6000 KMPH स्‍पीड वाली हाइपरसोनिक मिसाइलें हो जाएंगी कबाड़, हाफेंगे चीन-पाक

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Last Updated:December 21, 2025, 06:54 IST

Mission Sudarshan Chakra: मॉडर्न वॉरफेयर में एरियल पावर जितना अहम हो गया है, एरियल थ्रेट भी उतना ही खतरनाक है. ऐसे में हवाई हमले की चुनौती से निपटने की जुगत करना आज के दिन हर देश के लिए जरूरी हो गया है. अमेरिका खरबों रुपये की लागत से गोल्‍डन डोम एयर डिफेंस प्रोजेक्‍ट पर काम कर रहा है. रूस को इसमें महारथ हासिल है. भारत भी इसमें पीछे नहीं रहना चाहता है.

6000 KMPH स्‍पीड वाली हाइपरसोनिक मिसाइलें हो जाएंगी कबाड़, हाफेंगे चीन-पाकMission Sudarshan Chakra: मिशन सुदर्शन चक्र एयर डिफेंस सिस्‍टम को हाइपरसोनिक मिसाइल को बेअसर करने लायक बनाया जाएगा. (फाइल फोटो/PTI)

Mission Sudarshan Chakra: एरियल थ्रेट 21वीं सदी में किसी भी देश के लिए सबसे बड़ा खतरा है. स्‍टील्‍थ फाइटर जेट, ड्रोन और हाइपरसोनिक मिसाइल्‍स को इंटरसेप्‍ट कर पाना ट्रेडिशनल रडार सिस्‍टम के बस की बात नहीं है. चीन समेत कई देश पांचवीं पीढ़ी के साथ ही 6th जेनरेशन वेपन सिस्‍टम पर काम कर रहे हैं. इसके अलावा इंटरकॉन्टिनेंटल मिसाइल्‍स भी बड़ा खतरा हैं. इन सबको देखते हुए हर देश के लिए ठोस एयर डिफेंस सिस्‍टम डेवलप करना जरूरी हो गया है. अमेरिका की ट्रंप सरकार ने 175 अरब डॉलर की लागत से गोल्‍डन डोम डेवलप करने का ऐलान किया है. उसके पास THAAD मिसाइल डिफेंस सिस्‍टम पहले से ही है. इजरायल के पास आयरन डोम है. इस मामले में रूस भी किसी से कम नहीं है. मॉस्‍को ने S-400 के साथ ही S-500 जैसा ताकतवर एयर डिफेंस सिस्‍टम डेवलप किया है. भारत ने S-400 की 5 स्‍क्‍वाड्रन खरीदी है. इसके अलावा और यूनिट इंपोर्ट करने की तैयारी है. रूसी S-500 एयर डिफेंस सिस्‍टम स्‍पेस वॉर से निपटने में सक्षम बताया जाता है. भारत कोशिश कर रहा है कि इसे हासिल किया जा सके. इन सबको देखते हुए भारत मिशन सुदर्शन चक्र यानी नेशनल एयर डिफेंस सिस्‍टम डेवलप करने में जुटा है. इसे आने वाले 10 सालों में पूरी तरह से विकसित करने का लक्ष्‍य रखा गया है. अब इसी मिशन सुदर्शन चक्र को लेकर बड़ा अपडेट सामने आया है. इस सिस्‍टम को हाइपरसोनिक मिसाइल्स के खतरे से निपटने योग्‍य बनाया जा रहा है. DRDO ने इसको लेकर काम करना शुरू कर दिया है.

भारत की महत्वाकांक्षी बहु-स्तरीय वायु और मिसाइल रक्षा पहल ‘मिशन सुदर्शन चक्र’ में भविष्य में हाइपरसोनिक मिसाइल डिफेंस को एक अहम हिस्से के रूप में शामिल किया जाएगा. सूत्रों के अनुसार, इसका उद्देश्य देशभर के लिए एक मजबूत और आधुनिक सुरक्षा कवच तैयार करना है. फिलहाल डीआरडीओ की स्वदेशी लंबी दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल परियोजना ‘प्रोजेक्ट कुश’ में एम-2 इंटरसेप्टर शामिल है, जिसमें हाइपरसोनिक इंटरसेप्शन की सीमित क्षमता मौजूद है. हालांकि, यह क्षमता मुख्य रूप से उन सामरिक बैलिस्टिक मिसाइलों को रोकने के लिए है, जो फिर से प्रवेश (Re-Entry) के दौरान मैक-5 से अधिक (6000 किलोमीटर प्रति घंटा) गति हासिल करती हैं.

