Sookhta Samudra: OMG! हर साल 'धीमी मौत' मर रहा ये समुद्र, प्रत्येक 5 वर्ष में घट रहा 1 मीटर पानी, 2100 ईस्वी तक पूरी तरह हो जाएगा गायब?

14 hours ago

Why is the Caspian Sea drying up: क्या इस धरती पर कोई समुद्र मर रहा है? अगर उत्सुकता वश ये सवाल आपने एआई से पूछेंगे, तो वो तपाक से कहेगा- नहीं, ये सवाल गलत है. कोई सागर मर नहीं रहा, बल्कि सारे समुद्रों में का जलस्तर बढ़ रहा है. जो कि पूरी दुनिया के जलवायु वैज्ञानिकों की चिंता का बड़ा कारण भी है. लेकिन एआई का बताया ये फैक्ट पूरा सच नहीं है. आज की स्पेशल रिपोर्ट में हम जानेंगे ऐसे ही एक समुद्र का अतीत, जिसका वजूद इस धरती पर साढ़े पांच करोड़ साल पहले हुआ करता था. तब दुनिया में दो ही महाद्वीप होते थे. एक गोंडवाना और एक लॉरेशिया. इनके बीच एक ही समुद्र हुआ करता था टेथिस सागर. आप ये जानकर हैरान रह जाएंगे कि हिमालय समेत यूरोप एशिया की कई ऊंची चोटियां उसी समुद्र की उपज हैं. लेकिन आज? धरती पर उस समुद्र का एक ही अवशेष बचा था. लेकिन अब वो भी लगातार सिकुड़ रहा है.

2 करोड़ साल पुराना है इतिहास

इसका इसका 2 करोड़ साल पुराना अतीत. टेथिस सागर. पूरी दुनिया को दो हिस्सों में बांटता हुआ एक ऐसा विशाल समुद्र, जो लुप्त होते होते धरती पर तीन बड़ी निशानियां छोड़ गया. 1. हिमालय पर्वत श्रृंखला   2. आल्प्स माउंटेन रेंज. 3. कैस्पियन सागर

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पहली हिमालय की श्रृंखला, जो अपनी गोद में दुनिया की सबसे ऊंची चोटी समेटे हुए है, दूसरा है यूरोप का आल्पस् माउंटेन रेंज, जो दुनिया के छठे बड़े महादेश यूरोप का प्रकृति कवच है. ये दोनों माउंटेन रेंज टेथिस सागर की तलछटी के ऊपर उठने से बने, जबकि कैस्पियन सागर, टेथिस सागर के मूल स्थान से से विलुप्त होने के बाद की आखिरी निशानी है.

5 देशों के बीच फैला है कैस्पियन सागर 

ये कैस्पियन सागर का अतीत है, मगर अब संकट आ चुका है इसके वर्तमान पर. सवाल ये कि धरती के भविष्य में क्या ये सागर मौजूद रहेगा या नहीं. कैस्पियन सागर का नाम आप में से बहुत दर्शकों ने गाहे बगाहे ही सुना होगा, मगर ये हमारे धरती के इको सिस्टम के लिए बेहद महत्वपूर्ण सागर है. सबसे पहले हम आपको इसकी लोकेशन बताते हैं. कैस्पियन सागर एशिया और यूरोप के 5 देशों के बीच फैला हुआ है. ये देश हैं कजाकिस्तान, तुर्केमेनिस्तान, ईरान, अजरबैजान और रूस. इन पांच देशों के बीच खारे पानी का ये सागर करीब सवा चार लाख किलोमीटर के बीच फैला है. लेकिन इसका न सिर्फ दायरा सिमट रहा है, बल्कि इसका जलस्तर लगातार गिर रहा है. हर साल 15- से 20 सेमी पानी कम हो रहा है  ये एक तरह से सागर नहीं बल्कि खारे पानी की झील है, जो चारो तरफ से जमीन से घिरी हुई है.

