भारत और पाकिस्तान के बीच लड़ाई के बाद बदली हुई सामरिक हकीकत को लेकर दुनिया अब नए नजरिये से सोचने को मजबूर है. अंतरराष्ट्रीय सैन्य विश्लेषक और इतिहासकार टॉम कूपर ने हाल ही में एक इंटरव्यू में यह बयान देकर भू-राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी कि ‘पाकिस्तान न तो खुद की रक्षा कर सकता है और न ही अपने परमाणु ठिकानों की.’
कूपर का यह बयान ऐसे समय पर आया है जब भारत ने हाल ही में अपनी सैन्य और खुफिया क्षमताओं के जरिये पाकिस्तान को गहरी चोट दी है. हालांकि इसके बावजूद पश्चिमी मीडिया पाकिस्तान के ‘ब्रीफिंग्स’ और एकतरफा नैरेटिव पर भरोसा करता रहा. वहीं भारत की उपलब्धियों और क्षेत्रीय स्थिरता में उसकी भूमिका को लगातार नजरअंदाज करता दिखा.
‘पाकिस्तान परमाणु हथियारों को नहीं संभाल सकता’
समाचार एजेंसी एएनआई से बातचीत में टॉम कूपर ने दो टूक शब्दों में कहा,
‘मुझे चिंता है कि भारत और पाकिस्तान के बीच की नई हकीकत को समझने में वेस्ट को समय लग सकता है. पाकिस्तान न तो खुद की हिफाजत कर सकता और न अपने परमाणु ठिकाने की…’
कूपर के मुताबिक, यह स्थिति एक गंभीर वैश्विक चिंता का विषय होनी चाहिए, लेकिन पश्चिमी राष्ट्र इसे लेकर सुस्त और भ्रमित नजर आते हैं. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान की सैन्य-रणनीतिक क्षमता केवल सतही दिखावे तक सीमित रह गई है, जबकि उसकी अर्थव्यवस्था और आतंरिक स्थिति इतने अस्थिर हो चुके हैं.
वेस्ट की ‘अंधी’ रणनीति
टॉम कूपर का मानना है कि यह वह समय है जब पश्चिम को अपनी विदेश नीति में भारत को प्राथमिकता देनी चाहिए, लेकिन इसके उलट वह अब भी पाकिस्तान की पुरानी छवि और भ्रामक रणनीतिक कथा पर भरोसा कर रहा है.
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कूपर ने स्पष्ट कहा, ‘यह एक अच्छा अवसर है जब वेस्ट को अपनी नीतियों को भारत-केंद्रित बनाना चाहिए. लेकिन मुझे नहीं लगता कि वे ऐसा करेंगे, क्योंकि बहुत सारा अज्ञान, पूर्वाग्रह और पुराने नैरेटिव अब भी उनकी सोच को नियंत्रित करते हैं.’
वह यह भी कहते हैं कि भारत और पश्चिम, दोनों समान रूप से धार्मिक आतंकवाद से प्रभावित रहे हैं, और इस साझा अनुभव के आधार पर उन्हें मिलकर आगे बढ़ना चाहिए.
भारत का बढ़ता सामरिक आत्मविश्वास
कूपर के इस बयान को भारत के उभरते सैन्य आत्मविश्वास के परिप्रेक्ष्य में भी देखा जा रहा है. हाल के वर्षों में भारत ने न केवल सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक के ज़रिए अपने डिटरेंस को सिद्ध किया है, बल्कि अंतरिक्ष, साइबर डोमेन और खुफिया नेटवर्क में भी उसने वैश्विक शक्तियों को प्रभावित किया है.
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पाकिस्तान के भीतर हुए हालिया हमलों और खुफिया असफलताओं के बाद यह स्पष्ट होता जा रहा है कि उसकी सुरक्षा एजेंसियां और रक्षा तंत्र अब भारत की रणनीतिक क्षमता का सामना नहीं कर पा रहे हैं.
पाकिस्तान की छवि और पश्चिमी भ्रम
पश्चिमी मीडिया और थिंक टैंक्स में पाकिस्तान के प्रति नरम रुख लंबे समय से देखा जाता रहा है. अमेरिका और यूरोप ने दशकों तक पाकिस्तान को एक “फ्रंटलाइन सहयोगी” के रूप में देखा, खासकर आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में. लेकिन अब जब पाकिस्तान खुद चरमपंथ का गढ़ बन चुका है और आर्थिक रूप से चीन पर पूरी तरह निर्भर हो चुका है, तब भी पश्चिम उसकी भूमिका की आलोचना करने में हिचक रहा है.
टॉम कूपर का बयान भारत के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर को दिखाता करता है. भारत को अब केवल सैन्य और कूटनीतिक मोर्चे पर नहीं, बल्कि नैरेटिव युद्ध में भी अपनी बात वैश्विक स्तर पर मजबूती से रखनी होगी.