Last Updated:December 21, 2025, 15:12 IST
राजस्थान के रेतीले धोरों में जीयाराम एक ऐसा नाम था जिससे आज भी सरहदी इलाकों के लोग कांप उठते हैं. 'कुंवारे जंवाई राजा' के नाम से कुख्यात इस हिस्ट्रीशीटर ने 55 से ज्यादा घरों की खुशियां उजाड़ीं. वह अंधेरे का फायदा उठाकर नई दुल्हन के कमरे में पति बनकर घुसता और रात भर सुहागरात का ढोंग कर गहने लूटकर फरार हो जाता था. लोक-लाज के डर से कई पीड़ितों ने कभी मुंह नहीं खोला. देखिए रिश्तों के उस शिकारी की रोंगटे खड़े कर देने वाली कहानी जिसने समाज और रिश्तों को पूरी तरह शर्मसार कर दिया.

राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों में कई ऐसी लोककथाएं हैं जो वीरता और प्रेम की मिसाल देती हैं, लेकिन इसी मिट्टी में एक ऐसी काली कहानी भी दफन है, जिसे सुनकर आज भी सीमावर्ती इलाकों की महिलाएं सिहर उठती हैं. यह कहानी है जीयाराम की, जिसे पुलिस रिकॉर्ड में एक शातिर चोर माना गया, लेकिन समाज की नजरों में ऐसा जंवाई राजा, जो सुहागरात मनाकर सुबह गायब हो जाता. लोग उसे ‘कुंवारे जंवाई राजा’ के नाम से पुकारते थे. जीयाराम का अपराध करने का तरीका इतना वीभत्स और मनोवैज्ञानिक था कि उसने सस्पेंस फिल्मों के खलनायकों को भी पीछे छोड़ दिया था.
रिश्तों की आड़ में रची गई खौफनाक साजिश
जीयाराम की मोडस ऑपरेंडी जितनी शातिर थी, उतनी ही घिनौनी भी. वह बाड़मेर और आसपास के रेतीले इलाकों की दूर-दराज के उस अकेले घर को अपना निशाना बनाता था, जहां हाल ही में खुशियों की शहनाई गूंजी हो. उसके निशाने पर वे घर होते थे जहां की बेटी की नई-नई शादी हुई हो और वह पहली बार अपने मायके आई हो. जीयाराम दिन के उजाले में रेकी करता और यह सुनिश्चित करता कि घर के पुरुष सदस्य किसी काम से बाहर गए हों.
सुहागरात के नाम पर दिया गया धोखा
अंधेरा होते ही वह उस घर में ‘जंवाई राजा’ दामाद बनकर दाखिल होता. उस दौर में गांवों में बिजली की कमी और घूंघट प्रथा के कारण चेहरों की पहचान करना मुश्किल था. घर की बूढ़ी महिलाएं और अन्य सदस्य उसे असली दामाद समझकर उसकी आवभगत में जुट जाते. किसी को अंदाजा भी नहीं होता था कि खातिरदारी का आनंद ले रहा यह शख्स दरअसल एक दरिंदा है.
असली खेल रात के सन्नाटे में
जीयाराम का असली खेल रात के सन्नाटे में शुरू होता था. वह बड़े ही आत्मविश्वास के साथ नई दुल्हन के कमरे में पहुंच जाता. लोक-लाज और सांस्कृतिक संकोच के कारण परिवार का कोई भी सदस्य उस पर शक नहीं करता. वह कमरे में मौजूद नई नवेली दुल्हन के साथ रात बिताता. जैसे ही दुल्हन और घर के अन्य लोग गहरी नींद में सो जाते, जीयाराम अपना असली रंग दिखाता. वह दुल्हन के शरीर से सोने-चांदी के तमाम जेवरात बड़ी सफाई से उतार लेता और घर की तिजोरी साफ कर रफूचक्कर हो जाता. सुबह जब सूरज की पहली किरण के साथ परिवार की नींद खुलती, तब तक ‘जंवाई राजा’ कोसों दूर जा चुका होता था. पीछे रह जाता था एक लुटा हुआ घर, शर्मसार रिश्ते और सदमे में डूबी एक मासूम दुल्हन.
राजस्थान पुलिस का रिकॉर्ड क्या कहता है?
राजस्थान पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक जीयाराम के खिलाफ चोरी, अनाधिकृत प्रवेश और छेड़छाड़ के कुल 17 मामले दर्ज थे. लेकिन हकीकत इससे कहीं ज्यादा भयावह थी. अपराध जगत के जानकारों और उस दौर के लोगों का मानना है कि शिकार हुई महिलाओं और परिवारों की संख्या 55 से भी ज्यादा थी. दरअसल, उस दौर के ग्रामीण समाज में बदनामी और लोक-लाज का डर इतना गहरा था कि कई परिवारों ने पुलिस के पास जाकर रिपोर्ट दर्ज कराना तो दूर, इस बात का जिक्र किसी पड़ोसी से भी नहीं किया. कई दुल्हनों ने तो अपनी पूरी जिंदगी इस राज को सीने में दबाकर ही गुजार दी.
हिस्ट्रीशीटर का उदय और अंत
जीयाराम की आपराधिक कुंडली साल 1988 में खुली, जब चौहटन थाने में उसके खिलाफ पहली बार घर में घुसने का केस दर्ज हुआ. इसके बाद 1990 से 1996 के बीच उसने सिणधरी, समदड़ी, धोरीमन्ना और चौहटन इलाकों में वारदातों की झड़ी लगा दी. साल 1994 में पुलिस ने उसे आधिकारिक तौर पर ‘हिस्ट्रीशीटर’ घोषित कर दिया. वह लगातार जेल जाता और बाहर आकर फिर वही घिनौना काम शुरू कर देता. साल 2003 तक वह पुलिस के लिए एक बड़ी चुनौती बना रहा.
सालों तक अपराध की दलदल में डूबे रहने और जेल की सलाखों के पीछे रहने के कारण जीयाराम का शरीर अंदर से खोखला हो चुका था. उसे फेफड़ों की गंभीर बीमारी ने अपनी चपेट में ले लिया. आखिरकार, वर्ष 2016 में इलाज के दौरान इस शातिर अपराधी की मौत हो गई. जीयाराम तो मर गया, लेकिन उसकी छोड़ी हुई काली छाया आज भी राजस्थान के उन धोरों में महसूस की जाती है, जहां लोग रात को सोने से पहले अपनी खिड़कियां और दरवाजे आज भी बार-बार टटोलते हैं. यह कहानी चेतावनी है कि कैसे एक अपराधी समाज की परंपराओं और विश्वास का फायदा उठाकर मानवता को शर्मसार कर सकता है.
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रविशंकर सिंहचीफ रिपोर्टर
भारतीय विद्या भवन से पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाले रविशंकर सिंह सहारा समय न्यूज चैनल, तहलका, पी-7 और लाइव इंडिया न्यूज चैनल के अलावा फर्स्टपोस्ट हिंदी डिजिटल साइट में भी काम कर चुके हैं. राजनीतिक खबरों के अलावा...और पढ़ें
First Published :
December 21, 2025, 15:12 IST

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