सीधे शब्दों में कहें, तो क्लाइमेट चेंज का डायरेक्ट एक्शन. पूरी दुनिया में एक्स्ट्रीम तक पहुंचता मौसम, नतीजा बाढ़, बारिश और तूफानों की अति. 
लेकिन आप हैरान हो रहे होंगे, कि ज्यादा बारिश और बाढ़ से तो समुद्रों का जलस्तर बढ़ रहा है, कई द्वीपों के डूबने का खतरा पैदा हो रहा है, तो फिर कैस्पियन सागर के सूखने का खतरा कैसे पैदा हो गया. विशेषज्ञों ने देखा है कि 100 सालों में 7 से 9 मीटर गिरा है. सिकुड़ने की जो रेट है और भी तेज है वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि 2100 तक जलस्तर 9 से 18 मीटर तक घट सकता है.

अजरबैजान जैसे देश कई सालों से दे रहे चेतावनी

कैस्पियन सागर के भविष्य को लेकर इसके किनारे बसे अजरबैजान जैसे देश कई साल से वार्निंग बेल दे रहे हैं. कई तरह के सवाल उठा रहे हैं. आखिर कैस्पियन सागर के सूखने की वजह क्या है? अगर इसका जलस्तर कम हुआ, तो मिडिल इस्ट और रूसी प्रायद्वीप के बीच ईको सिस्टम पर क्या फर्क पड़ेगा? इस सवाल का जवाब हमने जब समझने की कोशिश की, तो पता चला- कि इसका प्रभाव सिर्फ जलवायु और समुद्री इकोसिस्टम पर ही नहीं पड़ेगा, बल्कि इसका नुकसान आर्थिक भी होगा. बल्कि आर्थिक नुकसान इतना होगा, कि इसके किनारे पांच देशों के साथ आस पास के दर्जनों देशों की अर्थव्यस्था चरमरा जाएगा. इसलिए वैज्ञानिक इसे इको-इनवायरमेंटल डिजास्टर का नाम दे रहे हैं. अगर ये सागर सूख गया, तो यूरोप एशिया का पूरा मध्यक्षेत्र अकल्पनीय आपदा के मुंह में समा जाएगा.

सागर जितने दायरे में फैली ये दुनिया की सबसे बड़ी झील है. इतनी बड़ी, कि यूरोप से लेकर भारत तक का मौसम, यहां से चलने वाली हवाओं से तय होता है. अगर आपने भारतीय उप-महाद्वीप के मौसम में वेस्टर्न डिस्टर्बेंस यानी पश्चिमी विक्षोब का नाम सुना है तो ये भी जान लीजिए, ये विक्षोभ कैस्पियन सागर क्षेत्र से ही जोर पकड़ता है. इसी विक्षोभ से जनवरी से लेकर अप्रैल तक की बारिश होती है.

ये तथ्य धरती के मौसम में कैस्पियन सागर की अहमियत बताता है. लेकिन आज यही जलाशय अपने ताप-संताप के समीकरण में अपना वजूद खो रहा है. 

तेजी से सूख रहा सूखता कैस्पियन सागर

हर साल इसका जलस्तर 30 सेमी कम हो रहा है. पिछले 5 साल में 3 फीट जलस्तर गिरा है. उससे पहले के 5 साल, यानी अब तक दस साल में 1.5 मीटर पानी कम हुआ है. जबकि अगर 30 साल का रिकार्ड देखें, तो ये 2.5 मीटर कम हुआ है. 

भाप बनकर उड़ता पानी, कैसे हो सागर की भरपाई?

कैस्पियन सागर की भौगोलिक स्थिति देखें तो चारों तरफ से ऐसे बंद है कि इसमें वोल्गा को छोड़कर किसी बड़ी नदी का पानी आता है और ना ही समुद्र से जुड़ा है. इसमें आने वाला 80 फीसदी पानी रूस से आने वाली वोल्गा नदी पर ही आधारित है. लेकिन रूस की अपनी जलीय जरूरतें हैं. रूस ना सिर्फ बोल्गा नदी पर बांध बना कर बिजली और सिंचाई की जरूरतों को पहली प्राथमिकता दे रहा है, बल्कि कैस्पियन सागर की बिगड़ती स्थिति से नए संकट को दावत भी दे रहा है. 

