पश्चिम बंगाल का मुर्शिदाबाद जिला शुक्रवार और शनिवार को भड़की हिंसा से सिहर उठा है. पूरे इलाके में चप्पे-चप्पे पुलिस और सुरक्षाबल के जवान तैनात हैं. यहां सड़कों पर सन्नाटा पसरा है और पूरे इलाके में अब मरघट सी शांति दिख रही है. हालांकि इस शांति के बीच कई चीख-पुकार भी गूंज रही हैं. ये आवाज उन लोगों की हैं, जिन्हें अपने इस दंगे की आग में झुलस गए. मुर्शिदाबाद हिंसा में कम से कम तीन लोगों की जान जा चुकी है और दर्जनों ज़ख्मी हैं. वहीं कई ऐसे लोग हैं, जिनका कोई अता-पता नहीं पा रहा है.
उधर मुर्शिदाबाद के हिंसाग्रस्त धुलियन इलाके से सैकड़ों लोगों ने जान बचाने की खातिर गंगा पार करके मालदा के बैष्णबनगर स्थित एक स्कूल में शरण ले रखी है. यह स्कूल अब शरणार्थियों का अस्थायी घर बन गया है. यहां मौजूद ज्यादातर महिलाएं और बच्चे हैं और उनके चेहरे पर हिंसा का डर साफ देखा जा सकता है. हिंसा के बाद पुलिस और BSF की हेल्पलाइनों पर लगातार मदद के कॉल आ रहे हैं. इन्में हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग हैं.
‘तीन घंटे तक लाशें घर के बाहर पड़ी रहीं’
धुलियन नगर पालिका क्षेत्र के जत्राबाद में रहने वाली 32 साल की पिंकी दास की जिंदगी शुक्रवार को बदल गई. एक उन्मादी भीड़ ने उनके पति चंदन (40) और ससुर हरगोबिंद (74) की बेरहमी से हत्या कर दी. दोनों मूर्ति बनाने वाले कारीगर थे.
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, पिंकी कांपती आवाज़ में कहती हैं, ‘हमने पुलिस को बार-बार कॉल किया, पर कोई नहीं आया. मेरे पति और ससुर को घर से घसीट कर बाहर ले जाकर मार डाला गया. उनकी लाशें तीन घंटे तक घर के बाहर पड़ी रहीं,’ उनकी गोद में उनकी छह साल की बेटी चुपचाप बैठी थी, जिसे शायद अब भी समझ नहीं आया कि उसके पिता अब लौटेंगे नहीं.
पिंकी अब अपने तीन बच्चों के साथ अकेली रह गई हैं. इनकी उम्र 16, 11 और 6 साल है.
पिंकी ने बताया कि शुक्रवार सुबह 10 बजे से ही युवकों की भीड़ गांव में पत्थर और बम फेंक रही थी. वह कहती हैं, ‘मैंने हमलावरों के पैर पकड़ लिए, उन्होंने मुझे धमकाया.’
‘उन्होंने हमारे घर पर चार बार हमला किया. जब आख़िरकार वे दरवाज़ा तोड़कर अंदर घुसे, तो उन्होंने हर कमरे को तहस-नहस कर दिया. फिर मेरे पति और ससुर को बाहर घसीटा और काट डाला.’
उनकी सास परुल दास ने कहा, ‘हमने बच्चों को छत पर छुपाया था. अब वे हर पल अपने पिता और दादा को खोजते रहते हैं.’
‘ईद के बाद लौटने वाला था, अब लाश लौटी’
करीब 20 किलोमीटर दूर काशीमनगर के गाजीपुर इलाके में 21 वर्षीय सलीमा बीबी की दुनिया भी उजड़ गई. उनका पति इजाज अहमद (21 साल), जो चेन्नई के एक होटल में काम करता था, पुलिस फायरिंग में मारा गया.
‘वह ईद के लिए 28 मार्च को घर आया था. रविवार को उसे वापस चेन्नई जाना था. शुक्रवार को एक रिश्तेदार से मिलने गया था, लौटते समय पुलिस की गोली लग गई. किसी ने हमें फोन कर बताया कि वह घायल है,’
सलीमा ने रोते हुए कहा. उनकी गोद में उनकी दो साल की बेटी खामोश बैठी थी.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इजाज के चाचा शाहिद शेख ने बताया, ‘अस्पताल में हमें बस यह कहा गया कि पोस्टमॉर्टम के बाद शव मिलेगा. अब तक कोई नेता, कोई पुलिसवाला हमारे घर नहीं आया.’
कड़ी सुरक्षा, लेकिन डर कायम
रविवार को साजुर मोड़ पर जहां इजाज मारा गया, वहां भारी संख्या में पुलिस, RAF और BSF तैनात थी. पास में जले हुए वाहन – सरकारी बस, दो पुलिस जीप और कई बाइकें- हिंसा के दर्दनाक निशान छोड़ गए हैं.
अब जब कलकत्ता हाईकोर्ट ने केंद्रीय बलों की तैनाती का आदेश दिया है और 150 से अधिक गिरफ्तारी हो चुकी है, तब भी गांवों में डर और अनिश्चितता का माहौल है.
‘इंसाफ कौन देगा?’
पिंकी, सलीमा और दर्जनों अन्य परिवारों के पास अब बस एक ही सवाल है: ‘हमारे साथ जो हुआ, उसका इंसाफ कौन देगा? और हम अब कैसे जिएंगे?’
इन सवालों का जवाब शायद अदालतों, सरकारों और इंसानों की संवेदनाओं से मिलेगा- या शायद नहीं. लेकिन मुर्शिदाबाद की इन गलियों में अभी सिर्फ सन्नाटा है… और टूटे दिलों की पुकार.