आज आपको समझना चाहिए, जिस जमात ए इस्लामी के नेताओं को बांग्लादेश में फांसी दिए जाने का पाकिस्तान की संसद में विरोध हुआ था. जिस जमात ए इस्लामी के नेता इशाक डार की ढाका विजिट के दौरान उनसे मिलने पाकिस्तान के दूतावास में पहुंचे थे. जिस जमात ए इस्लामी ने 1971 के स्वतंत्रता संग्राम में भी पाकिस्तान का साथ दिया था. जिस जमात के दम पर इशाक डार दावा कर रहे हैं कि बांग्लादेश में बनने वाली नई सरकार से उनके संबंध और मजबूत होंगे..उस जमात ने कैसे अपने 50 साल से ज्यादा पुराने प्लान को पूरा कर लिया है. किस तरह अब बांग्लादेश में आतंकवादियों की पूरी सरकार बनने का रास्ता साफ हो गया.
यानि बांग्लादेश में अब प्रधानमंत्री राष्ट्रपति और कैबिनेट में वो चेहरे दिखाई देंगे जो कुछ दिनों पहले तक बांग्लादेश में आतंकी थे. क्योंकि पाकिस्तान की आतंकी सेना के चीफ आसिम मुनीर की जमात ने बांग्लादेश के छात्र आंदोलन को पूरी तरह से कैप्चर कर लिया है. शेख हसीना के खिलाफ आंदोलन करने वाले छात्रों ने जो पार्टी बनाई थी. उसके नाम का इस्तेमाल करके जमात ने बांग्लादेश की सत्ता में काबिज होने की तैयारी कर ली है.
बांग्लादेश से पिछले 24 घंटे में कुछ बड़ी खबरें आईं. आज जमात-ए-इस्लामी के नेतृत्व वाले गठबंधन में दो नए राजनीतिक दल शामिल हो गए.
पहला दल लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी यानी LDP है. जिसकी अगुवाई बांग्लादेश की फौज से रिटायर्ड कर्नल ओली अहमद कर रहे हैं.
दूसरा दल नेशनल सिटीजन पार्टी है. जिसके नेता छात्र आंदोलन का चेहरा बने नाहिद इस्लाम हैं. यह पार्टी हाल के आंदोलन में शामिल छात्रों ने बनाई लेकिन अब ये पार्टी कट्टरपंथी जमात ए इस्लामी के साथ गठबंधन में शामिल हो गई.
जिसके बाद साफ हो गया ये छात्र आंदोलन भी जमात ए इस्लामी ने पाकिस्तान की मदद से खड़ा किया था और अब इसके सबूत भी सामने आ रहे हैं. छात्र नेता नीला इसराफिल ने दावा किया है. जुलाई और अगस्त के दौरान हुआ आंदोलन शेख हसीना को सत्ता से हटाने के लिए ही डिजाइन किया गया था.
कट्टरपंथी भाषण देकर छात्रों को भड़काया
छात्रों की पार्टी को लीड कर रहे नेताओं ने जैसे ही असली रंग दिखाया. दूसरे सहयोगियों ने खुलासा करना शुरू कर दिया, पोल खोलनी शुरू कर दी. कुछ छात्र नेता जमात ए इस्लामी का मुखौटा बन गए. इनका इस्तेमाल जमात ने शेख हसीना का तख्तापलट करने में किया. कट्टरपंथी भाषण देकर छात्रों को भड़काया गया. लोगों की हत्याएं की गईं. जिससे ये आंदोलन और ज्यादा भड़के आप समझिए. जमात ए इस्लामी कितना खतरनाक संगठन है और अब ये बांग्लादेश की सत्ता में काबिज होने के लिए किस तरह तैयार है. जिन छात्रों की पार्टी को बांग्लादेश के युवा नया विकल्प मान रहे थे. उसकी असलियत सामने आने के बाद पार्टी में टूट भी शुरू हो गई है. एक और बड़े नेता ने छात्रों की पार्टी एनसीपी को छोड़ दिया है.
