China K Visa and US H1B Visa: टैरिफ विवाद भारत और अमेरिका दोनों के लिए घातक है. आज भारत और अमेरिका के बीच चल रहे टैरिफ विवाद को सुलझाने के लिए भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर और अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रूबियो की थोड़ी देर पहले अमेरिका में मुलाकात हुई है.
इस बैठक में दोनों नेताओं के बीच इस विवाद का समाधान निकालने के तरीकों पर चर्चा हुई. भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाने के बाद ट्रंप प्रशासन पर चीन के खिलाफ अहम सहयोगी को खोने का इल्जाम लगा, जिसके बाद ट्रंप प्रशासन भी दबाव में है और इस बीच बड़ी खबर ये है कि अमेरिका और चीन के बीच एक वीजा वॉर भी शुरू हो गई है.
भारतीयों पर पड़ेगा वीजा वॉर का असर
जो दुनिया भर के सबसे काबिल पेशेवरों को अपने देश में बुलाने की रणनीति से जुड़ी है और आने वाले वक्त में भारतीय पेशेवरों पर इस वीजा वॉर का सबसे ज्यादा असर पड़ने वाला है. चीन और अमेरिका के बीच वीजा वॉर की शुरुआत यूएस प्रेसिडेंट डॉनल्ड ट्रंप के H1B वीजा की फीस बढ़ाने और इसके एक दिन बाद बीजिंग की तरफ से विदेशी पेशेवरों के लिए स्पेशल K वीजा जारी करने के एलान के साथ हुई.
#DNAWithRahulSinha : ट्रंप का वीजा Vs जिनपिंग का वीजा...ट्रंप की एक गलती का फायदा उठाएंगे जिनपिंग ?
अब भारतीय टैलेंट के लिए बीजिंग का 'रेड कारपेट' !
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— Zee News (@ZeeNews) September 22, 2025
चीन के मशहूर रणनीतिकार शुन जू ने कहा था Opportunities multiply as they are seized यानि अवसर बढ़ते जाते हैं जब उन्हें पकड़ा जाता है.
लेकिन क्या चीन का नया K वीजा अमेरिका द्वारा छोड़े जा रहे अवसरों को पकड़ने की कोशिश है? क्या डॉनल्ड ट्रंप H1B वीजा की फीस बढ़ाकर जिन कुशल भारतीय पेशेवरों को अमेरिका आने से रोकना चाहते हैं, चीन ने उन्हीं भारतीय पेशेवरों के लिए अपना नया K वीजा जारी किया है. इसके अलावा आपको ये भी समझना चाहिए भारतीयों के लिए चीन के K वीजा और अमेरिका के H1B वीज़ा में कौन ज्यादा फायदेमंद है ? इस विश्लेषण में सबसे पहले आप समझिए चीन का K वीजा प्लान क्या है? और इसे जारी करने के एलान की टाइमिंग क्या कहती है?
चीन ने शुरू किया के वीजा
तो चीन ने अमेरिका में H-1B वीजा फीस विवाद के बीच दुनियाभर के टैलेंट को आकर्षित करने के लिए ‘K-वीजा’ शुरू करने का ऐलान किया है. चीन का नया वीजा 1 अक्टूबर 2025 से लागू होगा. K-वीजा उन युवा और कुशल पेशेवरों के लिए है जो STEM यानि साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथ के क्षेत्र से जुड़े हैं और जिन्होंने किसी प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी या रिसर्च इंस्टीट्यूट से पढ़ाई पूरी की हो या वहां अभी पढ़ाई या रिसर्च कर रहे हों.
चीन इससे पहले अपने यहां आने वाले दुनिया के पेशेवरों के लिए Z वीजा जारी करता था. लेकिन अब कुशल विदेशी पेशेवरों को चीन में बुलाने के लिए चीन ने ‘K-वीजा’की शर्तों को Z वीज़ा की शर्तों से ज्यादा आसान बना दिया है.
