मुंगेर. जिस एके-47 मामले ने कभी मुंगेर से लेकर दिल्ली तक सुरक्षा एजेंसियों की नींद उड़ा दी थी, उसी बहुचर्चित प्रकरण में अब अदालत का फैसला चौंकाने वाला रहा. सात साल तक चले ट्रायल के बाद वर्ष 2018 में सामने आए AK-47 हथियार के पार्ट्स बरामदगी मामले के सभी दस अभियुक्तों को अदालत ने साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया. यह वही मामला है, जिसमें एके-47 राइफल के पार्ट्स बरामद होने का दावा किया गया था. इस मामले में निचली अदालत ने अभियोजन पक्ष की कमजोर गवाही और ठोस साक्ष्य के अभाव को आधार बनाते हुए सभी दस अभियुक्तों को रिहा कर दिया. अदालत ने माना कि न तो घटनास्थल को सही तरीके से साबित किया जा सका और न ही आरोपों के समर्थन में कोई पुख्ता गवाह पेश किया गया.
बता दें कि मुफस्सिल थाना कांड संख्या 353/2018 में AK-47 हथियार के पार्ट्स बरामदगी मामले में मुंगेर की अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश द्वितीय प्रवल दत्ता की कोर्ट ने मुफस्सिल थाना से जुड़े एक केस में सभी 10 आरोपितों को रिहा करने का आदेश दे दिया. अदालत ने साफ कहा कि अभियोजन पक्ष आरोप साबित करने में असफल रहा. इस फैसले के साथ ही उस समय की पुलिस जांच, बरामदगी की प्रक्रिया और अभियोजन की मजबूती पर सवालों की बाढ़ आ गई है.
AK-47 बरामदगी से जुड़ा था यह केस
बता दें कि यह मामला 2018 में सामने आए उस बड़े एके-47 कांड से जुड़ा था, जिसमें मध्यप्रदेश के जबलपुर स्थित COD (Central Ordnance Depot) यानी केन्द्रीय आयुध डिपो जबलपुर से गायब 60 से 70 एके-47 राइफल और उनके पार्ट्स का नेटवर्क उजागर हुआ था. जांच के दौरान मुंगेर के विभिन्न थाना क्षेत्रों से करीब 22 एके-47 राइफल और उनके पार्ट्स बरामद होने का दावा किया गया था और इसका कनेक्शन जबलपुर सीओडी () से जोड़ा गया था.
मिर्जापुर बरदह गांव से हुई थी पार्ट्स की बरामदगी
तब बताया गया था कि तफ्तीश में मुफस्सिल थाना क्षेत्र के मिर्जापुर बरदह गांव में 30 अक्टूबर 2018 को जेसीबी मशीन से खुदाई कर एक प्लास्टिक बोरे में भारी मात्रा में एके-47 के पार्ट्स बरामद किए जाने की बात सामने आई थी. यह बरामदगी आरोपी मो. रिजवान उर्फ भुट्टो के कथित स्वीकारोक्ति बयान के आधार पर हुई थी, जिसमें उसने बताया था कि उसने पार्ट्स शमशेर आलम के घर से लाकर अपनी सास अजमेरी बेगम को छुपाने के लिए दिए थे.
लंबी सुनवाई, लेकिन सबूत कमजोर
मामले की सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष की ओर से अपर लोक अभियोजक विनोद यादव और बचाव पक्ष की ओर से अधिवक्ता विश्वजीत सिंह ने दलीलें पेश कीं. वहीं, आरोपी पक्ष के वकील विजय झा ने अदालत में दलील दी कि अभियोजन पक्ष न तो घटनास्थल को प्रमाणित कर सका और न ही बरामदगी की प्रक्रिया को कानूनी रूप से मजबूत कर पाया. सरकारी गवाहों की गवाही भी कमजोर साबित हुई. लंबी बहस के बाद अदालत इस नतीजे पर पहुंची कि प्रस्तुत साक्ष्य आरोप तय करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं. इन्हीं आधारों पर संदेह का लाभ देते हुए अदालत ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया.
अदालत के आदेश से कौन-कौन हुए रिहा
बता दें कि इस केस में मो. रिजवान पठान, मो. लुकमान, आइशा बेगम, तनवीर आलम उर्फ सोनू, मो. गुलफाम उर्फ गुलन, मो. वरिजवान उर्फ भुट्टो, मो. परवेज चांद, मो. मुस्तकीम, मो. खुर्शीद आलम और मो. इमरान आलम की पत्नी सदा रिफत को आरोपित बनाया गया था. इनमें से तनवीर आलम उर्फ सोनू, मो. गुलफाम उर्फ गुलन और मो. रिजवान उर्फ भुट्टो न्यायिक हिरासत में जेल में बंद थे, जबकि शेष सात आरोपित जमानत पर बाहर थे. अदालत के आदेश के बाद सभी को रिहा कर दिया गया.
30 सितंबर 2018 को FIR हुई थी दर्ज
यह भी बता दें कि यह मामला 30 सितंबर 2018 को मुफस्सिल थाना में दर्ज किया गया था. तत्कालीन सर्किल इंस्पेक्टर बिंदेश्वरी यादव के लिखित बयान के आधार पर केस दर्ज हुआ था. उस समय मुफस्सिल थाना के थानाध्यक्ष मिंटू कुमार सिंह थे. आवेदन में बताया गया था कि मो. रिजवान उर्फ भुट्टो के स्वीकारोक्ति बयान के आधार पर सदर प्रखंड के मिर्जापुर बरदह गांव में अजमेरी बेगम की जमीन की जेसीबी से खुदाई कराई गई थी. यह खेत मो. इमरान आलम की पत्नी अजमेरी बेगम के घर के पास स्थित था. खुदाई के दौरान जमीन में दबाकर रखे गए प्लास्टिक के बोरे से AK-47 के पार्ट-पुर्जे बरामद होने का दावा किया गया था.
पुलिस करेगी फैसले की समीक्षा
खास बात यह है कि अदालत ने यह साफ-साफ कहा है कि आरोप साबित करने के लिए प्रस्तुत साक्ष्य पर्याप्त नहीं थे. अब कोर्ट के इस फैसले के बाद एक बार फिर उस समय की पुलिस जांच और अभियोजन की मजबूती पर सवाल खड़े होने लगे हैं. मुंगेर एसपी सैयद इमरान मसूद ने कहा है कि मामले की समीक्षा की जाएगी और यदि कोई कानूनी खामी पाई जाती है तो उच्च न्यायालय में अपील दायर की जाएगी.
जांच एजेंसियों के लिए बड़ी सबक
बहरहाल, AK-47 केस का यह फैसला सिर्फ 10 आरोपियों की रिहाई नहीं है, बल्कि एक चेतावनी भी है. अगर हथियारों की तस्करी जैसे गंभीर मामलों में जांच और अभियोजन कमजोर रहेंगे, तो इसका सीधा असर देश की सुरक्षा पर पड़ेगा. अब जरूरत है कि जांच एजेंसियां आत्ममंथन करें, ताकि भविष्य में ऐसे संवेदनशील मामलों में न्याय केवल कागजों तक सीमित न रह जाए.

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