भारत स्‍वदेशी तकनीक से एयर डिफेंस सिस्‍टम डेवलप कर रहा है. (फाइल फोटो/PTI)

क्‍या है टारगेट?

‘इंडियन डिफेंस रिसर्च विंग’ की रिपोर्ट के अनुसार, सुदर्शन चक्र के दूसरे चरण में (जिसे वर्ष 2035 के आसपास पूरा करने का लक्ष्य है) उन्नत हाइपरसोनिक डिफेंस पर खास ध्यान दिया जाएगा. यह चरण उन वास्तविक हाइपरसोनिक हथियारों से निपटने के लिए होगा, जो वायुमंडल के भीतर ही लगातार उड़ान भरते हैं और अंतरिक्ष में नहीं जाते. इनमें हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइलें (HCM) और हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल (HGV) शामिल हैं. इन हथियार प्रणालियों को ज्यादा खतरनाक माना जाता है, क्योंकि इनकी उड़ान का रास्ता अप्रत्याशित होता है, ये अपेक्षाकृत कम ऊंचाई पर उड़ती हैं और पारंपरिक रडार व इंटरसेप्टर सिस्टम के लिए इन्हें ट्रैक करना और रोकना कठिन होता है. इससे रक्षा प्रणालियों के पास रिएक्‍शन का समय भी काफी कम रह जाता है. अभी यह स्पष्ट नहीं है कि डीआरडीओ वायुमंडलीय हाइपरसोनिक खतरों के लिए पूरी तरह नए इंटरसेप्टर विकसित करेगा या इस क्षमता को भारत की बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस (BMD) फेज-III में शामिल किया जाएगा, जिस पर पहले से काम चल रहा है. बीएमडी फेज-III को अधिक उन्नत और लंबी दूरी की मिसाइल चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार किया जा रहा है. हाइपरसोनिक डिफेंस को इसका स्वाभाविक विस्तार माना जा रहा है.

यह जरूरी क्‍यों?

विशेषज्ञों का कहना है कि क्षेत्र में हाइपरसोनिक हथियारों की बढ़ती मौजूदगी को देखते हुए भारत की यह योजना बदलते सुरक्षा माहौल को समझने और उससे निपटने की दिशा में एक अहम कदम है. ऐसे हथियार पारंपरिक बैलिस्टिक और क्रूज मिसाइलों के बीच की रेखा को धुंधला कर देते हैं, जिससे रक्षा तैयारियों को और उन्नत करना जरूरी हो जाता है. सुदर्शन चक्र के तहत देशभर में एक एआई-सक्षम रक्षा कवच तैयार करने की परिकल्पना की गई है. इसके शुरुआती चरणों में एस-400, आकाश और प्रोजेक्ट कुशा जैसे मौजूदा व उभरते सिस्टम शामिल होंगे. आगे चलकर यह प्रणाली ड्रोन, स्‍टील्‍थ विमान, बैलिस्टिक मिसाइलों और हाइपरसोनिक खतरों से समग्र सुरक्षा देने में सक्षम होगी.

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Manish Kumar

बिहार, उत्‍तर प्रदेश और दिल्‍ली से प्रारंभिक के साथ उच्‍च शिक्षा हासिल की. झांसी से ग्रैजुएशन करने के बाद दिल्‍ली यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता में PG डिप्‍लोमा किया. Hindustan Times ग्रुप से प्रोफेशनल कॅरियर की शु...और पढ़ें

Location :

New Delhi,Delhi

First Published :

December 21, 2025, 06:52 IST

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