चीन ने आसान की शर्तें
चीन के Z वीजा की शर्तें अमेरिका के H-1B वीजा की तरह थीं. आपको समझना चाहिए क्यों चीन के 'K वीजा' को अमेरिका के H-1B वीजा का विकल्प माना जा रहा है और कैसे भारत जैसे देशों के पेशेवरों के लिए चीन ने H-1B वीजा के मुकाबले अपने K वीजा की शर्तों को बहुत हल्का कर दिया है।
अमेरिका का H1B वीजा स्टेम क्षेत्र यानि साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथ से जुड़े पेशेवरों के अलावा फाइनेंस और हेल्थकेयर विशेषज्ञों के लिए जारी किया जाता है. जबकि चीन ने भी अपना के वीजा साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथ से जुड़े पेशेवरों के लिए जारी करने का एलान किया है और इस क्षेत्र में भारतीय आईटी प्रोफेशनल्स का दबदबा है.
अगर आपको H-1B वीजा चाहिए तो आपके पास किसी अमेरिकी कंपनी में नौकरी का प्रस्ताव होना चाहिए. लेकिन चीन ने 'K वीजा' की शर्तों में सुधार करते हुए इसकी छूट दे दी है. यानि आपके पास भले ही चीन की कंपनी में नौकरी का प्रस्ताव ना हो.
लेकिन आप के पास भारत की साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग या मैथ से जुड़ी प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी की डिग्री हो तो भी K वीजा आपको मिल जाएगा. इसे आप इस तरह भी समझ सकते हैं अगर आप भारत की किसी आईआईटी से बीटेक हैं तो आप 'K वीजा' लेकर चीन में नौकरी तलाश कर सकते हैं.
दोनों में क्या है फर्क?
अमेरिका H-1B वीजा तीन साल के लिए जारी किया जाता है और इसे तीन साल के लिए यानि कुल 6 साल के लिए बढ़ाया जा सकता है. जबकि चाइनीज K वीजा हासिल करने वाले प्रोफेशनल लंबे समय तक चीन में रह सकता है. ये अवधि 5 साल से ज्यादा हो सकती है.
H-1B वीजा धारक अगर अमेरिका में नौकरी बदलता है और नई कंपनी ज्वाइन करता है तो उसको फिर से वीजा के लिए अप्लाई करना होगा जबकि अगर आपके पास चाइनीज K वीजा है तो आप अपनी पसंद से नौकरियां बदल सकते हैं.
इसके अलावा अमेरिका के H-1B वीजा की फीस को बढ़ाकर अब 88 लाख रुपये कर दिया गया है. वहीं K वीजा का शुल्क अभी जारी नहीं किया गया लेकिन ये H-1B वीजा से बहुत कम होगा क्योंकि इससे पहले चीन के जेड वीजा के लिए लगभग 3 हजार रुपये की फीस लगती थी.
यानि ट्रंप की नई नीतियों की वजह से जो भारतीय टैलेंट अमेरिका नहीं जा पाएगा उसके लिए चीन ने अपनी बाहें फैला दी हैं. क्योंकि भारत में तैयार हो रहे Skilled professionals चीन में नई तकनीक, तेज काम, हाई क्वलिटी वर्क के लिए बिल्कुल उपयुक्त हैं.
लेकिन आपको ये भी समझना चाहिए इंडियन प्रोफेशनल्स को अमेरिका या चीन में नौकरी करने के दौरान किस तरह का वेतन मिलेगा, वो किस देश में कितनी बचत कर पाएगा. इसके अलावा उसे दोनों देशों में किस तरह की लाइफस्टाइल और काम करने का माहौल मिलेगा.
अब दोनों में सैलरी का फर्क जानिए
तो अमेरिका में H-1B वीजा धारक को प्रारंभिक स्तर पर 75 लाख से 95 लाख रुपये तक के पैकेज पर नौकरी मिलती है. जबकि चीन में K-वीजा लेकर पहुंचे प्रोफेशनल को उसी काम के लिए 33 लाख से 41 लाख रुपये सालाना वेतन की नौकरी मिलेगी. यानि चीन में कोई भी प्रोफेशनल उसी काम के लिए अमेरिका से कम पैसे कमाएगा.
