Palestinian State: दूसरे विश्व युद्ध के बाद एक ऐसी संस्था की जरूरत महसूस की गई, जो सभी मुल्कों को साथ लेकर दुनिया में शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करे. इसी मकसद से 24 अक्टूबर 1945 को वजूद में आया 'संयुक्त राष्ट्र'. तब से अब तक संयुक्त राष्ट्र दुनिया के सभी देशों को एक ऐसा मंच मुहैया कराता है, जहां वे अपनी बात बेबाकी से रख सकें और शांति बहाली में जो भी अड़चनें आएं उसे दूर किया जा सके. इधर कुछ सालों से दुनिया में कई देश जंग लड़ रहे हैं. इजरायल और गाजा इनमें अभी सबसे ज्यादा सुर्खियों में है. मंगलवार को दुनिया के कई नेता गाजा और फलस्तीन पर अपनी बात रखने के लिए इसी संयुक्त राष्ट्र की जनरल असेंबली में मौजूद थे. इस दौरान कुछ ऐसा अप्रत्याशित घटा जो इससे पहले शायद ही कभी हुआ हो.
क्या जानबूझकर खराब किया गया माइक्रोफोन?
दरअसल तुर्की, कनाडा और इंडोनेशिया के नेता जब इस वैश्विक मंच से गाजा के हक में आवाज उठा रहे थे, तभी उनके माइक्रोफोन में दिक्कत हो गई. एक साथ तीनों नेताओं के माइक्रोफोन में समस्या आने पर सवाल होने लगे हैं कि क्या ये किसी साजिश का नतीजा है? हालांकि बाद में संयुक्त राष्ट्र के स्टाफ ने साफ किया कि 'इसमें किसी प्रकार की साजिश नहीं है. असेंबली हॉल के इक्विपमेंट में कोई तकनीकी दिक्कत आई थी. इसमें किसी भी तरीके की जानबूझकर छेड़छाड़ जैसी घटना नहीं हुई है.'
हर साल सितंबर में होता है सत्र
दरअसल 23 सितंबर से संयुक्त राष्ट्र महासभा का 80वां अधिवेशन शुरू हुआ है. इसमें सभी देश अपनी बात रखते हैं. अमेरिका के न्यूयॉर्क में इस संस्था का मुख्यालय है. अभी सभी देशों के नेता यहीं जुटे हैं. हर साल सितंबर में महासभा का सत्र शुरू होता है. मंगलवार को इंडोनेशिया के राष्ट्रपति प्रबोवो सुबिआंतो UNGA के मंच से जब गाजा में शांति सैनिक भेजने की अपनी योजना बता रहे थे, तभी अचानक उनका माइक्रोफोन बंद हो गया. वहां मौजूद इंटरप्रेटर जब तक कुछ बोलता, तब तक माइक्रोफोन काम करने लगा.
क्या गाजा की कराह छुपाने की साजिश है?
ऐसा ही कुछ देर पहले तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन के साथ हुआ था. वे भी गाजा में हो रहे नरसंहार के लिए इजरायल को चेतावनी दे रहे थे. एर्दोगन फलस्तीन को तुरंत एक देश के रूप में मान्यता देने की पैरवी कर रहे थे, तभी उनकी भी 'बोलती बंद' हो गई, यानि माइक्रोफोन खराब हो गया. वहां मौजूद लोग कहने लगे कि राष्ट्रपति की आवाज नहीं आ रही है, उनका ऑडियो चला गया है. इस वाकये के बाद वहां कुछ फुसफुसाहट होने लगी. हालांकि थोड़ी ही देर में ये दिक्कत दूर हो गई.
फलस्तीन के हक की बात करने वालों की अनसुनी
सबसे ज्यादा दिक्कत कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी के बोलने के दौरान आई. कार्नी ने फलस्तीन को औपचारिक रूप से मान्यता देने का ऐलान कर दिया. इस पर पूरे हॉल में तालियां गूंजने लगीं. लेकिन कुछ ही देर बाद उनका भी माइक्रोफोन खराब हो गया. तीसरी बार ऐसी दिक्कत आने पर लोग कयास लगाने लगे कि क्या गाजा और फलस्तीन के हक की बात करने वालों के साथ ही ऐसा हो रहा?
इस बार UNGA के 80वें सत्र में फलस्तीन का मसला छाया हुआ है. फ्रांस, बेल्जियम, माल्टा, लक्ज़मबर्ग और कनाडा उन देशों की कतार में आ खड़े हुए हैं जो फलस्तीन को मान्यता दे रहे हैं. सत्र में फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने भी ऐलान कर दिया कि वे भी फिलिस्तीन को मान्यता देते हैं.
अब तक 150 देश फलस्तीन को दे चुके मान्यता
सभा में ऑडियो की समस्याओं के बावजूद फलस्तीन के हक में बात करने वाले देशों की संख्या बढ़ती जा रही है. अब तक लगभग 150 देश इसे मान्यता दे चुके हैं. ब्रिटेन, फ्रांस, कनाडा और अन्य देशों ने हाल के महीनों में अपने रुख बदले हैं, जबकि जापान ने भी संकेत दिया है कि उसका फैसला जल्द ही आ सकता है.
अमेरिका और इजरायल भड़के
इधर फलस्तीन के बढ़ते समर्थकों पर इजरायल आग बबूला हो गया है. प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने फिर से दोहराया है कि वे जॉर्डन नदी के पश्चिम में फलस्तीन को स्थापित नहीं होने देंगे. इजरायल के सुर में सुर अमेरिका भी मिला रहा है. अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप पहले ही कह चुके हैं कि इस मान्यता को हमास को इनाम के रूप में देखा जाएगा.