Last Updated:July 02, 2025, 14:08 IST
Bihar Chunav 2025: बिहार में भूमिहारों का सबसे बड़ा राजनीतिक दुश्मन कौन है? क्या बिहार चुनाव 2025 में भूमिहार उम्मीदवारों की संख्या बढ़ेगी या फिर पहले की तुलना में और घट जाएगी? जानें भूमिहारों का यादव, राजपूत, ...और पढ़ें

बिहार चुनाव 2025 में भूमिहारों को किस जाति से चुनौती मिलेगी?
हाइलाइट्स
बिहार चुनाव 2025 में क्या भूमिहारों का दबदबा होगा?भूमिहार जाति का बिहार में किन-किन जातियों से राजनीतिक दुश्मनी?राजपूत, यादव और कोइरी के साथ ब्राह्णण भी इस बार भूमिहारों से लेंगे हिसाब?Bhumihar in Bihar Chunav 2025 : बिहार चुनाव 2025 में भूमिहार जाति का वोट किस तरफ गिरेगा, इसको लेकर अटकलों का बाजार एक बार फिर से गर्म है. आम तौर पर भूमिहार जाति विधानसभा चुनाव 2005 के बाद से ही एनडीए को वोट करते रहे हैं. भूमिहार वोट का बड़ा हिस्सा जेडीयू और बीजेपी की तरफ जाता है. लेकिन हाल के वर्षों में इस जाति का वोट अलग-अलग पार्टियों में भी जाने लगा है. क्योंकि, बिहार में भूमिहार जाति पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तकरीबन हर जगह कहीं ज्यादा तो कहीं कम मात्रा में हैं. इन इलाकों में भूमिहार जाति की राजनीतिक दुश्मनी स्थानीय सामाजिक समीकरण के हिसाब बनती और बिगड़ती रही है. जैसे मुंगेर, लखीसराय, बेगूसराय और नावादा इलाके में इस जाति कि राजनीतिक दुश्मनी कोइरी और यादवों से रही है. वहीं, आरा, बक्सर, सीवान, छपरा, महाराजगंज और वैशाली में भूमिहारों की राजनीतिक दुश्मनी राजपूत जाति से रही है. इसी तरह मिथिलांचल जैसे दरभंगा, मधुबनी, सहरसा और सुपौल में कुछ विधानसभा सीटों पर ब्राह्मण जाति से रही है. लेकिन, बिहार जातीय जनगणना 2023 में भूमिहारों की आबादी कम होने के बाद इस चुनाव में इनके राजनीतिक गणित पर बड़ा प्रभाव पड़े तो हैरानी नहीं होगी.
भूमिहार, जिन्हें ‘भूमिहार ब्राह्मण’ भी कहा जाता है, बिहार की कुल आबादी में लगभग 2.8–2.9% हिस्सेदारी रखते हैं. बिहार की दूसरी सवर्ण जातिया ब्राह्मण 7%, राजपूत 3.4% के मुकाबले इनकी जनसंख्या कम है. हालांकि, भूमिहार जाति बिहार सरकार के जातीय जनगणना के आंकड़ों को गलत करार देते हुए इससे कहीं ज्यादा अपनी उपस्थिति का दावा करती है. बिहार में भूमिहार जाति के लोग बेगूसराय, मुजफ्फरपुर, नवादा, मुंगेर, वैशाली और पटना के अगल-बगल आरा और बक्सर तक सक्रिय हैं. पूर्वी चंपराण, पश्चिमी चंपारण, मधुबनी, समस्तीपुर और दरभंगा से लेकर नेपाल तक फैले हैं. इसके आलावा तकीबन हर जिले में भूमिहारों की आबादी कमोबेश है.
भूमिहारों का दबदबा है और रहेगा?
अगर बात करें भूमिहारों की प्रतिद्वंदिता की तो यह अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग जातियों से रही है. समस्तीपुर के कई विधानसभा सीटों पर जैसे कल्याणपुर में 2010 तक भूमिहार और कोइरी दोनों प्रतिद्वंद्वी रहे हैं. बाद में आरक्षित सीट बनने से भूमिहार की भूमिका कम हुई. इसी तरह विभुतिपूर विधानसभा सीट पर भी भूमिहार और कोइरी में छत्तीस का आंकड़ा रहा है. इस सीट पर सीपीआई एम के रामदेव वर्मा, जो कोइरी जाति से थे उनकी भूमिहार जाति के चंद्रवली ठाकुर से राजनीतिक अदावत सालों तक रही है. बिहार के ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्रों में भूमिहार अक्सर संपन्न और प्रभावशाली नेता प्रदान करते रहे हैं.
