1990 में एकजुट हुआ यमन 5 धड़ों में कैसे बंटा? सऊदी अरब-UAE से लेकर ईरान तक के लिए बना जंग का मैदान

1 hour ago

सऊदी अरब ने यमन के मुकल्ला में हमला करके एक बार फिर मिडिल ईस्ट का तनाव बढ़ा दिया है. सऊदी का कहना है कि वहां संयुक्त अरब अमीरात (UAE) से अलगाववादी गुटों के लिए हथियारों की खेप पहुंची थी, जिसे रोकने के लिए यह हमला किया गया. जबकि UAE का कहना है कि वहां उतरने वाले सामान में किसी भी तरह के हथियार शामिल नहीं थे. दोनों के विवाद के बीच यमन चर्चा का विषय बना हुआ है. इस मौके पर हम आपको यमन के इतिहास और उसके 5 अमीरात में बंटने की कहानी बताने जा रहे हैं.

इसकी शुरुआत 628 ईस्वी से करते हैं, जब यहां इस्लाम आया. इससे पहले तक इस क्षेत्र में यहूदी और ईसाइयों का गहरा प्रभाव था. हालांति 628 ईस्वी में पैगम्बर मोहम्मद साहब के समय यहां इस्लाम पहुंचा और यह क्षेत्र बिना किसी बड़े युद्ध के इस्लामी शासन का हिस्सा बन गया. इसके बाद यहां अलग-अलग खिलाफत और इमामत का शासन रहा. उस्मानी साम्राज्य ने भी यहां पर दो बार हुकूमत की है. एक समय में यमन को 'अरबिया फेलिक्स' भी कहा जाता है था, जिसका मतलब खुशहाल होता है.

1990 से पहले तक 2 हिस्सों में था यमन

1990 से पहले यमन दो हिस्सों में बंटा हुआ था. इससे पहले यह देश उत्तर यमन (Yemen Arab Republic) और दक्षिण यमन (People’s Democratic Republic of Yemen) में बंटा हुआ था. हालांकि 22 मई 1990 को यह देश एक बार फिर से एकजुट हो गया. अली अब्दुल्लाह सालेह जो उत्तरी यमन के राष्ट्रपति थे तो वही एकीकृत यमन के भी राष्ट्रपति बने. इसके अलावा दक्षिणी यमन के राष्ट्रपति अली सालेह अल-बीध ने विलय के बाद उपराष्ट्रपति का पद संभाला.

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उत्तरी यमन में हूती का प्रभाव

इसके बाद यहां एंट्री होती है हूतियों की. उत्तर यमन जैदी शिया समुदाय का काफी प्रभाव रहा. इससे पहले यहां जैदी इमामत ने भी हुकूमत की थी जो 1962 में खत्म हुई थी. जब 1990 में यमन इकट्ठा हुआ तो सलफी/वहाबी विचारधारा का प्रसार बढ़ा, ऐसे में जैदी समुदाय के नेताओं को अपनी धार्मिक पहचान की चिंता सताने लगी और इसके लिए उन्होंने सामाजिक-धार्मिक आंदोलन किए. राष्ट्रपति अली अब्दुल्ला सालेह की सरकार से मतभेद बढ़े. 2004 में सरकार ने कार्रवाई की तो जैदी समुदाय के लीडर हुसैन अल हूती को मार गिराया.

हूतियों का कब्जा

हुसैन अल-हूती की मौत के बाद से यह संगठन पहले से ज्यादा आक्रामक हो गया और अब यह नौबत आ गई कि इसने राजधानी सना समेत उत्तर के एक बड़े इलाके पर अपना शासन कायम कर रखा है. 2011 में अली अब्दुल्ला सालेह सत्ता से हटने के बाद जब केंद्रीय सरकार कमजोर पड़ी तो हूतियों ने इस राजनीतिक खालीपन का फायदा उठाकर अपना शासन स्थापित कर लिया. इस संगठन का नाम उनके पहले लीडर हुसैन अल-हूती के नाम पर पड़ा. फिलहाल शिया बहुल्य देश ईरान इसकी मदद करता है. हालांकि कई देशों ने इसे आतंकवादी संगठन माना हुआ है.

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सऊदी अरब और UAE की एंट्री

जैसे ही इलाके में हूतियों ने अपनी पकड़ मजबूत की तो सऊदी अरब ने इसे अपने लिए खतरा माना, क्योंकि हूतियों को ईरान को समर्थन था. ऐसे में 2015 में सऊदी-UAE गठबंधन ने यमन के अंदर सैन्य दखल दिया. यहीं से यमन युद्ध अंतरराष्ट्रीय बन गया. 

UAE क्या चाहता है?

अब बात करते हैं कि यमन के अंदर UAE क्या चाहता है. इसका जवाब है कि UAE यमन के अंदर खुद को मजबूत करना चाहता है. यमन लाल सागर के दक्षिणी प्रवेश द्वार पर मौजूद है. यह जगह प्राचीन और आधुनिक व्यापार का एक बड़ा चौराहा है. यह जगह दक्षिणी यमन में पड़ती है, इसीलिए UAE दक्षिणी यमन के अलगावादी समूह Southern Transitional Council (STC) का समर्थन करता है. ताकि वो दक्षिणी यमन में बंदरगाह और तेल के रास्तों पर अपना कंट्रोल मजबूत कर सके. इसीलिए सऊदी अरब और UAE के बीच मतभेद पैदा हुए, क्योंकि सऊदी चाहता है कि पूरा यमन हादी के तहत रहे जबकि UAE दक्षिण में STC को मजबूत करना चाहता है. 

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5 हिस्सों में बंटा हुआ यमन

हूती आंदोलन (Ansar Allah)
हूती जैदी शिया आबादी का प्रमुख सशस्त्र समूह है और उत्तर व पश्चिम यमन में एक्टिव है. यह समूह राजधानी सना और आसपास के इलाकों पर कंट्रोल रखता है और ईरान से अप्रत्यक्ष समर्थन प्राप्त करता है.

हादी समर्थक सरकार (Government of Yemen)
यह अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सरकार है, जो अदन, मारिब और कुछ पूर्वी क्षेत्रों में सीमित नियंत्रण में है. सऊदी अरब नेतृत्व वाले गठबंधन से इसे सैन्य और आर्थिक मदद मिलती है.

दक्षिणी अलगाववादी गुट (Southern Transitional Council – STC)
STC दक्षिणी यमन में एक्टिव है और दक्षिणी यमन को अलग राष्ट्र बनाने की मांग करता है. यह समूह हादी सरकार से अलग है और इसी को UAE का समर्थन हासिल है.

स्थानीय कबीलाई और आदिवासी मिलिशिया
मारिब, शबवा और हज्र जैसे राज्यों में ये ग्रुप क्षेत्रीय सुरक्षा और स्वायत्त शासन बनाए रखते हैं. कभी-कभी ये हादी या हूतियों के साथ गठबंधन कर लेते हैं.

चरमपंथी संगठन (AQAP/ISIS)
अल-कायदा इन द अरबियन पेनिनसुला (AQAP) और ISIS कुछ शहरों व मरुस्थल क्षेत्रों में सक्रिय हैं. ये समूह हादी और हूतियों दोनों से लड़ते हैं और यमन की अस्थिरता का फायदा उठाते हैं.

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