दुबई एयर शो में भारतीय लड़ाकू विमान तेजस के क्रैश ने दुनियाभर में कुछ ही सेकंड में सुर्खियां बटोर लीं. सबने आसमान में उठता धुआं और आग का गोला देखा, पर सबसे अहम सच वह नहीं था जो दिखाई दिया, बल्कि वह था जिसे समझने की कोशिश किसी ने नहीं की. सोशल मीडिया पर इंजिन, डिजाइन और टेक्निकल खामियों पर उछाले गए आरोपों ने कहानी को तोड़-मरोड़ दिया, जबकि शुरुआती संकेत स्पष्ट रूप से एक ही दिशा की ओर इशारा करते हैं. वह यह कि दुर्घटना फ्लाइंग फिजिक्स की सीमा से जुड़े जोखिम का मामला थी, न कि तेजस की तकनीकी विफलता का.
एयर शो में लड़ाकू विमानों की उड़ानें किसी आम उड़ान जैसी नहीं होतीं. वहां हर एक मनूवर, हर मोड़, हर जी फोर्स (गुरुत्वाकर्षण बल) सीमा पर होता है, ताकि प्रदर्शन प्रभावशाली दिखे. विमान की क्षमताएं देख दुनिया हैरान हो सके. दुबई में तेजस जिस मनूवर में था, वह एक कम ऊंचाई वाला निगेटिव-जी टर्न था. यानी ऐसा मोड़ जिसमें विमान ऊपर की बजाय नीचे की दिशा में जी फोर्स लेता है. यह मनूवर बेहद खतरनाक होता है क्योंकि इसमें ऊंचाई का कुशन नहीं होता. आइए इसे आसान भाषा में समझते हैं.
जैसे ही विमान नेगेटिव-जी मनूवर करके सीधा होने लगता है, उसकी वर्टिकल टिसेंट रेट यानी नीचे गिरने की गति पहले ही खतरनाक स्तर पर होती है. अगर विमान पर्याप्त ऊंचाई पर नहीं होता, तो रिकवरी के लिए समय ही नहीं बचता. यही इस हादसे में हुआ. विमान जमीन छूने से पहले इजेक्शन के चरण शुरू करने तक का समय भी नहीं मिला. यानी इस दुर्घटना में ना तो इंजन ने जवाब दिया, ना डिजाइन टूटा. फिजिक्स जीती और इंसानी प्रतिक्रिया का समय हार गया.
लेकिन तकनीकी सच्चाई की जगह ट्रोल्ड नैरेटिव तेज़ी से फैलता है. दुर्घटना के धुएं के छंटने से पहले ही पड़ोसी देशों के तथाकथित ‘डिफेंस एक्सपर्ट्स’ सोशल मीडिया पर रटा-रटाया दुष्प्रचार फैलाने लगे कि भारतीय फाइटर जेट सुरक्षित नहीं हैं, पायलट ट्रेनिंग कमजोर है वगैरह. वही पुराना पैटर्न, वही रटा हुआ बयान… बिना तथ्य, बिना डेटा, सिर्फ प्रचार.
हकीकत यह है कि दुनिया भर में एयर शो क्रैश होते हैं. चाहे वह देश कितना भी विकसित हो या एयरफोर्स कितनी भी शक्तिशाली. चीन ने भी JH-7 और J-10S डेमो फ्लाइट्स में खोए हैं. अमेरिका के ब्लू एंजेल्स और थंडरबर्ड्स जैसी टीमों ने भी F-18 और F-16 डेमोंस्ट्रेशन दुर्घटनाओं में पायलट खोए हैं. अंतर बस इतना है कि कुछ देश अपनी दुर्घटनाओं को छिपा लेते हैं, जबकि खुली लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले देश इनके बारे में पारदर्शी रहते हैं.
दुबई हादसा इंडियन एयरफोर्स, तेजस प्रोग्राम और उस पायलट के परिवार के लिए गहरा आघात है, जिसने अपनी जान खोकर भी अपने देश की क्षमता दुनिया के सामने रखी. लेकिन दुर्घटना को तेजस की तकनीक पर हमला करने का आधार बनाना न सिर्फ गलत है, बल्कि बचकानी सोच है.
तेजस अब भी अपनी कैटेगरी में दुनिया के सबसे सुरक्षित लड़ाकू विमानों में शामिल है. दुनिया भर में हजारों उड़ान के बाद उसके पास हादसों का रिकॉर्ड सबसे कम है और दुबई हादसा भी उन चरम मनूवर में हुआ, जिसमें दुनिया के कई देशों ने अपने-अपने विमान खोए हैं.
यह सच भी नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए कि दुर्घटना के बाद तेजस की विदेशी बिक्री पर असर पड़ेगा, क्योंकि डिफेंस प्रोक्योरमेंट हमेशा तकनीक से कम और धारणा, राजनीति और कूटनीति से ज्यादा प्रभावित होता है. चीन जैसे देश इसे अवसर की तरह भुनाने की कोशिश करेंगे. कुछ खरीदार इंतजार करेंगे, कुछ जांच रिपोर्ट का इंतजार करेंगे.
यही वजह है कि भारत को इस समय रक्षात्मक रवैया नहीं, बल्कि पारदर्शिता और दृढ़ता दिखानी चाहिए. जांच पूरी हो, रिपोर्ट सार्वजनिक हो, टेस्ट प्रोफाइल और सर्किट सेफ्टी जहां-जहां सुधार की जरूरत हो, की जाए. और तेजस लगातार उड़ान जारी रखे… क्योंकि यही सबसे शक्तिशाली जवाब होगा.
तेजस क्रैश की सही कहानी एक लाइन में समझना हो तो यह जी-मनूवर था, डिजाइन फेल्यर नहीं. इसे इंजिन या संरचना पर दोष देना विमानन भौतीकी को न समझने जैसा है. भारत के एक वीर योद्धा ने अपनी जान गंवाई. हमें भावनाओं से निर्णय लेने की बजाय सच्चाई देखनी होगी. और सच्चाई यह है कि तेजस मजबूत है, सुरक्षित है और भारत की एयरोस्पेस महत्वाकांक्षा आजजहां है, वह इसी विमान के कारण है.
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2 hours ago
