत्र पार्टी के उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीता. उनकी वजह से जयपुर विपक्षी राजनीति और स्वतंत्र पार्टी का एक अहम केंद्र बन गया था.

यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शुमार ऐतिहासिक जयपुर शहर की स्थापना 18 नवंबर 1727 को पूर्व महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने की थी. अपनी तीसरी सदी के करीब पहुंच चुके इस शहर और उसके आसपास के इलाकों में पूर्व रियासतों का खासा असर रहा है. दूसरी ओर जयपुर कांग्रेस का कभी गढ़ रहा भी नहीं. यह इसी से समझा जा सकता है कि अब तक हुए 17 लोकसभा चुनावों में कांग्रेस सिर्फ तीन बार 1952, 1984 और 2009 में ही यहां से जीत दर्ज कर सकी है. 1952 में हुए पहले आम चुनाव में यहां से कांग्रेस के दौलतमल भंडारी विजयी हुए थे. वे राजस्थान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रह चुके थे. इसके तीन दशक बाद 1984 के आम चुनाव में कांग्रेस को जयपुर से पहली बार मौका मिला.

1984 के चुनाव इंदिरा गांधी की शहादत के बाद हुए थे, जिसमें कांग्रेस ने और देश में किसी भी राजनीतिक दल ने पहली और एकमात्र बार 400 सीटों का आंकड़ा पार किया था. तब जयपुर से कांग्रेस के नवल किशोर शर्मा ने भाजपा के सतीश चंद्र अग्रवाल को पराजित किया था. इसके करीब 25 साल बाद 2009 के चुनाव में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता महेश जोशी भाजपा के घनश्याम तिवाड़ी को काफी कम अंतर से पराजित कर पाए थे. महेश जोशी को 3,97,438 वोट मिले थे और घनश्याम तिवाड़ी को 3,81,339 वोट. 2018 के चुनाव में घनश्याम तिवाड़ी ने अपना क्षेत्रीय दल बना लिया था, लेकिन बाद में वे फिर से भाजपा में लौट आए. 2022 में भाजपा ने उन्हें राजस्थान से राज्यसभा में भेजा है.

वैसे यह देखना दिलचस्प है कि जयपुर लोकसभा सीट पर देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस का रिकॉर्ड 1960 के दशक में अस्तित्व में आई स्वतंत्र पार्टी जैसा ही है, जिसका सफर महज तीन चुनाव में खत्म हो गया था. कांग्रेस और स्वतंत्र पार्टी दोनों ने जयपुर सीट से तीन-तीन बार जीत दर्ज की. जयपुर भाजपा का मजबूत गढ़ है, जहां से उसने अब तक सर्वाधिक आठ बार चुनाव जीता है. 1989 से 2004 तक लगातार छह चुनाव में भाजपा के दिग्गज गिरधारी लाल भार्गव विजयी हुए थे. उसके बाद 2014 और 2019 में लगातार दो बार भाजपा के राम चरण बोहरा ने जीत दर्ज की. यहां से एक बार 1957 में निर्दलीय हरीशचंद्र शर्मा ने जीत दर्ज की थी और 1977 और 1980 में लगातार दो बार जनता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में सतीश चंद्र अग्रवाल विजयी हुए थे। हालांकि सतीशचंद्र अग्रवाल बाद में भाजपा में चले गए और 1990 के दशक के मध्य में भाजपा से राज्यसभा के सदस्य भी रहे.

यह भी जानना जरूरी है कि राजस्थान में प्रदेश की राजधानी जयपुर के नाम पर तो लोकसभा सीट है ही, एक जयपुर ग्रामीण सीट भी है. जयपुर ग्रामीण सीट परिसीमन के बाद 2009 में अस्तित्व में आई. 2009 में यहां से कांग्रेस के लालचंद कटारिया विजयी हुए थे और 2014 और 2019 में लगातार दो बार से ओलंपिक पदक विजेता राज्यवर्धन सिंह राठौड़ जीतते आए हैं.

बात जयपुर लोकसभा सीट की करें तो इससे जुड़े कई रोचक तथ्य हैं. एक तो यह कि जयपुर लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व एकमात्र महिला पूर्व महारानी गायत्री देवी ने किया. उनके अलावा कोई और महिला यहां से विजयी नहीं हुई. अलबत्ता 1971 के चुनाव के करीब पांच दशक (48 साल) बाद 2019 में किसी भी राष्ट्रीय दल की उम्मीदवार के रूप में कांग्रेस की ज्योति खंडेलवाल भाजपा के विजयी उम्मीदवार रामचरण बोहरा की मुख्य प्रतिद्वंद्वी थीं.

रामचरण बोहरा पहली बार 2014 में मोदी लहर में रिकॉर्ड 5,39,345 मतों से विजयी हुए थे. यह राजस्थान में सबसे बड़े अंतर की जीत थी. 2014 में उनके मुकाबले कांग्रेस के महेश शर्मा थे. 2019 में रामचंद्र बोहरा के जीत का अंतर कुछ कम होकर 4,30,626 हो गया था. बोहरा को 924,065 वोट मिले थे और ज्योति खंडेलवाल को 4,93,439. तीसरे स्थान पर आए बसपा उम्मीदवार उमराव सलोदिया को केवल 7867 वोट ही मिले.

वास्तव में जयपुर ही नहीं पूरे राजस्थान में तीसरे दल की कोई खास जगह कभी नहीं रही. यहां पारंपरिक रूप से भाजपा और कांग्रेस में ही मुकाबला रहा है. मजेदार तथ्य यह भी है कि दोनों ही दलों में जातिगत समीकरण भी तकरीबन एक जैसे हैं. मसलन, 1984 के चुनाव में यहां से कांग्रेस ने ब्राह्मण नवल किशोर शर्मा को उतारा था और भाजपा उम्मीदवार थे वैश्य समुदाय के सतीशचंद्र अग्रवाल। इसके 35 साल बाद 2019 में इन दोनों समुदायों के उम्मीदवार आमने सामने थे, मगर पार्टियां बदल गई थीं.

भाजपा के रामचंद्र बोहरा ब्राह्मण तो कांग्रेस की ज्योति खंडेलवाल वैश्य समाज से थीं. जयपुर लोकसभा क्षेत्र में वैश्य और ब्राह्मण के साथ राजपूत जाति राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से प्रभावशाली हैं और दोनों का भाजपा और कांग्रेस दोनों मुख्य दलों में असर है. यहां दलित (अनुसूचित जाति) के करीब 13 फीसदी और करीब 15 मुस्लिम वोट हैं. लेकिन इक्का दुक्का विधानसभा क्षेत्रों में ही उनका प्रभाव है. हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपनी सत्ता गंवा दी है.

जयपुर लोकसभा क्षेत्र में आठ विधानसभा क्षेत्र – हवामहल, विद्याधर नगर, सिविल लाइन्स किशनपोल, आदर्श नगर, मालवीय नगर, सांगानेर और बगरू हैं. भाजपा की मजबूती का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इनमें से केवल दो सीटों आदर्श नगर और किशनपोल से ही कांग्रेस उम्मीदवार जीत सके. अब जबकि 18वीं लोकसभा के चुनावों की घोषणा कभी भी हो सकती है. कांग्रेस के लिए भाजपा के इस किले में सेंध लगाना आसान नहीं है.

(डिसक्लेमर: लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. ये उनके अपने निजी विचार हैं.)

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Tags: Jaipur news, Loksabha Elections, Rajasthan news

FIRST PUBLISHED :

March 6, 2024, 16:03 IST

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