Last Updated:July 23, 2025, 14:14 IST
Bihar Chunav 2025: ऐसा लगता है कि आने वाले समय में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की चुनौती उनके अपने ही बढ़ाने वाले हैं, क्योंकि एनडीए में उनके सहयोगी उपेंद्र कुशवाहा कई बार नीतीश कुमार को 'अक्षम' बता चुके हैं तो चिर...और पढ़ें

हाइलाइट्स
उपेंद्र कुशवाहा ने नीतीश कुमार को कमान निशांत कुमार को कमान सौंपने की सलाह दी, परिवारवाद की बहस छिड़ी.चिराग पासवान ने बिहार की कानून-व्यवस्था और पुलिस भ्रष्टाचार को लेकर नीतीश सरकार की तीखी आलोचना की. कुशवाहा और चिराग के बयान, एनडीए में आंतरिक खींचतान बताते हैं, बीजेपी की चुप्पी सियासी रणनीति का संकेत!पटना. बिहार की सियासत में 2025 विधानसभा चुनाव से पहले तापमान बढ़ता जा रहा है. विपक्ष के हमलों के बीच एनडीए गठबंधन के भीतर ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ उनके सहयोगी उपेंद्र कुशवाहा और चिराग पासवान की तल्ख टिप्पणियां सियासी हलचल मचा रही हैं. उपेंद्र कुशवाहा ने हाल ही में नीतीश को सलाह दी कि वे जनता दल (यूनाइटेड) की कमान अपने बेटे निशांत कुमार को सौंप दें. दूसरी ओर चिराग पासवान और उनकी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता बिहार की बिगड़ती कानून-व्यवस्था को लेकर नीतीश सरकार पर लगातार हमलावर हैं. ऐसे में सवाल यह है कि क्या ये बयान नीतीश कुमार के सियासी खेल को बिगाड़ने की रणनीति है या गठबंधन की आंतरिक खींचतान का हिस्सा?
उपेंद्र कुशवाहा की सलाह और परिवारवाद की बहस- बीते 20 जुलाई को नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार के जन्मदिन पर उपेंद्र कुशवाहा ने सोशल मीडिया पोस्ट कर नीतीश कुमार से पार्टी या सरकार की जिम्मेदारी निशांत को सौंपने का आग्रह किया. हालांकि, इस बयान को जेडीयू ने खारिज कर दिया, लेकिन इसने बिहार में परिवारवाद की बहस को हवा दे दी. इसको लेकर राजनीति के जानकारों का मानना है कि यह सलाह नीतीश को कमजोर करने और एनडीए में अपनी स्थिति मजबूत करने का दांव हो सकता है. दरअसल, राष्ट्रीय लोक मोर्चा के नेता उपेंद्र कुशवाहा पहले नीतीश कुमार के करीबी रहे हैं और अब अपनी सियासी जमीन मजबूत करने की कोशिश में लगे हैं. वहीं, बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने भी निशांत कुमार को सीएम बनाने की सलाह देकर इस बहस को और हवा दी, जिसे लालू परिवार पर लगने वाले परिवारवाद के आरोपों को कम करने की रणनीति माना जा रहा है.
चिराग पासवान का कानून-व्यवस्था पर हमला
दूसरी ओर चिराग पासवान ने हाल के महीनों में बिहार की कानून-व्यवस्था पर तीखे सवाल उठाए हैं. बीते 18 जुलाई को उन्होंने बिहार में पुलिस और अपराधियों की मिलीभगत का आरोप लगाते हुए कहा कि थानों में घूसखोरी का धंधा चल रहा है. पटना में गोपाल खेमका और चंदन मिश्रा की हत्याओं का हवाला देकर उन्होंने नीतीश सरकार को कटघरे में खड़ा किया. चिराग ने बुधवार को फिर संसद भवन के बाहर नीतीश सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. मोदी सरकार में मंत्री चिराग ने कहा है कि किसानों को मर्डर के लिए जिम्मेदार ठहराना और बाद में माफी मांगना लीपापोती है. इससे प्रशासन अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकता. वहीं, उनकी पार्टी के सांसद अरुण भारती और राजेश वर्मा ने भी योगी सरकार से सीख लेने की सलाह दी. जाहिर है चिराग पासवान का यह रुख 2020 के विधानसभा चुनाव की याद दिलाता है जब उन्होंने नीतीश कुमार की जेडीयू को कमजोर करने के लिए एनडीए से अलग होकर जेडीयू के खिलाफ उम्मीदवार उतारे थे और नीतीश कुमार की पार्टी को सबसे बड़ी पार्टी से तीसरे नंबर की पार्टी बनने को मजबूर कर दिया था.
