राजस्थान की सियासत में जगदीप धनखड़ फैक्टर कितना दिखाएगा असर?

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Last Updated:July 23, 2025, 15:35 IST

Rajasthan Politics : राजस्थान की राजनीति इन दिनों फिर से करवट लेती नजर आ रही है. इसकी चर्चा का केंद्र हैं जगदीप धनखड़ का उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा. इससे उपजे हालात ने राजस्थान में नई अटकलों को जन्म देकर हलचल प...और पढ़ें

राजस्थान की सियासत में जगदीप धनखड़ फैक्टर कितना दिखाएगा असर?जगदीप धनखड़ की राजनीति का डीएनए पूरी तरह से राजस्थान की मिट्टी में रचा-बसा है.

हाइलाइट्स

धनखड़ के इस्तीफे से राजस्थान में सियासी हलचल तेज हुई.धनखड़ का नाम जाट राजनीति में बदलाव का संकेत बन चुका है.राजस्थान में जाट समुदाय की आबादी 12-14 फीसदी है.

जयपुर. राजस्थान के धाकड़ जाट नेता जगदीप धनखड़ के उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने के बाद राजस्थान की राजनीति अंगड़ाई लेने गई है. धनखड़ के अचानक इस्तीफे से यूं तो देशभर में सियासी हलचल मची हुई लेकिन राजस्थान में इसको लेकर कुछ ज्यादा ही अटकलों का दौर चल रहा है. इसकी वजह है राजस्थान धनखड़ का गृह राज्य होना. ये अटकलें सिर्फ संवैधानिक पद के खाली होने की बात नहीं कर रहीं हैं. बल्कि इसके जरिए सूबे में एक नए राजनीतिक अध्याय की भूमिका भी तैयार होती दिख रही है. खासतौर पर जाट राजनीति के लिहाज से.

राजनीति के जानकार बताते हैं कि जगदीप धनखड़ भले ही दिल्ली की सत्ता के गलियारों में उपराष्ट्रपति पद पर रहे हो लेकिन उनका राजनीतिक डीएनए पूरी तरह से राजस्थान की मिट्टी में रचा-बसा है. वे झुंझुनूं जिले से आते हैं जो कि जाट बहुल क्षेत्र है. उन्होंने यहीं से अपनी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत की थी. कांग्रेस में शुरुआती पारी और फिर जनता दल होते हुए भाजपा में आना उनका सफर हमेशा विचारधाराओं से ज्यादा जमीन से जुड़ा रहा है.

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व्यापक स्वीकार्यता वाले चेहरे की है दरकार
राजस्थान में बीते कुछ बरसों से जाट राजनीति में एक नेतृत्व शून्यता रही है. हालांकि बीजेपी और कांग्रेस में समय-समय पर कुछ नाम उभरते रहे हैं, लेकिन उनमें वो व्यापक स्वीकार्यता नहीं दिखी जो किसी एकजुट चेहरे को मिलती है. राजनीति के जानकार मानते हैं कि यदि धनखड़ सक्रिय राजनीति में लौटते हैं तो वे इस खालीपन को भर सकते हैं. बस यही वह संभावना है जो राजनीतिक दलों को बेचैन किए हुए है. राजस्थान में जाट समुदाय की आबादी करीब 12-14 फीसदी मानी जाती है. यह आबादी पश्चिमी राजस्थान की करीब-करीब 60 सीटों पर सीधा असर डालती है. ऐसे में चाहे बीजेपी हो कांग्रेस वह हमेशा जाटों के प्रति नरम रवैया रखती रही है.

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राजस्थान की राजनीति में तैर रहे हैं कई सवाल
उपराष्ट्रपति के रूप में धनखड़ ने खुद को संविधान का सजग संरक्षक और तीखे राजनीतिक विमर्श के बीच एक सधा हुआ संतुलित चेहरा बनाकर प्रस्तुत किया है. यही छवि उन्हें अन्य नेताओं से अलग करती है. धनखड़ के इस्तीफे के बाद क्या बीजेपी उनका कहीं और उपयोग करेगी या फिर उनकी एवज में दूसरी तरीके से जाट समुदाय को संतुष्ट करने का प्रयास करेगी यह अभी भविष्य के गर्भ में है. इस सवाल समेत राजस्थान की राजनीति में तैर रहे अन्य सवालों का जवाब भले ही भविष्य में मिलेंगे, लेकिन इतना तय है कि धनखड़ का नाम अब राजस्थान की राजनीति में केवल चर्चा नहीं बल्कि किसी न किसी बदलाव का संकेत बन चुका है. खासकर जाट राजनीति में.

Sandeep Rathore

संदीप ने 2000 में भास्कर सुमूह से पत्रकारिता की शुरुआत की. कोटा और भीलवाड़ा में राजस्थान पत्रिका के रेजीडेंट एडिटर भी रह चुके हैं. 2017 से News18 से जुड़े हैं.

संदीप ने 2000 में भास्कर सुमूह से पत्रकारिता की शुरुआत की. कोटा और भीलवाड़ा में राजस्थान पत्रिका के रेजीडेंट एडिटर भी रह चुके हैं. 2017 से News18 से जुड़े हैं.

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राजस्थान की सियासत में जगदीप धनखड़ फैक्टर कितना दिखाएगा असर?

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