जब ‘हैलो’ कहना बन जाता है पहाड़, ऐसे निखारें शर्मीले बच्चों में कम्युनिकेशन स्किल्स

1 hour ago

नई दिल्ली (इंटरनेट डेस्क), अदिति शुक्ला। सोचिए एक आम-सी शाम। रिश्तेदारों से भरा कमरा, और बीच में खड़ी एक मां जिसके पीछे उसका छोटा बेटा छुपकर झांक रहा है। 'बेटा, हैलो बोलो,' मां मुस्कुराते हुए कहती है। रिश्तेदार भी झुककर प्यार से पूछते हैं, 'क्या नाम है आपका?' लेकिन बच्चा और पीछे हट जाता है, नजरें जमीन पर टिकाए हुए। घर पर घंटों बोलने वाला वही बच्चा बाहर आते ही चुप हो जाता है मानो एक छोटा सा 'hello' उसके लिए किसी पहाड़ को चढ़ने जैसा हो।
ये दुनिया के करोड़ों बच्चों की कहानी है। हर पांच में से एक बच्चा स्वभाव से शर्मीला होता है, और अगर उसे सही दिशा न मिले तो ये झिझक उसके सोशल और इमोशनल डेवलपमेंट में अड़चन बन सकती है। आज
World Hello Day में जानिए कैसे बच्चों से कराएं हैलो।


एक शब्द का वजन कितना भारी होता है

1973 में Yom Kippur War के बाद World Hello Day शुरू हुआ। इसका आइडिया बहुत सिंपल था बस दस लोगों को 'हेलो' बोलो और दिखाओ कि शांति और कम्युनिकेशन कितने इम्पॉर्टेंट हैं। आज ये दिन बच्चों के लिए भी उतना हि जरूरी है, बच्चों के लिए 'हेलो' उनकी सोशल लाइफ का पहला कदम है। स्कूल में दोस्ती बनाना हो, खेल में टीमवर्क दिखाना हो या क्लास में हिस्सा लेना सब कुछ एक छोटे से 'हेलो' से शुरू होता है।


बच्चे बोलते क्यों नहीं? शाइनैस के पीछे छिपी असली वजह

मां के पीछे छिपा बच्चा जिद्दी नहीं होता वो ओवरव्हेल्म्ड होता है। स्टडीज बताती हैं कि शाइनैस अक्सर टेम्परामेंट, चिंता और सामाजिक अनुभवों का मिक्सचर है। ब्रिटिश जर्नल ऑफ डेवलपमेंटल साइकोलॉजी के एक स्टडी के मुताबिक, शर्मीले बच्चे भी पॉपुलर बन सकते हैं अगर उनमें सोशल कम्युनिकेशन स्किल्स मजबूत हों। यानी वोकैबुलरी से ज्यादा जरूरी है यह समझना कि कैसे दूसरों से जुड़ना है। एक और बड़ी स्टडी में पाया गया कि शाइ बच्चे एंग्जायटी और लैंग्वेज-रिलेटेड चैलेंजेज ज्यादा देखते हैं, लेकिन अगर वे प्रीस्कूल में अच्छे प्ले इंटरैक्शन्स और लैंग्वेज एक्सपोजर पाते हैं, तो आगे चलकर उनकी एंग्जायटी काफी कम हो जाती है।


कम्युनिकेशन ही सक्सेज का बेस है

यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन की रिसर्च बताती है कि बच्चा जितनी बेहतर भाषा और कम्युनिकेशन स्किल डेवलप करता है, उसकी अकाडमिक परफॉर्मेंस उतनी ही मजबूत होती है यहां तक कि मैथ्स में भी। किंडरगार्डन टीचर्स भी बताते हैं कि सोशल कम्युनिकेशन स्किल्स टर्न-टेकिंग, ग्रीटिंग, लिसनिंग स्कूल में स्केसज की बुनियाद हैं।

जो बच्चे बेहतर बोल पाते हैं, वे

- ज्यादा कॉन्फिडेंट होते हैं
- जल्दी दोस्त बनाते हैं
- समस्याओं को शांतिपूर्वक हल करते हैं
- लीडरशिप क्वॉलिटीज दिखाते हैं


