जम्मू-कश्मीर में एक ओर जल प्रलय, दूसरी ओर बर्फबारी, क्या हैं संकेत?

7 hours ago

Last Updated:August 24, 2025, 17:14 IST

जम्मू-कश्मीर इन दिनों दो विपरीत मौसमीय घटनाओं की चपेट में है. मैदानी और निचले इलाकों में लगातार बारिश से बाढ़ जैसी स्थिति बन गई है, वहीं पहाड़ी इलाकों, खासकर किश्तवाड़ और वारवान घाटी के ऊपरी हिस्सों में इस सीजन...और पढ़ें

जम्मू-कश्मीर में एक ओर जल प्रलय, दूसरी ओर बर्फबारी, क्या हैं संकेत?जम्‍मू कश्मीर में कुछ इस तरह कहीं बर्फबारी तो कहीं जल प्रलय.

जम्मू-कश्मीर इन दिनों बिल्कुल अजीब हालत से गुजर रहा है. एक ओर घाटी और मैदानी इलाकों में लगातार बारिश से बाढ़ जैसे हालात बन गए हैं, दूसरी तरफ ऊंचाई वाले इलाके खासकर किश्तवाड़ और वारवान घाटी में सीजन की पहली बर्फबारी हो रही है. यानी एक ही राज्य में कहीं लोग नाव ढूंढ रहे हैं, तो कहीं बर्फ से ढकी ढलानों पर बच्चे खेल रहे हैं. सवाल ये है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है और इसका मतलब हमें क्या समझना चाहिए?

मौसम वैज्ञान‍िकों के मुताबिक, ये सब पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbances) की वजह से हो रहा है. ये एक तरह की हवाओं की लहर है, जो भूमध्यसागर से उठकर हिमालय तक पहुंचती है. जब ये जम्मू-कश्मीर जैसे पहाड़ी इलाकों में टकराती है, तो निचले हिस्सों में जमकर बारिश होती है और ऊपरी इलाकों में तापमान तेजी से गिरकर बर्फबारी शुरू हो जाती है. वैज्ञानिकों के अनुसार, पहाड़ों पर बर्फ और घाटी में बारिश का ये कॉम्बिनेशन असामान्य नहीं, लेकिन अब ये बार-बार और ज्यादा तीव्र रूप में दिख रहा है.

जलवायु परिवर्तन की घंटी
एक और वजह जलवायु परिवर्तन भी है. पहले बर्फबारी का एक तय समय होता था, अक्टूबर-नवंबर के अंत में बर्फबारी होती थी. तब बारिश भी धीरे-धीरे होती थी, लेकिन अब मौसम का कोई भरोसा नहीं. कभी जून-जुलाई में बादल फट जाते हैं. कभी अगस्त-सितंबर में भारी बारिश से बाढ़ आ जाती है. और अब सितंबर के बीच में बर्फबारी शुरू हो गई. ये सब इस बात का साफ संकेत है कि क्लाइमेट चेंज यानी जलवायु परिवर्तन हमारे सिर पर सवार है.

किसका क्या हाल?

मैदान और घाटियों में लगातार बारिश से हालात खराब हैं. खेत डूब रहे हैं, सड़कों पर पानी भर गया है और कई जगह छोटे-छोटे पुल बह गए हैं. घरों में पानी घुसने की वजह से लोग सुरक्षित जगहों की ओर जा रहे हैं. ऊपरी इलाके जहां बर्फ गिरी है, वहां तस्वीर देखने में खूबसूरत लगती है, लेकिन परेशानी भी कम नहीं. सेब, अखरोट जैसी फसलें बर्बाद हो रही हैं क्योंकि अचानक बर्फ का वजन डालियों को तोड़ देता है। जो बर्फ सर्दियों में गिरनी थी, वो पहले ही गिरने लगी.

इतिहास का सबक
पुराने लोग बताते हैं कि पहले बर्फबारी धीरे-धीरे होती थी. पहले एक परत गिरती, फिर दूसरी, और लोग खुद को एडजस्ट कर लेते. अब अचानक भारी बर्फ गिर जाती है, जिससे जान-माल दोनों को खतरा बढ़ जाता है. यही हाल बारिश का भी है. पहले बारिश हफ्तों तक हल्की-हल्की होती थी, अब दो दिन में महीनों का पानी बरस जाता है.

क्यों खतरनाक है ये ट्रेंड?
बाढ़ और लैंडस्‍लाइड: ज्यादा बारिश से नदियां उफान मार रही हैं, और पहाड़ खिसकने का खतरा बढ़ जाता है.
खेती को नुकसान :बेमौसम बर्फबारी और बारिश से किसान सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं.
टूरिज्म पर असर: बर्फबारी टूरिस्ट को लुभाती है, लेकिन जब सड़कें बंद हों और खतरे बढ़ें तो फायदा नुकसान में बदल जाता है.
लाइफस्टाइल में गड़बड़: जिन इलाकों में लोग सितंबर-अक्टूबर तक खेती, शादी-ब्याह या त्योहार की तैयारी करते थे, वहां अब बर्फ और बारिश काम बिगाड़ रही है.

इंसानी गलती भी जिम्मेदार
ये मान लेना कि सिर्फ प्रकृति की वजह से ये सब हो रहा है, पूरी सच्चाई नहीं है. इंसान ने खुद ही अपने लिए खतरे बढ़ा लिए हैं. जंगलों की कटाई से पहाड़ कमजोर हुए हैं. नदियों के किनारे अंधाधुंध निर्माण से पानी का रास्ता बंद हुआ है. अनियंत्रित टूरिज्म और गाड़ियों के धुएं ने भी मौसम को और बिगाड़ा है.

Gyanendra Mishra

Mr. Gyanendra Kumar Mishra is associated with hindi.news18.com. working on home page. He has 20 yrs of rich experience in journalism. He Started his career with Amar Ujala then worked for 'Hindustan Times Group...और पढ़ें

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Location :

New Delhi,New Delhi,Delhi

First Published :

August 24, 2025, 17:14 IST

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