एकीकरण, सिविल सेवा और जनगणना… पटेल के वे काम जिसका आज भी कर्जदार है देश

11 hours ago

Last Updated:October 31, 2025, 06:45 IST

एकीकरण, सिविल सेवा और जनगणना… पटेल के वे काम जिसका आज भी कर्जदार है देशसरदार पटेल की 150वीं जयंती आज है.

Sardar Patel Birthday: भारत के ‘लौह पुरुष’ सरदार वल्लभभाई पटेल की 150वीं जयंती पर आज पूरा देश उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है. स्वतंत्र भारत के नक्शे पर अपनी अमिट छाप छोड़ने वाले पटेल ने न केवल देश को एकजुट किया, बल्कि लोकतांत्रिक संस्थाओं की मजबूत नींव भी रखी. 1947 में आजादी के ठीक बाद जब देश विभाजन की त्रासदी से जूझ रहा था तब पटेल ने अपनी कूटनीति और दृढ़ता से भारत को एक सूत्र में पिरोया. उपप्रधानमंत्री और गृह मंत्री के रूप में उन्होंने 565 रियासतों को एकीकृत करने का ऐतिहासिक कार्य संपन्न किया, अखिल भारतीय सिविल सेवा की स्थापना की और 1951 की पहली राष्ट्रीय जनगणना की रूपरेखा तैयार की. उनके इन योगदानों ने भारत को न केवल भौगोलिक रूप से मजबूत बनाया, बल्कि प्रशासनिक और सामाजिक स्तर पर भी स्थिरता प्रदान की. इस बारे में टाइम्स ऑफ इंडिया ने एक खूबसूरत लेख प्रकाशित किया है.

भारत काaa एकीकरण

कूटनीति और बल का संतुलन पटेल की सबसे चमकदार उपलब्धि भारत का एकीकरण रही. 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के समय देश का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा 565 रियासतों के अधीन था. इन रियासतों को नए राष्ट्र की मुख्यधारा में शामिल करना एक जटिल चुनौती थी. पटेल ने अपनी कूटनीति से अधिकांश रियासतों को मनाया, लेकिन कुछ ने विरोध किया. हैदराबाद के निजाम ने सबसे ज्यादा जिद दिखाई. तब पटेल ने अपनी लौह पुरुष वाली छवि दिखाई. ऑपरेशन पोलो के जरिए निजाम को ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन’ पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया. विभाजन ने कम से कम दो लाख लोगों की जान ली थी, लेकिन पटेल की दृढ़ कूटनीति और बल के संयोजन से एकीकृत भारत की यह सबसे कठिन बाधा न्यूनतम मानवीय क्षति के साथ पार की गई. यही कारण है कि उन्हें लौह पुरुष कहा जाता है. उनकी यह रणनीति न केवल रियासतों को जोड़ने में सफल रही, बल्कि नवजात राष्ट्र को आंतरिक स्थिरता भी प्रदान की.पटेल ने समझा कि बिना एकीकृत भूगोल के भारत का लोकतंत्र कमजोर रहेगा. उनकी यह दूरदर्शिता आज भी भारत की एकता का आधार बनी हुई है.

अखिल भारतीय सिविल सेवा की स्थापना

नई स्टील फ्रेम ब्रिटिश शासन में सिविल सेवा को ‘स्टील फ्रेम’ कहा जाता था, जो औपनिवेशिक हितों की रक्षा करती थी. स्वतंत्र भारत में कई लोग इसके निरंतरता पर संशय में थे. लेकिन पटेल ने इसे राष्ट्र निर्माण का आधार माना. अंतरिम सरकार में गृह मंत्री रहते हुए उन्होंने अक्टूबर 1946 में प्रांतीय प्रधानमंत्रियों का सम्मेलन बुलाया, जहां सिविल और पुलिस सेवा के भविष्य पर चर्चा हुई. स्वतंत्रता के बाद पटेल का दृढ़ मत था कि अखिल भारतीय मेरिट-आधारित प्रशासनिक सेवा भारतीयों को एकजुट रखने के लिए आवश्यक है. उनके प्रयासों से इंडियन सिविल सर्विस (आईसीएस) की जगह इंडियन एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस (आईएएस) और इंडियन पुलिस सर्विस (आईपीएस) की स्थापना हुई. यह नई ‘स्टील फ्रेम’ स्वतंत्र भारत की थी. पटेल ने युवा अधिकारियों से कहा कि वे लोगों की सेवा ईमानदारी और विनम्रता से करें. उनकी यह सोच आज भी आईएएस और आईपीएस को राष्ट्र की रीढ़ बनाती है. पटेल समझते थे कि बिना कुशल और निष्पक्ष प्रशासन के लोकतंत्र जीवित नहीं रह सकता. उनकी इस पहल ने भारत को एक मजबूत प्रशासनिक ढांचा दिया, जो विविधता वाले देश को संभालने में सक्षम है.