अब हम अमेरिका और चीन में जीवन यापन में होने वाले खर्च की तुलना करते हैं. यानि अमेरिका और चीन में रहने..खाने और परिवहन में कितना खर्च आएगा. आप ये भी समझिए.
तो अमेरिका में 1BHK मकान के लिए आपको 1 लाख 24 हजार से 2 लाख रुपये प्रति माह किराया देना होगा जबकि चीन में इसी मकान के लिए 24 हजार से 58 हजार रुपये तक की रकम चुकानी होगी.
अमेरिका में महीने भर के खाने का खर्च 25 हजार से 33 हजार रुपये प्रति माह है तो चीन में आप 12 हजार से 16 हजार रुपये खर्च करके महीने भर खाना खा सकते हैं.
एक स्थान से दूसरे स्थान तक आने जाने में अमेरिका में आपको औसतन 10 हजार से 17 हजार रुपये खर्च करने होंगे जबकि चीन में ढाई हजार से 5 हजार तक का खर्च आएगा.
इस तरह से अमेरिका में महीने का खर्च अगर 1 लाख 66 हजार से 3 लाख के बीच होगा तो चीन में आपको महीने में सिर्फ 50 हजार से 83 हजार खर्च करने होंगे. यानि अमेरिका में सैलरी ज्यादा है तो रहने का खर्च भी उसी अनुपात में काफी ज्यादा है.
कितने हैं काम के घंटे
अगर आप H-1B वीजा लेकर अमेरिका में नौकरी करने जाते हैं या फिर K-वीजा लेकर चीन में नौकरी करने जाते हैं तो आपको कहां पर ज्यादा बेहतर काम करने का माहौल और Work-Life Balance मिलेगा.
अमेरिका में आमतौर पर सप्ताह में 40 घंटे काम का कल्चर है यानि हफ्ते में 5 दिन और रोजाना 8 घंटे काम करना पड़ता है. जबकि चीन में कई क्षेत्रों में 996 कल्चर के तहत काम होता है. यानि सुबह 9 बजे से रात को 9 बजे यानि रोजाना 12 घंटे सप्ताह में छह दिन काम करना होता है.
अमेरिकी कंपनियों में रिमोट वर्किंग की सुविधाएं भी होती हैं यानि आप घर से भी काम कर सकते हैं. अमेरिका में काम टारगेट बेस्ड होता है. जबकि चीन में स्पीड और डिलीवरी पर ज्यादा जोर होता है यानि चीन में काम का दबाव ज्यादा होता है.
यानि अमेरिका में काम और व्यक्तिगत जीवन के बीच संतुलन बनाना आसान है लेकिन चीन में काम करने की लंबी और थकाने वाली कार्य संस्कृति है. हालांकि कई क्षेत्रों में अब धीरे धीरे सुधार भी हो रहा है.
कुल मिलाकर अमेरिका उन भारतीयों के लिए एक बेहतर विकल्प है जो हाई सैलरी, बेहतर वर्क लाइफ बैलेंस और प्रोफेशनल ग्रोथ चाहते हैं. जबकि चीन उनके लिए विकल्प हो सकता है जो अमेरिका की नई H1B वीजा नीति से प्रभावित हों. लेकिन तेज कैरियर ग्रोथ, स्टार्टअप संस्कृति, और कम खर्च में अधिक बचत करना चाहते हों , लेकिन चीन में भाषा की परेशानी और काम का दबाव अधिक होगा.
इसके अलावा भारत से कोई तनाव होने पर भी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. जैसा गलवान के बाद चीन में मेडिकल की पढ़ाई करने गए छात्रों के साथ हुआ था और वो अपनी मेडिकल की डिग्री पूरी नहीं कर पाए थे.