CJI बीआर गवई ने कांग्रेस की दुखती रग पर रख दी हाथ, नेहरू-इंदिरा को भी लपेटा

2 weeks ago

Last Updated:June 04, 2025, 12:37 IST

सीजेआई बीआर गवई ने यूके में कहा कि जजों की स्वतंत्रता महत्वपूर्ण है. 1993 से पहले सरकार ने सीनियर जजों को नजरअंदाज कर चीफ जस्टिस नियुक्त किए. 1993 और 1998 के फैसलों ने कॉलेजियम प्रणाली स्थापित की.

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सीजेआई जस्टिस बीआर गवई ने जजों की नियुक्ति पर बड़ी बात कही है.

कॉलेजियम सिस्टम को लेकर अक्सर सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच तकरार रही है. सीजेआई बीआर गवई ने अंग्रेजों की धरती से जजों की नियुक्ति को लेकर अहम टिप्पणी की है. चीफ जस्टिस बीआर गवई के मुताबिक, जजों को स्वतंत्र रहना चाहिए. उन्होंने कहा कि जब जजों की नियुक्ति में अंतिम फैसले का अधिकार सरकार के पास था, तब दो बार सीनियर जजों को नजरअंदाज कर चीफ जस्टिस नियुक्त किए गए. उन्होंने सीधे तौर पर पंडित नेहरू और इंदिरा का नाम लिया. यूनाइटेड किंगडम के सुप्रीम कोर्ट में ‘न्यायिक वैधता और जनता का विश्वास बनाए रखने’ पर आयोजित गोलमेज सम्मेलन में बोलते हुए सीजेआई गवई ने यह टिप्पणी की. इस सम्मेलन में जस्टिस विक्रम नाथ, इंग्लैंड और वेल्स की लेडी चीफ जस्टिस बैरोनेस कार, और यूके सुप्रीम कोर्ट के जज जॉर्ज लेगट भी शामिल थे.

एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, सीजेआई बीआर गवई ने कहा, ‘1993 तक कार्यपालिका को सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति का अंतिम अधिकार था. इस दौरान दो बार सीनियर जजों को दरकिनार कर चीफ जस्टिस नियुक्त किए गए. यह परंपरा के खिलाफ था. जिन जजों को नजरअंदाज किया गया, वे थे जस्टिस सैयद जफर इमाम और जस्टिस हंस राज खन्ना. साल 1964 में जस्टिस इमाम को स्वास्थ्य कारणों से चीफ जस्टिस नहीं बनाया गया. जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने जस्टिस पीबी गजेंद्रगडकर को प्रमोट कर चीफ जस्टिस नियुक्त किया. वहीं, 1977 में जस्टिस हंस खन्ना को इंदिरा गांधी सरकार के गुस्से का सामना करना पड़ा. जब एडीएम जबलपुर बनाम शिव कांत शुक्ला मामले में उनके असहमति वाले फैसले के कुछ महीनों बाद ही उन्हें चीफ जस्टिस का पद खोना पड़ा था, उसमें उन्होंने फैसला सुनाया था कि राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान भी मौलिक अधिकारों को निलंबित नहीं किया जा सकता है.

सीजेआई के मुताबिक, इसके जवाब में सुप्रीम कोर्ट ने साल 1993 और 1998 के अपने फैसलों में जजों की नियुक्ति से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों की व्याख्या की और स्थापित किया कि भारत के चीफ जस्टिस, चार सीनिय रजजों के साथ मिलकर एक कॉलेजियम का गठन करेंगे, जो सुप्रीम कोर्ट में नियुक्तियों की सिफारिश करने के लिए जिम्मेदार होगा.

चीफ जस्टिस ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में नेशनल ज्यूडिशियल अप्वाइंटमेंट यानी राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम को रद्द कर दिया था. उन्होंने कहा कि इस अधिनियम ने न्यायिक नियुक्तियों में कार्यपालिका को प्राथमिकता देकर न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमजोर किया है. उन्होंने कहा, ‘कॉलेजियम प्रणाली की आलोचना हो सकती है, लेकिन कोई भी समाधान न्यायिक स्वतंत्रता की कीमत पर नहीं आना चाहिए. न्यायाधीशों को बाहरी नियंत्रण से मुक्त होना चाहिए.’

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Shankar Pandit

Shankar Pandit has more than 10 years of experience in journalism. Before News18 (Network18 Group), he had worked with Hindustan times (Live Hindustan), NDTV, India News Aand Scoop Whoop. Currently he handle ho...और पढ़ें

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