Last Updated:December 07, 2025, 23:04 IST
सीमा पर घुसपैठ रोकने के लिए बारूदी सुरंगें बिछाई जाती हैं. (सांकेतिक तस्वीर)जम्मू-कश्मीर के पुंछ जिले में नियंत्रण रेखा (LoC) के पास एक बड़ी घटना सामने आई है. यहां जंगल में अचानक भीषण आग लग गई. इस आग की तपिश की वजह से जमीन के नीचे बिछी बारूदी सुरंगों में एक के बाद एक विस्फोट होने लगे. रविवार सुबह हुई इस घटना से इलाके में हड़कंप मच गया. गनीमत रही कि इस दौरान किसी तरह का जानी नुकसान नहीं हुआ. ये लैंडमाइंस सीमा पार से होने वाली घुसपैठ को रोकने के लिए बिछाई गई थीं. अधिकारियों के मुताबिक, बालाकोट सेक्टर के जंगलों में जीरो लाइन के पास आग भड़की थी. इसकी चपेट में आकर एंटी-इन्фильट्रेशन ऑब्सटेकल सिस्टम का हिस्सा रहीं करीब आधा दर्जन सुरंगें फट गईं. सेना और प्रशासन आग बुझाने की लगातार कोशिश कर रहे हैं. यह घटना सुरक्षा के लिहाज से संवेदनशील है क्योंकि इससे घुसपैठ रोधी तंत्र प्रभावित हो सकता है.
बालाकोट सेक्टर में धमाकों से दहशत: अधिकारियों ने बताया कि आग लगने की घटना सुबह करीब 10 बजे हुई. बालाकोट के घने जंगलों में अचानक लपटें उठने लगीं. आग इतनी तेज थी कि वह जीरो लाइन तक पहुंच गई. वहां पहले से ही सुरक्षा के लिए बारूदी सुरंगें बिछाई गई थीं. आग की गर्मी के कारण इन सुरंगों में विस्फोट शुरू हो गया. एक अधिकारी ने पुष्टि की है कि छह से ज्यादा बारूदी सुरंगें फटी हैं. हालांकि, अच्छी बात यह है कि इस घटना में सेना के किसी जवान या नागरिक को चोट नहीं आई है. आग बुझाने के प्रयास अभी भी जारी हैं, लेकिन जंगल का इलाका होने के कारण दिक्कते आ रही हैं.
घुसपैठ रोकने वाला सिस्टम हुआ प्रभावित: बॉर्डर पर घुसपैठ रोकने के लिए एक मजबूत सिस्टम काम करता है. इसे घुसपैठ रोधी बाधा प्रणाली (एंटी इनफिल्ट्रेशन ऑब्सटेकल सिस्टम) कहा जाता है. इसके तहत LoC के अग्रिम इलाकों में बारूदी सुरंगें बिछाई जाती हैं. यह पाकिस्तान की तरफ से आने वाले आतंकवादियों को रोकने का कारगर तरीका है. रविवार को हुए विस्फोटों से इस सिस्टम को कुछ नुकसान पहुंचा है. सेना तुरंत ही स्थिति का जायजा ले रही है ताकि सुरक्षा में कोई चूक न हो. जीरो लाइन पर सुरक्षा हमेशा कड़ी रहती है और ऐसे हादसों के बाद चौकसी और बढ़ा दी जाती है.
सैनिकों के पास होते हैं माइंस के नक्शे: LoC पर तैनात जवान 24 घंटे गश्त करते हैं. उनके पास बारूदी सुरंगों वाले इलाके से बचने के लिए डिटेल्ड नक्शे होते हैं. इससे वे सुरक्षित रहते हैं. कभी-कभी तकनीकी कारणों या मिट्टी खिसकने से माइंस अपनी जगह से हटने लगती हैं. इन्हें ‘ड्रिफ्ट माइंस’ कहा जाता है. ऐसे मामलों में ही गश्त के दौरान एक्सीडेंट का खतरा रहता है. लेकिन इस बार आग मुख्य वजह रही. सेना पूरी सावधानी के साथ आग पर काबू पाने की कोशिश कर रही है ताकि और ज्यादा माइंस न फटें.
जम्मू-कश्मीर में बॉर्डर की सुरक्षा व्यवस्था: जम्मू-कश्मीर में बॉर्डर की सुरक्षा दो हिस्सों में बंटी है. एक तरफ 740 किलोमीटर लंबी नियंत्रण रेखा (LoC) है, तो दूसरी तरफ 240 किलोमीटर लंबी इंटरनेशनल बॉर्डर (IB) है. सेना घाटी के बारामूला, कुपवाड़ा और बांदीपोरा जैसे जिलों में LoC की रक्षा करती है. जम्मू संभाग में पुंछ और राजौरी भी इसी दायरे में आते हैं. वहीं, जम्मू, सांबा और कठुआ जिलों में इंटरनेशनल बॉर्डर लगता है. दोनों ही जगहों पर घुसपैठ रोधी सिस्टम लागू है. जंगल की आग अक्सर गर्मियों या सूखे मौसम में इस सिस्टम के लिए चुनौती बन जाती है.
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राकेश रंजन कुमार को डिजिटल पत्रकारिता में 10 साल से अधिक का अनुभव है. न्यूज़18 के साथ जुड़ने से पहले उन्होंने लाइव हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण, ज़ी न्यूज़, जनसत्ता और दैनिक भास्कर में काम किया है. वर्तमान में वह h...और पढ़ें
Location :
Jammu and Kashmir
First Published :
December 07, 2025, 23:04 IST

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