Last Updated:December 20, 2025, 17:46 IST
Gaganyaan Mission: इसरो ने गगनयान मिशन की सुरक्षा की दिशा में बड़ी कामयाबी हासिल की है. चंडीगढ़ में 18 और 19 दिसंबर को ड्रॉग पैराशूट का सफल परीक्षण किया गया. यह टेस्ट रेल ट्रैक रॉकेट स्लेड सुविधा पर संपन्न हुआ. इन पैराशूटों का मुख्य काम क्रू मॉड्यूल की गति को कम करना है. विषम परिस्थितियों में भी इस सिस्टम ने मजबूती साबित की है.
इसरो ने चंडीगढ़ में यह परीक्षण किया. (ISRO)नई दिल्ली. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने गगनयान मिशन की सफलता की दिशा में एक और ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है. इसरो ने 18 और 19 दिसंबर 2025 को चंडीगढ़ स्थित टर्मिनल बैलिस्टिक अनुसंधान प्रयोगशाला (TBRL) में रेल ट्रैक रॉकेट स्लेड (RTRS) सुविधा का उपयोग करते हुए ‘ड्रॉग पैराशूट’ (Drogue Parachutes) के लिए क्वालिफिकेशन टेस्ट सफलतापूर्वक संपन्न किए हैं. यह परीक्षण गगनयान क्रू मॉड्यूल के डिसेलेरेशन सिस्टम (गति कम करने वाली प्रणाली) को विकसित करने के लिए किए गए थे.
इन परीक्षणों का मुख्य उद्देश्य कठिन और विषम परिस्थितियों में ड्रॉग पैराशूट के प्रदर्शन और उनकी विश्वसनीयता का बारीकी से मूल्यांकन करना था. इसरो के अनुसार दोनों परीक्षणों ने अपने सभी उद्देश्यों को पूरा किया है जिससे यह पुष्टि होती है कि उड़ान की स्थितियों में महत्वपूर्ण बदलाव होने पर भी ये पैराशूट पूरी तरह मजबूत और सक्षम हैं. इस सफलता में विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र, एरियल डिलीवरी रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टेब्लिशमेंट और डीआरडीओ का सक्रिय सहयोग रहा है.
रेल की पटरियों पर ‘स्पेस’ की रेस
अक्सर हम रेल की पटरियों का नाम सुनते ही ट्रेनों की कल्पना करते हैं लेकिन इसरो ने इन पटरियों का उपयोग अंतरिक्ष विज्ञान के सबसे कठिन परीक्षणों के लिए किया है. गगनयान मिशन का सबसे चुनौतीपूर्ण हिस्सा अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षित वापसी है. जब क्रू मॉड्यूल पृथ्वी के वायुमंडल में वापस प्रवेश करेगा तो उसकी गति इतनी अधिक होगी कि उसे नियंत्रित करना किसी चुनौती से कम नहीं होगा. यहीं पर ड्रॉग पैराशूट की भूमिका अहम हो जाती है. ये पैराशूट न केवल मॉड्यूल को स्थिर करते हैं बल्कि उसकी गति को उस स्तर तक कम कर देते हैं जहां से मुख्य पैराशूट अपना काम शुरू कर सकें.
10 पैराशूट और सुरक्षा का अभेद्य चक्र
गगनयान क्रू मॉड्यूल की डिसेलेरेशन प्रणाली कुल 10 पैराशूटों का एक जटिल जाल है, जिसमें चार अलग-अलग प्रकार के पैराशूट शामिल हैं. इसकी शुरुआत दो ‘एपेक्स कवर सेपरेशन’ पैराशूट से होती है जो पैराशूट कंपार्टमेंट के सुरक्षा कवच को हटाते हैं. इसके तुरंत बाद दो ड्रॉग पैराशूट तैनात होते हैं जो मॉड्यूल को स्थिरता और शुरुआती धीमी गति प्रदान करते हैं. इसके बाद तीन पायलट पैराशूट निकलते हैं जो अंततः तीन मुख्य पैराशूट को बाहर खींचते हैं. यह पूरी प्रक्रिया सुनिश्चित करती है कि अंतरिक्ष यात्री सुरक्षित रूप से धरती या समुद्र की सतह पर उतर सकें.
मानव अंतरिक्ष उड़ान की ओर मजबूत कदम
यह परीक्षण इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह ह्यूमन स्पेसफ्लाइट के लिए पैराशूट सिस्टम को योग्य बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है. रेल ट्रैक रॉकेट स्लेड (RTRS) का उपयोग करना इसरो की इंजीनियरिंग सूझबूझ को दर्शाता है, जहाँ उच्च गति वाले रॉकेट स्लेड के माध्यम से वास्तविक उड़ान जैसी स्थितियां पैदा की गईं. यह सफलता साबित करती है कि भारत अपने पहले मानव मिशन के लिए तकनीकी रूप से पूरी तरह तैयार है और सुरक्षा मानकों पर कोई समझौता नहीं किया जा रहा है.
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पत्रकारिता में 14 साल से भी लंबे वक्त से सक्रिय हूं. साल 2010 में दैनिक भास्कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण और पंजाब केसरी में एक रिपोर्टर के तौर पर काम किया. इस दौरान क्राइम और...और पढ़ें
First Published :
December 20, 2025, 17:46 IST

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