Explained: तुलबुल प्रोजेक्ट भारत के लिए क्यों अहम, पाकिस्तान की कैसे अटकी जान?

6 hours ago

जम्मू-कश्मीर की राजनीति में अचानक से एक बार फिर तुलबुल नेविगेशन प्रोजेक्ट को लेकर गरमाहट आ गई है. मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती के बीच इस मुद्दे पर बुधवार को खूब जुबानी जंग देखी गई. दोनों के बीच यह लड़ाई तब शुरू हुई, जब उमर अब्दुल्ला ने सिंधु जल संधि (IWT) के सस्पेंड रहने के मद्देनजर वुलर झील पर तुलबुल प्रोजेक्ट पर दोबारा काम शुरू करने की बात कही. हालांकि महबूबा को यह बात नागवार गुजरी और उन्होंने उमर के बयान को ‘गैर-जिम्मेदाराना’ और ‘खतरनाक रूप से भड़काऊ’ बताया.

उधर सीएम मुख्यमंत्री ने पलटवार करते हुए कहा कि वह इस बात को स्वीकार करने से इनकार कर रही हैं कि सिंधु जल संधि जम्मू-कश्मीर के लोगों के साथ ‘ऐतिहासिक विश्वासघात’ है, क्योंकि वह ‘ओछे’ प्रचार और सीमा पार के कुछ लोगों को खुश करने की ‘अंध लालसा’ में डूबी हुई हैं.

तुलबुल प्रोजेक्ट को लेकर उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती के बीच इस जुबानी जंग से इतर देखें तो विशेषज्ञों की राय में यह प्रोजेक्ट भारत के लंबे समय के हितों के नजरिये से फायदेमंद होगा. तुलबुल परियोजना को न सिर्फ कश्मीर के सामाजिक-आर्थिक विकास से जोड़ा जा रहा है, बल्कि यह अब भारत की रणनीतिक प्राथमिकताओं में भी अहम स्थान रखती है — खासकर तब, जब भारत ने पहलगाम आतंकी हमले के बाद सिंधु जल संधि (IWT) को सस्पेंड कर दिया है.

क्या है तुलबुल प्रोजेक्ट?

तुलबुल नेविगेशन प्रोजेक्ट को वुलर बैराज भी कहा जाता है. यह जम्मू-कश्मीर के बारामूला जिले में स्थित वुलर झील के मुहाने पर प्रस्तावित एक लॉक-कम-कंट्रोल स्ट्रक्चर है. इसका मकसद झेलम नदी में जल प्रवाह को नियंत्रित करना है, ताकि अक्टूबर से फरवरी के बीच जब पानी कम हो जाता है, तब भी नाविक यातायात बना रहे. यह झेलम घाटी में जल परिवहन को सुविधाजनक बनाने के साथ-साथ क्षेत्रीय जल प्रबंधन और बाढ़ नियंत्रण में भी मदद करता है.

पाकिस्तान क्यों कर रहा है विरोध?

1987 में भारत ने इस परियोजना पर काम शुरू किया था, तब पाकिस्तान ने इसका विरोध किया और इसे सिंधु जल संधि का उल्लंघन बताया. पाकिस्तान का दावा है कि यह परियोजना एक तरह का ‘स्टोरेज बैराज’ है और संधि के अनुसार भारत को झेलम नदी की मुख्य धारा पर जल संग्रहण की अनुमति नहीं है. पाकिस्तान का तर्क है कि यह ढांचा लगभग 0.3 मिलियन एकड़ फीट (0.369 बिलियन घन मीटर) तक पानी संग्रह कर सकता है.

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हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि यह सिर्फ एक व्याख्या का मामला है. टाइन्स ऑफ इंडिया अखबार के साथ बातचीत में मनीष पर्रिकर रक्षा अध्ययन और विश्लेषण संस्थान (IDSA) के वरिष्ठ फेलो डॉ. उत्तम सिन्हा कहते हैं, ‘भारत ने हमेशा यह तर्क दिया है कि यह ‘नॉन-कंजम्पटिव’ यानी पानी की खपत नहीं करने वाला उपयोग है, जिसे IWT के तहत अनुमति प्राप्त है. पाकिस्तान अब तक यह साबित नहीं कर पाया है कि इस परियोजना से उसे नीचे की ओर जल उपयोग में कोई हानि होगी.’

भारत के लिए क्यों है अहम?

भारत के लिए यह परियोजना कई स्तरों पर महत्वपूर्ण है. सबसे पहले, यह जम्मू-कश्मीर की जनता की वर्षों पुरानी मांगों से जुड़ी है, जिनकी विकास की आकांक्षाओं को अब तक ‘डिप्लोमैटिक कूटनीति’ के नाम पर दबा दिया गया. दूसरा, यह परियोजना वुलर झील से जल निकासी की प्रक्रिया को संतुलित करने में मदद करेगी, जिससे निचले क्षेत्रों में जल-जमाव और बाढ़ का खतरा कम होगा.

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केंद्रीय जल आयोग के पूर्व अध्यक्ष कुशविंदर वोहरा ने बताया कि यह परियोजना झेलम नदी में पानी की गहराई बनाए रखने में मदद करेगी, जिससे पूरे साल नौवहन संभव होगा. साथ ही, यह परियोजना जलविद्युत उत्पादन में भी “प्रासंगिक लाभ” पहुंचा सकती है.

अब आगे क्या?

अब जब भारत ने आधिकारिक तौर पर सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया है. तो विशेषज्ञ मानते हैं कि तुलबुल परियोजना को जमीन पर उतारने का यह सबसे अनुकूल समय है. यह कदम न केवल क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा देगा, बल्कि पाकिस्तान को यह स्पष्ट संदेश भी देगा कि भारत अब अपने रणनीतिक संसाधनों को लेकर अधिक मुखर नीति अपनाएगा.

तुलबुल प्रोजेक्ट अब सिर्फ एक जल संसाधन योजना नहीं रह गया है. यह भारत की आंतरिक राजनीति, क्षेत्रीय विकास, और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति का प्रतीक बन चुका है — जहां कश्मीर की नदियों में बहता पानी अब भविष्य की दिशा तय करेगा.

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