फ्लाइट के इंजन में क्यों फेंके जाते हैं मुर्गे? आखिर क्या है असल वजह

19 hours ago

Last Updated:June 16, 2025, 14:54 IST

Dead Chicken Thrown At Flight Engine: एयर इंडिया फ्लाइट क्रैश के बाद सुरक्षा पर चर्चा बढ़ी है. बर्ड स्ट्राइक टेस्ट में मरे हुए चिकन का उपयोग होता है ताकि इंजन की मजबूती जांची जा सके. यह टेस्ट 1950 के दशक से हो ...और पढ़ें

फ्लाइट के इंजन में क्यों फेंके जाते हैं मुर्गे? आखिर क्या है असल वजह

फ्लाइट के इंजन और विंडशिल्ड पर चिकन क्यों फेंके जाते हैं?

Why Dead Chicken Thrown at Fligh Engine: एयर इंडिया फ्लाइट के क्रैश के बाद लोगों की सुरक्षा की बात होने लगी है. सवाल, उठने लगा है कि फ्लाइट से चिड़िया टकराने और इसे क्रैश होने से कैसे बचाया जा सकता है. कई मौकों पर फ्लाइट के टेकऑफ या फिर लैंडिंग के दौरान वर्ड्स के टकराने से हादसा हो जाता है. टेकऑफ और लैंडिंग के दौरान फ्लाइट्स की रफ्तार 350 किलोमीटर प्रति घंटा रहती है. इस दौरान हल्की टक्कर से फ्लाइट के क्रैश होने की संभावना बढ़ जाती है. कभी-कभी तो ऐसा होता है कि फ्लाइट्स विंडशील्ड से चिड़िया के टकराने से शीशा टूट जाता है, जिससे पायलट तक घायल हो जाते हैं. वहीं, इंजन से किसी छोटी से छोटी चिड़िया के टकराने से इंजन बंद होने का खतरा रहता है. मगर, एक बात हैरान करने वाली है कि फ्लाइट्स के टेकऑफ से पहले मरे हुए चिकन इंजन और विंडशिल्ड पर फेंके जाते हैं. एविएशन इंडस्ट्री में ‘बर्ड स्ट्राइक टेस्ट’ के नाम से जाना जाता है. आखिर ऐसा क्यों होता है?

बर्ड स्ट्राइक यानी जब उड़ान के दौरान कोई पक्षी विमान से टकरा जाता है, तो इससे बड़ा खतरा पैदा हो सकता है. इंजन के बंद होने का खतरा पैदा हो जाता है. उसमें आग लगने की संभावना भी बढ़ जाती है या फिर पूरा इंजन नष्ट हो सकता है. ऐसी घटनाएं विमानन इतिहास में पहले भी कई बार जानलेवा साबित हो चुकी हैं. इसलिए फ्लाइट के टेकऑफ से पहले यह जानना बेहद जरूरी हो जाता है कि अगर उड़ान के दौरान ऐसा कुछ हो, तो इंजन की प्रतिक्रिया क्या होगी.

ग्राउंड टेस्टिंग के दौरान फेंके जाते हैं चिकन

इसके लिए फ्लाइट्स के टेकऑफ से पहले चिकन का इस्तेमाल किया जाता है. जी हां, यह सच है कि विमान के इंजन में जानबूझकर चिकन फेंका जाता है. लेकिन, यह फ्लाइट के उड़ान के दौरान नहीं, बल्कि ग्राउंड टेस्टिंग के समय. दरअसल, जो भी नया इंजन विमान में लगाया जाता है या जिसे सर्टिफिकेशन के लिए भेजा जाता है. उसे इस कठोर परीक्षा से गुजरना होता है. इस टेस्ट के लिए एक खास तरह की ‘एयर गन’ का इस्तेमाल किया जाता है. यह एयर गन चिकन को 200 किलोमीटर प्रति घंटे से भी तेज रफ्तार से इंजन की तरफ फेंकती है. इसके बाद देखा जाता है कि इंजन इस टक्कर को कैसे झेलता है. क्या उसके ब्लेड टूटते हैं? क्या इंजन जलता है या वह खुद को बंद कर सुरक्षित हो जाता है?

जानवरों पर अत्याचार नहीं

यह टेस्ट फ्लाइटस में बैठे लोगों की सुरक्षा से जुड़ी हुई होती हैं. दरअसल, ये चेक किया जाता है कि इंजन हवाई सुरक्षा मानकों पर खरा उतरता है या नहीं. बिना इस प्रक्रिया को पास किए किसी भी इंजन को कॉमर्शियल फ्लाई के लिए परमिशन नहीं मिलता है. खास बात यह है कि यहां इस्तेमाल होने वाला चिकन पूरी तरह से मृत होता है और आमतौर पर मीट प्रोसेसिंग यूनिट्स से लिया जाता है. इसे किसी जानवर पर अत्याचार नहीं माना जाता क्योंकि यह एक जरूरी वैज्ञानिक प्रयोग है.

