कहते हैं कि ‘चोर चोरी से जाए पर हेराफेरी से न जाए’. यह कहावत गोरखपुर जेल में बंद उस शख्स पर सटीक बैठती है, जिसने कभी आईएएस अधिकारी बनकर सिस्टम को ठगा था. हम बात कर रहे हैं कुख्यात जालसाज ललित किशोर की, जो फिलहाल सलाखों के पीछे अपनी सजा काट रहा है. लेकिन हैरान करने वाली बात यह है कि जेल की चारदीवारी भी उसकी ठगी की फितरत को नहीं बदल पाई है. ललित अब जेल के भीतर ही एक नई ‘स्क्रिप्ट’ लिख रहा है, जहां उसके निशाने पर बाहर के अफसर नहीं, बल्कि उसके साथ बंद कैदी हैं.
गोरखपुर जेल सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, ललित किशोर ने जेल के भीतर खुद को एक ‘कानूनी जानकार’ और ‘पहुंच वाले व्यक्ति’ के तौर पर पेश करना शुरू कर दिया है. वह बैरक में हाथ में एक डायरी और पेन लेकर घूमता नजर आता है. उसका चलने का अंदाज, बातचीत का लहजा और रौब आज भी वैसा ही है जैसा वह बाहर फर्जी आईएएस बनकर दिखाया करता था. वह अक्सर कैदियों के बीच जाकर बैठ जाता है और उनसे उनके मुकदमों के बारे में विस्तार से पूछताछ करता है.
जेल के भीतर ‘साहब’ वाला अंदाज
हैरत की बात यह है कि वह बाकायदा एक ‘अधिकारी’ की तरह कैदियों का नाम, उनके ऊपर लगी धाराएं और उनके केस की मौजूदा स्थिति को अपनी डायरी में नोट करता है. वह कैदियों को यह अहसास कराता है कि उसकी पहुंच शासन के बड़े अधिकारियों और बड़े वकीलों तक है, और वह पलक झपकते ही उनकी फाइलें हिलवा सकता है.
जमानत दिलाने का ‘झांसा’ और ठगी की बिसात
ललित किशोर का मुख्य हथियार ‘जमानत’ है. जेल में बंद हर कैदी का सबसे बड़ा सपना बाहर निकलना होता है और ललित इसी मजबूरी का फायदा उठा रहा है. वह अनपढ़ या कम पढ़े-लिखे कैदियों को कानूनी पेचीदगियां समझाता है और उन्हें यह झांसा देता है कि वह उनकी जमानत करवा देगा. वह उनसे कहता है, ‘तुम्हारे वकील ने यह धारा गलत लगवाई है, मैं ऊपर बात करके इसे हटवा दूंगा.’
कैदी बुलाते हैं ‘साहब’ कहकर
शुरुआत में कुछ नए कैदी उसके चंगुल में फंसने भी लगे थे. वे उसे सम्मान देने लगे और उसे ‘साहब’ कहकर बुलाने लगे. लेकिन जेल में बंद पुराने और शातिर अपराधी ललित की हरकतों को गौर से देख रहे थे. उन्हें शक हुआ कि जो खुद जेल से बाहर नहीं निकल पा रहा, वह दूसरों की जमानत कैसे कराएगा?
‘साहब’ से ‘ललित 420’ बनने का सफर
जल्द ही ललित की असलियत जेल के अन्य बंदियों के सामने आ गई. जैसे ही कैदियों को पता चला कि यह वही ललित किशोर है जिसने फर्जी आईएएस बनकर पूरे प्रदेश में ठगी की थी, वैसे ही उसका सम्मान ‘मजाक’ में बदल गया. अब जेल के बैरक में उसे ‘साहब’ नहीं, बल्कि ‘ललित 420’ के नाम से पुकारा जाता है. जैसे ही वह डायरी लेकर किसी के पास पहुंचता है, कैदी उस पर तंज कसने लगते हैं. कुछ कैदी तो उसे चिढ़ाने के लिए कहते हैं, “साहब, हमारी फाइल कब तक ओके होगी?”
जेल प्रशासन की सख्ती
इस मामले की भनक जब जेल प्रशासन को लगी, तो उन्होंने ललित की गतिविधियों पर निगरानी और बढ़ा दी है. जेल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि ललित किशोर जैसे शातिर अपराधी अपनी आदतों से बाज नहीं आते. वह जेल के अनुशासन को प्रभावित करने की कोशिश कर रहा था, लेकिन कैदियों ने खुद ही उसकी पोल खोल दी है. उसकी डायरी और पेन को भी जांच के दायरे में रखा गया है ताकि यह पता लगाया जा सके कि उसने किसी से पैसे की डिमांड तो नहीं की है.
शातिर का दिमाग जेल में भी नहीं बदला
गोरखपुर जेल की यह घटना दिखाती है कि एक अपराधी की मानसिकता जेल में भी नहीं बदलती. ललित किशोर की यह ‘जमानत वाली स्क्रिप्ट’ अब जेल के गपशप का हिस्सा बन गई है. वह अब एक ऐसा ‘विलेन’ बन चुका है जिस पर जेल के साथी कैदी भी भरोसा करने को तैयार नहीं हैं. ललित की यह कहानी समाज के लिए एक सबक है कि झूठ की बुनियाद पर बना रौब ज्यादा दिनों तक टिकता नहीं है.
गौरव उर्फ ललित किशोर कोई छोटामोटा धोखेबाज या सिर्फ ठग नहीं था बल्कि उसके कारनामें आपको दंग कर देंगे. 500 करोड़ का ठेका दिलाने की एवज में बिहार के एक ठेकेदार से 5 करोड़ रुपये ठग चुका था. पुलिस पुछताछ में इस फर्जी आईएएस ती चार गर्लफ्रेंड थीं, जिनमें एक की उम्र महज 20 साल है. इन चार में से तीन गर्लफ्रेंड इस समय प्रेग्नेंट हैं. बताया जा रहा है कि फर्जी आईएएस की कारतूस सामने आने के बाद से सभी अपनी किस्मत को कोस रहीं हैं. पुलिस की जांच में सामने आया कि ठगी में महारत हासिल यह फर्जी आईएएस बेहद ही अय्यास और काफी दिलफेंक किस्म का था. करोड़ों की ठगी, फर्जी आईडी, सरकारी ठेके दिलाने का झांसा, चार राज्यों में नेटवर्क था.

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