नई दिल्ली. 15 फरवरी 2024 को भारत की राजनीति और चुनावी फंडिंग के इतिहास में यह एक निर्णायक तारीख बन गई थी. इस दिन सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को असंवैधानिक बताते हुए बंद करने का आदेश दिया था. अदालत का साफ कहना था कि लोकतंत्र में चंदे की गोपनीयता नहीं, बल्कि पारदर्शिता जरूरी है. लेकिन ताजा आंकड़ा है कि 2024-25 में अनुमानित 2,668 करोड़ रुपये का चंदा बांटा गया है, जिसमें से 2,180 करोड़ रुपये केवल भाजपा को मिले हैं, 216 करोड़ रुपये कांग्रेस के खाते में गए हैं. अब जबकि इलेक्टोरल बॉन्ड योजना बंद हो चुकी है तो फिर ये चंदा कहां से आ रहा है, किस रास्ते से आ रहा है, कौन तय कर रहा है कि किस राजनीतिक दल को कितना फंड मिलेगा?
सबसे बड़े सवाल का जवाब है प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट (Prudent Electoral Trust). यह भारत का सबसे प्रभावी और धनी चुनावी ट्रस्ट है, जो 2024 के बाद नहीं, बल्कि 2013 से कॉरपोरेट जगत और राजनीति के बीच एक पुल की तरह काम कर रहा है. यह ट्रस्ट 2013 में भारती एंटरप्राइजेज (एयरटेल की मूल कंपनी) द्वारा ‘सत्य इलेक्टोरल ट्रस्ट’ के नाम से शुरू हुआ था. 2014 में इसका नाम बदलकर प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट कर दिया गया. यह ट्रस्ट कंपनीज़ एक्ट अधिनियम की धारा 8 (गैर-लाभकारी) कंपनी के रूप में रजिस्टर्ड है और सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेज (CBDT) द्वारा स्वीकृत इलेक्टोरल ट्रस्ट स्कीम के अंतर्गत संचालित होता है.
जब इलेक्टोरल बॉन्ड्स का चैप्टर बंद हो चुका है, तब राजनीतिक दलों के लिए प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट और भी महत्वपूर्ण हो गया है. सवाल सिर्फ पैसे का नहीं, बल्कि उस रास्ते का है, जिससे सत्ता और विपक्ष तक पैसा पहुंचता है. 2013 से अब तक इस ट्रस्ट ने किसे कितना चंदा दिया, किन कॉरपोरेट घरानों ने इसमें भूमिका निभाई, और इसकी कार्यप्रणाली कैसे लोकतंत्र को प्रभावित करती है? इन तमाम सवालों के जवाब नीचे दिए गए हैं-
कौन चलाता है प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट? कहां से आता है चंदा
वर्तमान में यह इंडिपेंडेंट प्रोफेशनल्स और ऑडिटर्स द्वारा संचालित होता है. ट्रस्ट के वर्तमान शेयरधारक और निदेशक (जो ट्रस्टी के रूप में कार्य करते हैं) हैं, उनमें मुकुल आनंद गोयल (Mukul Anand Goyal) और गणेश वी. वेंकटचलम (Ganesh V. Venkatachalam) के नाम प्रमुख हैं.
ये दोनों 2014 से निदेशक हैं. मूल रूप से भारती ग्रुप के कार्यकारी इसमें शामिल थे, लेकिन बाद में इसे स्वतंत्र दिखाने के लिए कुछ शेयरधारकों को ट्रासफर किया गया. इसके बाद भी हालांकि इसका असली कंट्रोल भारती ग्रुप के पास ही माना जाता है.
यह ट्रस्ट कैसे ऑपरेट करता है?
ट्रस्ट कॉर्पोरेट्स और व्यक्तियों से चंदा एकत्र करता है. इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम में कंपनियां या कोई व्यक्ति सीधा राजनीतिक दलों को फंड देता था, लेकिन यहां कंपनियां सीधे राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने के बजाय इस ट्रस्ट में जमा करती हैं. ट्रस्ट को एक वित्तीय वर्ष में प्राप्त कुल चंदे का कम से कम 95 फीसदी हिस्सा राजनीतिक दलों को उसी वर्ष वितरित करना ही होता है. यह अनिवार्य नियम है.
प्रूडेंट ट्रस्ट को हर साल चुनाव आयोग (ECI) को अपनी योगदान रिपोर्ट (Contribution Report) सौंपनी होती है. इसमें डोनर का नाम और किस पार्टी को कितना पैसा दिया गया, इसका पूरा हिसाब होता है. दानदाताओं की पहचान ट्रस्ट की रिपोर्ट में सार्वजनिक होती है, लेकिन प्रत्येक दानदाता द्वारा दिए गए चंदे की रकम की जानकारी गोपनीय रहती है.
इकट्ठा किया गया फंड राजनीतिक दलों में बांटा जाता है. यह मुख्य रूप से चंदा देने वालों की इच्छा या ट्रस्ट के फैसले के आधार पर तय होता है कि किस राजनीतिक दल को कितना फंड दिया जाना है. अगर एक मोटे-मोटे आंकड़े की बात करें तो प्रूडेंट ने ऐतिहासिक रूप से लगभग 80 फीसदी फंड भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को दिया है.
2024-25 में इसके प्रमुख दानदाताओं में भारती एयरटेल, डीएलएफ, हीरो मोटोकॉर्प, जुबिलेंट फूडवर्क्स, जेके टायर, इंडियाबुल्स, ओरिएंट सीमेंट और मेघा इंजीनियरिंग जैसी कंपनियां रही हैं.
किस पार्टी को किस वर्ष कितना फंड्स मिला?
2013 से अब तक प्रूडेंट ट्रस्ट ने लगभग 5,000 करोड़ रुपये से अधिक का चंदा जुटाया किया है. यह चंदा किन-किन दलों को गया है. ADR (Association for Democratic Reforms) और चुनाव आयोग की रिपोर्टों के आधार पर प्रमुख वर्षों का डेटा नीचे दिया गया है-
| वित्तीय वर्ष | कुल एकत्रित फंड (लगभग) | BJP को मिला (लगभग) | कांग्रेस (INC) को मिला | अन्य दल (BRS, YSRCP, आदि) |
| 2013-14 से 2017-18 | ₹750 करोड़+ | ₹620 करोड़ | ₹50 करोड़ | ₹80 करोड़ |
| 2018-19 (चुनाव वर्ष) | ₹530 करोड़ | ₹405 करोड़ | ₹55 करोड़ | ₹70 करोड़ |
| 2019-20 | ₹271 करोड़ | ₹217 करोड़ | ₹31 करोड़ | ₹23 करोड़ |
| 2020-21 | ₹245 करोड़ | ₹209 करोड़ | ₹2 करोड़ | ₹34 करोड़ |
| 2021-22 | ₹464 करोड़ | ₹336 करोड़ | ₹18 करोड़ | ₹110 करोड़ |
| 2022-23 | ₹366 करोड़ | ₹259 करोड़ | ₹10 करोड़ | ₹97 करोड़ |
| 2023-24 | ₹1,218 करोड़ | ₹723 करोड़ | ₹156 करोड़ | ₹339 करोड़ |
| 2024-25 (अनुमानित) | ₹2,668 करोड़ | ₹2,180 करोड़ | ₹216 करोड़ | ₹272 करोड़ |

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