Last Updated:June 08, 2025, 10:54 IST
India-Pakistan News: पहलगाम टेरर अटैक के बाद भारत ने पाकिस्तान पर जो ब्रह्मास्त्र चलाया था, अब उसका असर दिखने लगा है. यही वजह है कि पीएम शहबाज शरीफ की हालत खराब है और भीषण गर्मी में उनका गला सूखने लगा है.

पहलगाम टेरर अटैक के बाद भारत ने सिंधु जल संधि को ठंडे बस्ते में डाल दिया है. अब इसका असर पाकिस्तान में दिखने लगा है. (फाइल फोटो/पीटीआई)
हाइलाइट्स
पहलगाम टेरर अटैक के बाद भारत ने सिंधु जल संधि को ठंडे बस्ते में डालापाकिस्तान के डैम से पानी छोड़ने में 15 फीसद तक की कमी दर्ज की गईपंजाब प्रांत में सूखे जैसे हालात, भारत से बात करने को बेताब हैं शहबाजIndus Water Treaty: पहलगाम टेरर अटैक के बाद भारत की ओर से पाकिस्तान पर जो पहला ब्रह्मास्त्र चलाया गया था, अब उसका असर दिखने लगा है. पड़ोसी देश में पानी की कमी को स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है. सूखे जैसे हालात का सामना कर रहे पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की स्थिति आने वाले समय में और भी गंभीर हो सकती है. भारत की ओर से पश्चिमी नदियों पर नियंत्रण बढ़ाने के कदमों का असर पाकिस्तान में गंभीर जल संकट के रूप में उभर रहा है. CNN-News18 द्वारा देखे गए आधिकारिक पाकिस्तानी आंकड़ों के मुताबिक, इस हफ्ते पाकिस्तान के सिंधु बेसिन में बांधों से छोड़े जा रहे जल प्रवाह में लगभग 15% की गिरावट दर्ज की गई है, जो पिछले साल इसी अवधि की तुलना में कम है.
5 जून को पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में वॉटर रिलीज गिर कर 1.24 लाख क्यूसेक तक पहुंच गया, जो पिछले साल इसी तारीख को 1.44 लाख क्यूसेक था. तरबेला डैम (खैबर पख्तूनख्वा) में जलस्तर 1,465 मीटर पर पहुंच चुका है, जबकि इसका डेड लेवल 1,402 मीटर है. चश्मा डैम (पंजाब) में जलस्तर 644 मीटर है, जो डेड लेवल 638 मीटर से मुश्किल से ऊपर है. मंगला डैम (मीरपुर, झेलम नदी) का जलस्तर 1,163 मीटर तक पहुंच चुका है, जो डेड लेवल 1,050 से थोड़ा ही ऊपर है. बता दें कि डेड लेवल जलस्तर की वह सीमा होती है, जिसके बाद पानी को डैम से छोड़ा नहीं जा सकता है.
खेतीबारी के लिए संकट
पाकिस्तानी अधिकारियों के अनुसार, यह संकट खरीफ सीजन (जून-सितंबर) की शुरुआत में ही 21% जल की कमी को दर्शाता है. माराला (सियालकोट, पंजाब) में 5 जून को चिनाब नदी का औसत जल प्रवाह केवल 3,064 क्यूसेक रह गया, जबकि 28 मई को यह 26,645 क्यूसेक था. एक शीर्ष सरकारी सूत्र के हवाले से बताया गया है कि स्थिति गंभीर है, खासकर जून से सितंबर तक की खरीफ फसल के लिए. मानसून के आगमन से कुछ राहत की उम्मीद जरूर है, लेकिन तब तक नुकसान हो चुका होगा.
गर्मी की मार से हालात के और बिगड़ने की आशंका
जल संकट के बीच पाकिस्तान अब एक और चुनौती का सामना करने जा रहा है. 8 जून से पंजाब, इस्लामाबाद, खैबर पख्तूनख्वा, कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान में गंभीर हीटवेव की चेतावनी जारी की गई है. तापमान सामान्य से 5 से 7 डिग्री अधिक रह सकता है, जिससे जल संकट और विकराल रूप ले सकता है. पिछले महीने एक बयान में पाकिस्तान ने कहा था कि चिनाब नदी में भारत की ओर से कम आपूर्ति के कारण संकट पैदा हो गया है और इससे खरीफ सीजन में पानी की कमी हो जाएगी. पाकिस्तान ने भारत के कदम को एक्ट ऑफ वॉर करार दिया है और चेतावनी दी है कि अगला संघर्ष पानी को लेकर हो सकता है.
भारत का संदेश: पानी और खून एक साथ नहीं बह सकते
भारत ने पिछले कुछ समय में सिंधु जल संधि को लेकर रुख सख्त किया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 मई को गुजरात में कहा था, ‘पानी पर हमारे लोगों का अधिकार है. अभी हमने बस साफ-सफाई शुरू की है और वहां (पाकिस्तान) हड़कंप मचा है.’ भारत ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि संधि ‘अस्थायी रूप से निलंबित’ है और ‘पानी और खून एक साथ नहीं बह सकते’ की नीति पर अमल किया जा रहा है. अब तक पाकिस्तान इस फैसले पर आपत्ति जताते हुए चार पत्र भेज चुका है, लेकिन भारत ने अपने रुख में कोई नरमी नहीं दिखाई है. पीएम मोदी ने कहा था, ‘मैं नई पीढ़ी को बताना चाहता हूं कि देश को कैसे बर्बाद किया गया है. सिंधु जल संधि 1960 में हुई थी. अगर आप इसके विवरण में जाएंगे तो चौंक जाएंगे. यहां तक तय किया गया है कि जम्मू-कश्मीर की दूसरी नदियों पर बने बांधों की सफाई का काम नहीं किया जाएगा. गाद निकालने का काम नहीं किया जाएगा. सफाई के लिए डाउनस्ट्रीम के गेट नहीं खोले जाएंगे. ये गेट 60 साल तक नहीं खोले गए और जो पानी 100% भरा जाना चाहिए था, वो धीरे-धीरे घटकर 2%-3% रह गया.’
सिंधु जल संधि
1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता में सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर हुए थे. इस संधि के तहत तीन पूर्वी नदियों (ब्यास, रावी, सतलुज) का जल भारत को और तीन पश्चिमी नदियों (सिंधु, िचनाब, झेलम) का जल पाकिस्तान को आवंटित किया गया था, हालांकि दोनों देशों को कुछ सीमित प्रयोग की छूट थी. प्रधानमंत्री मोदी ने संधि को देश के साथ ऐतिहासिक अन्याय करार देते हुए कहा था कि पिछले 60 वर्षों से जम्मू-कश्मीर की नदियों पर बने बांधों की सफाई तक की अनुमति नहीं थी.
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