इमरजेंसी में पायलट को कितना समय मिलेगा

यह टेस्ट तब और भी खास हो जाती है, जब विमान किसी बर्ड हिट जोन के ऊपर से उड़ान भर रहा हो. यहां पर पक्षियों की मौजूदगी अधिक होती तो टकराने का भी खतरा ज्यादा होता है. इस टेस्ट की मदद से यह भी तय किया जाता है कि किसी इमरजेंसी की स्थिति में पायलट को कितना वक्त मिलेगा और इंजन कितनी देर तक काम करता रहेगा. हवाई जहाज के इंजन दुनिया के सबसे शक्तिशाली इंजनों में गिने जाते हैं. फिर भी उनकी ताकत को सिर्फ थ्योरी में नहीं, इस तरह के कठोर टेस्ट्स के ज़रिए भी चेक किया जाता है. चिकन को इंजन में फेंकने की यह प्रक्रिया भले ही हैरान करने वाली हों, लेकिन जब इसके पीछे की वैज्ञानिकता को समझा जाए तो यह पूरी तरह से जायज़ और ज़रूरी लगती है.

बर्ड स्ट्राइक में क्या-क्या होता है?

सबसे पहले प्लेन के उन हिस्सों को चुना जाता है जिन्हें टेस्ट करना है, जैसे इंजन, विंडशील्ड (कॉकपिट का कांच), और पंख (विंग). इन्हें एक मज़बूत फ्रेम पर मजबूती से फिक्स किया जाता है ताकि टक्कर का असर अच्छे से देखा जा सके. इंजन या अन्य हिस्सों पर किस चीज से टक्कर मारी जाएगी, जैसे कि असली मरा हुआ मुर्गा, नकली पक्षी, या जिलेटिन से बनी बॉल. लगभग टेस्ट मामलों में असली मुर्गा ही इस्तेमाल होता है ताकि टेस्ट पूरी तरह रियलिस्टिक हो. एक खास तरह की एयर गन या तोप जैसी मशीन का इस्तेमाल किया जाता है. मुर्गे को लगभग 300 से 500 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से प्लेन के हिस्सों पर दागा जाता है. जब मुर्गा इंजन या विंडशील्ड से टकराता है, तो हाई-स्पीड कैमरे उस पूरे पल को रिकॉर्ड करते हैं. यह जानना जरूरी होता है कि टक्कर से फ्लाइट पर क्या असर पड़ा. इंजीनियर और टेक्नीशियन उस हिस्से की गहराई से जांच करते हैं कि क्या इंजन के ब्लेड टूटे? क्या कांच में दरार आई? या क्या पंख को नुकसान हुआ? अगर टक्कर के बाद कोई गंभीर नुकसान नहीं होता, तो वह इंजन और प्लेन के हिस्से उड़ान भरने के लिए सुरक्षित मान लिए जाते हैं.

कब से हो रहा है टेस्ट?

न्यूज़18 की एक रिपोर्ट के अनुसार, यह परीक्षण 1950 के दशक में डी हैविलैंड कंपनी ने शुरू किया था. टेकऑफ और लैंडिंग के दौरान पक्षी टकराव सेइंजन खराब हो सकता है या विंडशील्ड टूट सकता है. 2009 में न्यूयॉर्क के ला गार्डिया हवाई अड्डे से उड़ान भरने वाले यूएस एयरवेज के एयरबस A320 ने कनाडा गीज़ के झुंड से टकराव के बाद दोनों इंजन डैमेज हो गए थे. पायलट चेस्ली सुलनबर्गर ने फिर भी फ्लाइट को हडसन नदी पर सुरक्षित उतारा था, जिसे “मिरेकल ऑन द हडसन” कहा गया था. इसके बाद अमेरिका भी ‘चिकन’ टेस्ट को मंजूरी दे दिया.

Deep Raj Deepak

दीप राज दीपक 2022 में न्यूज़18 से जुड़े. वर्तमान में होम पेज पर कार्यरत. राजनीति और समसामयिक मामलों, सामाजिक, विज्ञान, शोध और वायरल खबरों में रुचि. क्रिकेट और मनोरंजन जगत की खबरों में भी दिलचस्पी. बनारस हिंदू व...और पढ़ें

दीप राज दीपक 2022 में न्यूज़18 से जुड़े. वर्तमान में होम पेज पर कार्यरत. राजनीति और समसामयिक मामलों, सामाजिक, विज्ञान, शोध और वायरल खबरों में रुचि. क्रिकेट और मनोरंजन जगत की खबरों में भी दिलचस्पी. बनारस हिंदू व...

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