पहली राष्ट्रीय जनगणना

वैज्ञानिक दृष्टिकोण पटेल ने जनगणना को मात्र सिर गिनती नहीं, बल्कि सामाजिक-आर्थिक डेटा का वैज्ञानिक स्रोत माना. अपनी मृत्यु से महज 10 महीने पहले, फरवरी 1950 में दिल्ली में जनगणना अधीक्षकों के सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए उन्होंने जनगणना के उद्देश्य और दृष्टि को रेखांकित किया. पटेल ने कहा कि जनगणना अब सिर्फ सिरों की गिनती नहीं, बल्कि समाजशास्त्रीय महत्व के मूल्यवान वैज्ञानिक डेटा निकालने का माध्यम है. उन्होंने व्याख्या की कि यह जनगणना लोगों की आजीविका के साधनों और अन्य आर्थिक गतिविधियों से संबंधित बुनियादी आर्थिक डेटा संग्रह पर अधिक ध्यान देगी. पटेल ने जोर दिया कि मैं यह तनाव देना चाहता हूं कि जनगणना सरकार को देश की लंबाई-चौड़ाई में हर घर तक पहुंचने का अवसर प्रदान करती है. सरल शब्दों में पटेल ने 1951 में शुरू हुई पहली जनगणना के ब्लॉक खुद जोड़े. उनकी यह पहल नीति निर्माण के लिए डेटा-आधारित दृष्टिकोण की शुरुआत थी, जो आज भी भारत की योजनाओं का आधार है.

बारडोली सत्याग्रह: सरदार की उपाधि का जन्म

अगर चंपारण सत्याग्रह ने महात्मा गांधी को राष्ट्रीय ख्याति दी, तो बारडोली सत्याग्रह ने पटेल को. 1928 में गुजरात के बारडोली में किसानों ने उच्च करों के खिलाफ विरोध किया. पटेल ने इस जन आंदोलन को व्यवस्थित और अनुशासित तरीके से संगठित किया, जिससे कर वृद्धि रद्द हो गई. इसी से उन्हें ‘सरदार’ की उपाधि मिली, जो जीवनभर उनके साथ रही. इससे पहले 1918 के खेड़ा सत्याग्रह में गांधी की सहायता करते हुए पटेल ने अपनी व्यावहारिक नेतृत्व शैली और किसानों के प्रति दृढ़ता दिखाई. ये आंदोलन पटेल की रणनीतिक सोच के प्रारंभिक उदाहरण थे, जो बाद में राष्ट्रीय स्तर पर फले-फूले.

भारतीय सेना पर सरदार की सोच15 जनवरी 1948 को मुंबई के चौपाटी पर एक लाख लोगों की सभा में पटेल ने घंटे भर का भाषण दिया. उन्होंने कहा कि राष्ट्र की उत्तरजीविता के लिए मजबूत सेना जरूरी है. महात्मा गांधी सशस्त्र शक्ति में विश्वास नहीं करते थे, लेकिन व्यावहारिक व्यक्ति के रूप में मैं महात्मा की सलाह को भारत की सैन्य शक्ति के संदर्भ में स्वीकार नहीं कर सकता. हमारी सेना इतनी मजबूत होनी चाहिए कि कोई शक्ति भारत में हस्तक्षेप करने की सोचे भी नहीं. पटेल की यह व्यावहारिकता गांधीवादी आदर्शों और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच संतुलन दर्शाती है. सरदार पटेल का योगदान भारत की एकता, प्रशासन और डेटा-आधारित शासन की आधारशिला है. उनकी 150वीं जयंती पर उनके आदर्श हमें प्रेरित करते हैं कि दृढ़ता और कूटनीति से किसी भी चुनौती को पार किया जा सकता है.

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First Published :

October 31, 2025, 06:45 IST

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