इसका असर अभी से देखने को भी मिल रहा है. इस सागर के किनारे 5 देशों के 1.5 करोड़ लोग रहते हैं. इसमें अकेले अजरबैजान की 40 लाख आबादी रहती है. जलस्तर की कमी से लोगों की आजीविका प्रभावित हो रही है. कजाकिस्तान के अकताऊ शहर में दो साल से पेयजल संकट है
यूरोप का ट्रांस कैस्पियन ट्रांसपोर्ट रूट भी बाधित हो रहा है. 

झील की तरह है सागर की बनावट

एक वक्त था, जब कैस्पियन को सागर का दर्जा प्राप्त था. लेकिन इसकी बनावट एक झील की तरह है. इस रूप में ये दुनिया का सबसे बड़ा बंद जलाशय है. इसे नमकीन झील कहा जाता है. इसकी औसत गहराई अब भी 1 किलोमीटर है. ये ना सिर्फ तेल और गैस भंडार है, बल्कि ये स्टर्जन जैसी दुर्लभ मछलियों का घर है. दुनिया भर में इन मछलियों के अंडे, जिन्हें कैवियार कहा जाता है, इसकी भारी मांग है. इसके अलावा भी कैस्पियन सागर में बहुत सारी अनोखी प्रजातियां पाई जाती हैं. लेकिन पानी सूखने के साथ ये सब कुछ संकट में पड़ जाएगा.

कैस्पियन संकट के 3 बड़े नुकसान

जैसा कि वैज्ञानिकों का अनुमान है, अगले 50 साल में अगर कैस्पियन  सागर का जलस्तर 10 मीटर तक गिरता है, तो इसके तीन बड़े नुकसान हो सकते हैं. 

पहला नुकसान

तट के सभी बंदरगाह और व्यापार मार्ग बंद हो जाएंगे.

दूसरा नुकसान

स्टर्जन मछली और सील की कुछ प्रजातियां विलुप्त हो जाएंगी.

तीसरा नुकसान

अरल सागर से बड़ा पर्यावरण असंतुलन खड़ा हो सकता है.

क्या पुरानी गलती दोहरा रहा है रूस?

तो क्या कैस्पियन सागर का सिकुड़ना अरल सागर जैसा संकट खड़ा करने वाला है? ये सागर कैस्पियन सागर के उत्तर में स्थित खारे पानी की दुनिया की चौथी बड़ी झील थी, लेकिन 1960 के दशक से इसमें पानी सूखना शुरु हुआ. आज इसका ज्यादातर हिस्सा रेगिस्तान बन चुका है. अब यहां ठंडी हवा की जगह जहरीली धूल उड़ती है, जो कई देशों में प्रदूषण का कारण बनती है. अरल सागर संकट के पीछे भी रूस की नीतियां जिम्मेदार मानी जाती है. 

सोवियत संघ ने 1960 के दशक में अरल सागर में पानी लाने वाली प्रमुख नदियों अमू दरिया और सीर दरिया के पानी को कपास और अन्य फसलों की खेती के लिए बड़े पैमाने पर मोड़ दिया, जिससे झील में पानी का प्रवाह रुक गया. इसी तरह अमू दरिया से 45 फीसदी पानी मोड़ने वाली काराकुम नहर के निर्माण ने भी अरल संकट को गहरा किया. तो क्या अब यही अनदेखी कैस्पियन सागर से हो रही है...?

बंदरगाहों को गहरा करने की कोशिश शुरू

हालांकि इसी साल अप्रैल से अजरबैजान और रूस ने मिलकर कैस्पियन सागर संकट पर निगरानी के लिए एक साझे समूह का गठन किया है. साथ ही इसके किनारे कुछ बंदरगाहों को गहरा करने के लिए खुदाई भी शुरु हो चुकी है. लेकिन असली चुनौती है इसमें आने वाली नदियों का पानी. अगर पानी नहीं आएगा, तो इस बंद झील को सूखने से कोई नहीं बचा पाएगा.

(शिवांगी ठाकुर की रिपोर्ट)

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