Last Updated:July 24, 2025, 13:29 IST
MATSYA-6000: भारत के डीप ओशन मिशन को बड़ी कामयाबी मिली है. इसरो ने 700 कोशिशों के बाद ‘मत्स्य-6000’ सबमर्सिबल का इंसानी चैंबर टाइटेनियम से वेल्ड करके तैयार किया है, जो 6000 मीटर गहराई में जाकर रिसर्च कर सकेगा. ...और पढ़ें

हाइलाइट्स
ISRO ने टाइटेनियम चैंबर को 700 बार ट्रायल के बाद वेल्ड किया.मत्स्य-6000 वैज्ञानिकों को 6,000 मीटर गहराई तक ले जा सकेगा.मिशन के तहत खनिज, जैव विविधता और समुद्र का अध्ययन किया जाएगा.Submersible vessel MATSYA-6000: भारत ने समंदर की गहराई में उतरने के मिशन में एक बड़ी छलांग लगाई है. ‘डीप ओशन मिशन’ के तहत बनाई जा रही खास पनडुब्बी ‘मत्स्य-6000’ (Submersible vessel MATSYA-6000) का सबसे अहम और सबसे मजबूत हिस्सा अब तैयार हो गया है. इस खास हिस्से को बनाने में ISRO को करीब 700 बार वेल्डिंग की कोशिश करनी पड़ी. लेकिन आखिरकार कामयाबी मिल गई.
क्या है यह ‘समुद्रयान’ और क्यों है इतना खास?
भारत सरकार का एक बड़ा सपना है– समंदर की गहराई तक पहुंचना, वहाँ रिसर्च करना और ये जानना कि वहाँ क्या-क्या खजाना छुपा हुआ है. इसी मकसद से ‘समुद्रयान’ नाम का मिशन शुरू किया गया है, जो ‘डीप ओशन मिशन’ का हिस्सा है. इसे पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (Ministry of Earth Sciences) चला रहा है.
इस मिशन में वैज्ञानिक समंदर की 6 किलोमीटर गहराई तक जाकर वहाँ के रहस्यों की पड़ताल करेंगे. वहाँ पर कौन-कौन से खनिज हैं, जैसे निकेल, कोबाल्ट या रेयर अर्थ मटेरियल– इन सबकी जानकारी इकट्ठा करेंगे. साथ ही, वहाँ के अजीब और अनजाने जीव-जंतुओं का भी अध्ययन करेंगे. ये सब कुछ इंसानों को लेकर जाने वाली एक खास गाड़ी से किया जाएगा, जिसे ‘मत्स्य-6000’ कहा गया है.
इंसानों को लेकर समंदर में उतरेगी ‘मत्स्य-6000’
‘मत्स्य-6000’ एक ऐसी सबमर्सिबल यानी पानी के नीचे चलने वाली गाड़ी है, जिसमें तीन लोग बैठ सकेंगे. इस गाड़ी को इस तरह से बनाया गया है कि यह बेहद ऊँचे दबाव और बहुत कम तापमान में भी सुरक्षित रह सके. समंदर के नीचे जितना दबाव होता है, उतना दबाव इंसानी शरीर सह नहीं सकता. इसलिए जो हिस्सा इंसानों को बैठने के लिए बनाया गया है, वो बेहद मजबूत और खास तरीके से तैयार किया गया है.
टाइटेनियम से बना इंसानी चैंबर
इस गाड़ी का सबसे अहम हिस्सा है- टाइटेनियम से बना हुआ एक गोल कमरा, जिसे पर्सनल स्फेयर कहते हैं. यही वह जगह है, जहां वैज्ञानिक बैठेंगे. यह स्फेयर गोल है, जिसका डायमीटर 2260 मिलीमीटर है और इसकी दीवारें 80 मिलीमीटर मोटी हैं. इसे इस तरह से बनाया गया है कि यह समंदर के नीचे 600 बार के दबाव को झेल सके और -3 डिग्री जैसी ठंडी में भी काम करे.
इतनी मुश्किल वेल्डिंग, जो 700 बार कोशिश के बाद बनी
अब बात करते हैं सबसे बड़ी चुनौती की. इस पर्सनल स्फेयर को बनाना कोई आसान काम नहीं था. इसे बनाने के लिए टाइटेनियम का इस्तेमाल किया गया, जो बहुत मजबूत धातु है लेकिन इसे जोड़ना यानी वेल्ड करना बहुत मुश्किल होता है. वैज्ञानिकों को इसे जोड़ने के लिए एक बेहद खास तकनीक अपनानी पड़ी, जिसे इलेक्ट्रॉन बीम वेल्डिंग कहते हैं.
यह तकनीक इतनी संवेदनशील है कि एक छोटी सी गलती भी पूरी गाड़ी को खराब कर सकती थी. इसलिए इसरो के इंजीनियरों ने 700 बार वेल्डिंग की कोशिश की, तब जाकर सही और मजबूत वेल्डिंग हो पाई.
इसरो ने खुद बनाई वेल्डिंग की नई मशीन
इस वेल्डिंग को पूरा करने के लिए इसरो के लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम्स सेंटर (LPSC), बेंगलुरु ने अपनी पुरानी वेल्डिंग मशीन को अपग्रेड किया. पहले उनकी मशीन 15 किलोवॉट की थी, जो सिर्फ 20 मिमी मोटी प्लेटों की वेल्डिंग कर सकती थी. लेकिन ‘मत्स्य-6000’ के लिए 80 से 102 मिमी मोटी प्लेटों की जरूरत थी. इसलिए LPSC ने मशीन की ताकत बढ़ाकर 40 किलोवॉट कर दी.
इसके अलावा, उन्होंने पूरे वेल्डिंग सिस्टम को बड़ा और बेहतर बनाया. केमिकल सफाई और भारी हिस्सों को उठाने वाले सिस्टम को भी बदला गया, ताकि पूरी प्रक्रिया बिना किसी रुकावट के हो सके.
2026 तक समंदर की गहराई में पहुंचेगा भारत
इस पूरी मेहनत का मकसद है कि साल 2026 तक भारत के वैज्ञानिक खुद समंदर की गहराई में उतर सकें और वहाँ की दुनिया को नजदीक से देख सकें. ‘मत्स्य-6000’ इस मिशन का सबसे बड़ा कदम है. और अब जब इसका सबसे मजबूत हिस्सा बनकर तैयार हो गया है, तो यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत समंदर के नीचे भी नई इबारत लिखने जा रहा है.
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