शर्मीले बच्चे सब जानते हैं पर बोल नहीं पाते

2024 की एक स्टडी के मुताबिर शाइ टोडलर्स वर्बल टास्क्स में कमजोर दिखते हैं, लेकिन नॉन-वर्बल टास्क्स जैसे पॉइंटिंग में अच्छा करते हैं। इसका मतलब है कि वे समझते सब हैं बस सोशल प्रेशर में बोल नहीं पाते। इसे परफॉर्मेंस डेफिसिट कहते हैं, नॉलेज डेफिसिट नहीं। और यह अंतर समझना बेहद जरूरी है।


पीयर इंटरैक्शन की ताकत

वहीं एक्सपर्ट्स के मुताबिक बच्चे अपने हमउम्र साथियों से भाषा सबसे तेज सीखते हैं। जिन बच्चों के दोस्त आर्टिकुलेट होते हैं, उनका वोकैबुलरी तेजी से बढ़ता है। लेकिन शाइ होने के कारण अगर बच्चा दूसरों के साथ खेल ही न पाए, तो लैंग्वेज एक्सपोजर कम हो जाता है और यही एक नेगेटिव सायकल बन जाती है।


ऐसे करें मदद: छोटे कदम, बड़े नतीजे


1. सेफ स्पेसेज बनाएं

छोटे और परिचित माहौल में बातचीत करवाएं जैसे वन-ऑन-वन प्लेडेट्स, घर पर खेल, प्रिडिक्टेबल रूटीन।

2. रोल-प्ले का जादू

गुड़िया, खिलौने या पपेट्स की मदद से 'हैलो कहना', 'खेल में शामिल होना', 'अपना नाम बताना', ये सब प्रैक्टिस कराएं। यह बच्चों के लिए एक तरह की रिहर्सल बन जाता है।

3. खुद मॉडल बनें

बच्चे वही सीखते हैं जो वे देखते हैं। आप वॉर्म ग्रीटिंग्स करेंगे, आई कॉन्टैक्ट बनाएंगे तो बच्चा नैचुरली अपनाएगा।

4. धीरे-धीरे एक्सपोजर बढ़ाएं

आज वेव, कल 'थैंक यू', अगली हफ्ते 'हैलो' छोटे गोल्स रखें। शर्म कम करते-करते कॉन्फिडेंस बढ़ता है।

5. स्पेशल इंटरेस्ट्स का सहारा लें

अगर बच्चा डाइनोसॉर्स या क्रिकेट का फैन है तो उसे फैमिली के सामने मिनी-प्रेजेंटेशन्स करने दें। जब बच्चे अपने पसंदीदा टॉपिक्स पर बोलते हैं, एंग्जायटी घट जाती है।

6. स्टोरी सर्कल्स

कहानियों के जरिए बोलना कम डरावना लगता है। चेन स्टोरीज या ग्रुप स्टोरीटेलिंग shy बच्चों को टर्न-टेकिंग सिखाती है, बिना प्रेशर के।

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क्या न करें

- 'ये बहुत शाइ है, सबके सामने नहीं बोलता' जैसे लेबल्स न लगाएं
- जबरदस्ती हैलो मत बुलवाइए
- दूसरों से कम्पैरिजन न करें
- फ्रस्टेशन या नाराजगी न दिखाएं

ये सारी चीजें एंग्जायटी और बढ़ाती हैं।

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वर्ल्ड हैलो डे की आसान एक्टिविटीज

- अलग अलग लैंग्वेजेस में हैलो कैसे बोलते हैं बच्चों को सिखाएं
- बच्चे को टास्क दें कि आज उसे 10 लोगों से सोशलाइज होना है
- साथ मिलकर हैलो कार्ड्स बनवाएं

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कब लें प्रोफेशनल मदद ?

अगर बच्चा
- सिर्फ खास सिचुएशन्स में कभी नहीं बोलता
- बहुत सीवियर एंग्जायटी दिखाता है
- बोलना रिग्रेस कर गया है
- पीयर्स से बिल्कुल इंटरैक्ट नहीं करता

तो साइकोलॉजिस्ट या स्पीच-लैंग्वेज एक्सपर्ट से सलाह लेना अच्छा रहेगा।

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