कहीं भूमिहार-यादव तो कहीं भूमिहार-राजपूत में तनातनी
नवादा और मुंगेर लोकसभा क्षेत्रों में भूमिहारों का मुकाबला यादव और कोइरी जाति से रहा है. हालांकि, हाल के वर्षों में दोनों सीटें और इसके अंतगर्त आने वाली कई विधानसभा सीटों पर भूमिहार जाति का कब्जा रहा है. औरंगाबाद, गया, बक्सर, जहानाबाद एरिया में 1990 और 2000 के दशक में भूमिहार और यादव आमने समने रहे हैं. रणवीर सेना बनाने वाले भूमिहार समाज से आने वाले ब्रह्मेश्वर मुखिया की इस एऱिया में अच्छी पक़ड़ रही. खास बात यह है लालू राज में इस एरिया के राजपूत समाज और भूमिहारों में दोस्ती रही. लेकिन हाल के वर्षों में इस एरिया में एक बार फिर से राजपूत और भूमिहार जाति में राजनीतिक दुश्मनी शुरू हो गई है.
क्या बिहार चुनाव 2025 में भी दिखेगा असर?
नवादा, मुंगेर, नालंदा, शेखपुरा जिलों में भूमिहार और कुशवाहा और कुर्मी के बीच जमीन-संसाधन और राजनीतिक नियंत्रण को लेकर कई दंगे और गैंगवार हुए हैं. खासकर अशोक माहतो गैंग बनाम भूमिहार अखिलेश सिंह गिरोह इस एरिया में कई सालों तक एक-दूसरे पर निशाना बनाते रहे हैं. 1987 का डालेचक-भागौरा दंगा दिखाता है कि इस एरिया में राजपूतों का यादवों एवं भूमिहारों से निर्णायक संघर्ष रहा.
भूमिहारों का वर्चस्व बढ़ेगा या घटेगा?
ऐसे में इस बार के बिहार चुनाव में भूमिहार एकता की परीक्षा होने वाली है. बिहार चुनाव 2025 में भूमिहार अगर एकजुट होकर चुनाव लड़ते हैं. खासकर नवादा, मुंगेर, बेगूसराय जैसे सवर्ण प्रभुत्व वाले क्षेत्रों में तो वे यादव-राजपूत–ब्राह्मण और कोइरी और कुर्मी गठबंधन तक को चुनौती दे सकते हैं. लेकिन अगर भूमिहार आरजेडी और इंडिया गठबंधन की तरफ झुकते हैं तो उन्हें यादव-मल्लाह नेटवर्क और कुशवाहा गठबंधन की मदद प्राप्त हो सकती है. लेकिन यह भूमिहारों के पारंपरिक सवर्ण पहचान से समझौता माना जाएगा.
भूमिहार बिहार में जनसंख्या में बेशक कम हैं, लेकिन राजनीतिक रूप से काफी प्रभावशाली हैं. नवादा, मुंगेर, बेगूसराय, लखीसराय, मुजफ्फरपुर, मधुबनी और पूर्वी चंपारण तक इनकी रणनीतिक क्षमता का प्रमाण है. अमूमन मिथलांचल का एरिया छोड़ दें तो ब्राह्मण-भूमिहार मिलकर ही वोट करते हैं. लेकिन, बिहार के अलग-अलग इलाकों में भूमिहार जाति का यादव, राजपूत और कुशवाहा–कुर्मी जातियों के साथ राजनीतिक दुश्मनी रहा है. अगर 2025 में भूमिहार अकेले एकजुट होकर लड़ते हैं और ओबीसी और ईबीसी के साथ समझौते कर लेते हैं तो वे यादव, राजपूत, कुशवाहा-कुर्मी गठबंधन को चुनौती दे सकते हैं. लेकिन इसके लिए आवश्यक है सामूहिक चुनावी रणनीति और साझा उम्मीदवार तय करना.
रविशंकर सिंहचीफ रिपोर्टर
भारतीय विद्या भवन से पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाले रविशंकर सिंह सहारा समय न्यूज चैनल, तहलका, पी-7 और लाइव इंडिया न्यूज चैनल के अलावा फर्स्टपोस्ट हिंदी डिजिटल साइट में भी काम कर चुके हैं. राजनीतिक खबरों के अलावा...और पढ़ें
भारतीय विद्या भवन से पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाले रविशंकर सिंह सहारा समय न्यूज चैनल, तहलका, पी-7 और लाइव इंडिया न्यूज चैनल के अलावा फर्स्टपोस्ट हिंदी डिजिटल साइट में भी काम कर चुके हैं. राजनीतिक खबरों के अलावा...
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