क्या है कुशवाहा और चिराग के इन बयानों का मकसद?
दरअसल, नीतीश कुमार 2005 से बिहार के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे हैं और अभी भी एनडीए में बीजेपी के साथ गठबंधन में हैं. हालांकि, चिराग और कुशवाहा के बयान गठबंधन में तनाव की ओर संकेत करते हैं. हालांकि, राजनीति के जानकार चिराग की आलोचना को बीजेपी की चुप्पी के साथ जोड़कर देख रहे हैं, जिससे संदेह पैदा होता है कि क्या बीजेपी चिराग के जरिए नीतीश को कमजोर करने की रणनीति पर काम कर रही है? वरिष्ठ पत्रकार अशोक कुमार शर्मा के अनुसार, बीजेपी विधानसभा चुनाव में अपनी ताकत बढ़ाना चाहती है और चिराग पासवान इस रणनीति का हिस्सा हो सकते हैं, इसकी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है. दूसरी ओर उपेंद्र कुशवाहा की सलाह को उनकी अपनी सियासी प्रासंगिकता बनाए रखने की कोशिश माना जा रहा है, क्योंकि उनकी पार्टी के पास न विधायक हैं न सांसद.
नीतीश कुमार की सियासी स्थिति और गठबंधन की चुनौतियां
दरअसल , नीतीश कुमार का जेडीयू का कोर वोटबैंक अति पिछड़ा और कुर्मी समुदाय उनकी ताकत है. लेकिन, चिराग का दलित वोटबैंक और कुशवाहा का कोइरी समर्थन उनके लिए चुनौती बन सकता है. निशांत कुमार की राजनीतिक एंट्री की चर्चा ने जेडीयू कार्यकर्ताओं में उत्साह तो पैदा किया है, लेकिन नीतीश कुमार ने इस पर चुप्पी साध रखी है. ऐसे में उपेंद्र कुशवाहा और चिराग पासवान के बयान नीतीश के लिए सियासी चुनौती तो हैं, लेकिन इन्हें उनका खेल पूरी तरह बिगाड़ने वाला नहीं माना जा सकता. नीतीश कुमार का अनुभव और जेडीयू का संगठन अभी भी उनकी ताकत हैं. उपेंद्र कुशवाहा का बयान परिवारवाद की बहस को हवा देकर विपक्ष को मजबूत करने की कोशिश हो सकता है, जबकि चिराग की आलोचना बीजेपी की रणनीति के तहत नीतीश को दबाव में लाने का प्रयास दिखता है.
एनडीए में सियासी खींचतान जारी रहेगी या एकजुटता दिखेगी?
हालांकि, इससे चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा की हमला और आग्रह की सियासत भी जुड़ती है. दरअसल, अगर निशांत कुमार की सियासी एंट्री होती है तो इन दोनों ही नेताओं की सियासी महत्वाकांक्षा पर सीधा प्रभाव पड़ेगा, ऐसे में उपेंद्र कुशवाहा ने आग्रह कर संभवत: निशांत की सियासी एंट्री को रोकने की राजनीतिक चाल चल दी है, तो वहीं चिराग पासवान अभी से तैयारी में हैं कि अगर निशांत को नीतीश की विरासत मिलती है तो चिराग अपनी अभी से अलग राह पर चलने वाले नेता के तौर पर स्थापित रहें. बहरहाल, वर्ष 2025 के चुनाव में सीट बंटवारे और गठबंधन की एकता तय करेगी कि यह खींचतान नीतीश के लिए कितनी महंगी पड़ती है. जाहिर है सियासी दलों की एकता ही बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए सरकार का भविष्य तय करेगी.
पत्रकारिता क्षेत्र में 22 वर्षों से कार्यरत. प्रिंट, इलेट्रॉनिक एवं डिजिटल मीडिया में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन. नेटवर्क 18, ईटीवी, मौर्य टीवी, फोकस टीवी, न्यूज वर्ल्ड इंडिया, हमार टीवी, ब्लूक्राफ्ट डिजिट...और पढ़ें
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