जुलाई आंदोलन के प्रमुख रणनीतिकार महफूज आलम ने जमात–NCP गठबंधन के तहत चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया
महफूज आलम ने साफ कहा मुझे सांसदी नहीं, उसूल चाहिए
महफूज ने दावा किया उनको ढाका सीट से आफर मिला जिसे उन्होंने ठुकरा दिया
महफूज आलम ने ये भी माना कि NCP को सभी क्रांतिकारियों का साझा मंच बनाने की कोशिश नाकाम रही
यानी अब बांग्लादेश के छात्र मान रहे हैं कि वो आंदोलन के नाम पर जमात के जाल में फंस गए. इससे पहले बड़े छात्र नेता तजनुवा जबीन ने इसी मुद्दे पर इस्तीफा दिया था. अब महफूज आलम के इस्तीफे से नाहिद इस्लाम की साख को झटका लगा है. अब वह सफाई दे रहे हैं कि यह गठबंधन दिल का नहीं, सिर्फ़ दल का है लेकिन जमात ने अपनी रणनीति से छात्रों की पार्टी को भी तोड़ दिया है.
हादी की हत्या पर बांग्लादेश फिर नई कहानी लेकर आया
लेकिन जमात की ये चाल यहीं पर खत्म नहीं हुई आपको हम पहले भी बता चुके हैं किस तरह इंकलाब मंच के नेता उस्माद हादी का जमात ए इस्लामी ने कत्ल करवाया है और ये सब कुछ यूनुस सरकार की मदद से किया गया और अब हादी के कातिलों को बचाने के लिए जमात ने यूनुस सरकार की मदद से एक नई चाल चली है. जिससे उस्मान हादी के मौत का सच सामने ना आ पाए और चुनाव से पहले भारत विरोधी भावनाएं और भड़कें. दो दिन पहले तक हादी के हत्यारों का भारत नहीं भागने की बात कहने वाली बांग्लादेश की पुलिस आज एक नई कहानी सामने लेकर आई है. आज आपको ढाका के पुलिस अधिकारी की बात बहुत ध्यान से सुननी चाहिए.
बांग्लादेश में भारत विरोधी भावनाओं को भड़काएगी जमात
सुना आपने ढाका पुलिस के सोर्स बता रहे हैं हादी के हत्यारों को भारत ने पकड़ भी लिया है लेकिन मेघालय पुलिस ने फौरन बांग्लादेश के इस झूठ की पोल खोल दी और इस कहानी को मनगढ़ंत बता दिया लेकिन बांग्लादेश में अब जमात और यूनुस सरकार इस बात का प्रचार करेगी और भारत विरोधी भावनाओं को भड़काएगी. जिसका सीधा लाभ कट्टरपंथी पार्टी जमात को चुनाव में मिलेगा.
जमात का छात्र संगठन ‘शिबिर’ कट्टरपंथी घटनाओं में सक्रिय
साजिशों को रचने में माहिर कट्टरपंथी जमात कितनी खतरनाक मानसिकता के साथ बांग्लादेश में अपना वजूद बनाए रखा आज आपको ये भी समझना चाहिए . 1971 में युद्ध अपराधों के आरोपों और सामाजिक निंदा के बावजूद जमात पूरी तरह कभी खत्म नहीं हुई. पार्टी पर प्रतिबंधों के दौर में भी इसका कैडर अंडरग्राउंड होकर सक्रिय रहा. जमात का छात्र संगठन ‘शिबिर’ कट्टरपंथी घटनाओं में सक्रिय रहा. पाकिस्तान से लगातार फंडिंग ने इसको खत्म नहीं होने दिया. छात्र आंदोलनों में जमात समर्थक चेहरे बिना पहचान के सक्रिय दिखे और अब मौका मिलते ही बांग्लादेश के गद्दार बांग्लादेश में सरकार बनाने जा रहे हैं.
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