124 साल पुरानी वह ट्रेन कहां गई, जिसका आडवाणी की जन्मभूमि से कनेक्शन, जानिए

2 hours ago

नई दिल्‍ली. बंटवारे के बाद भारत और पाक के बीच सीमा खिंच गयी. भारत से चलने वाली तमाम ट्रेनों का आना-जाना बंद हो गया. इसी में एक थी कराची एक्‍सप्रेस. हालांकि इस रूट पर बंटवारे के बाद भी ट्रेनें चलती रहीं, लेकिन 1965 के बाद इस रूट को पूरी तरक बंद कर दिया गया. खास बात यह है कि इस ट्रेन का भाजपा के वरिष्‍ठ नेता लाल कृष्‍ण आडवाणी से भी संबंध है. उनका जन्‍म कराची में हुआ था. ये ट्रेन बॉम्‍बे ( अब मंबई) से सिंध को जोड़ने वाली ट्रेन दोनों शहरों के बीच व्यापार, यात्रा और डाक का बड़ा साधन मानी जाती थी. इस वजह से इसे सिंध एक्‍सप्रेस भी कहा जाता था.आज यह ट्रेन कहां है और किस रूट पर चल रही है? जानें

करीब 1901 के आसपास शुरू हुई यह ट्रेन बॉम्बे विक्टोरिया टर्मिनस (आज का छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस) से चलती थी. इसका रूट अहमदाबाद, पालनपुर, मारवाड़, पाली, जोधपुर, लूनी, बारमेर, मुनाबाओ, खोखरापार, मीरपुर खास और हैदराबाद (सिंध) होते हुए कराची तक जाता था. पूरे सफर में करीब 1,200 किमी. की दूरी तय करती थी. गंतव्‍य तक पहुंचने में इसे 24 से 30 घंटे लगते थे. उस समय सुविधाजनक सफर माना जाता था.

कितनी श्रेणी होती थी इसमें

कराची मेल में तीन क्‍लास होते थे. फर्स्ट क्लास में गद्देदार बर्थ और बेहतर सुविधा दी जाती थी. सेकेंड क्लास औसत सुविधाओं के साथ मध्यम वर्ग के लोगों के लिए होती थी. थर्ड क्लास में साधारण लकड़ी की सीटें होती थी. इसमें ज्यादा भीड़ रहती थी. इसे आज का जनरल क्‍लास माना जा सकता है. इस कोच में आम लोग लंबी दूरी तक सफर करते थे. इसके साथ ही इसमें अलग से डाक वैन और लगेज कोच भी जोड़े जाते थे, जिनमें डाक थैले और सामान को ट्रासंपोर्ट किया जाता था. मुंबई से राजस्‍थान होते हुए कराची जाने वाले अंग्रेज अफसर इसी ट्रेन से सफर करते थे.

कहां से गुजरती थी ट्रेन  

इस ट्रेन का रूट अपने आप में खास था. ट्रेन राजस्थान के रेगिस्तानी होते हुए सिंध के मैदानों इलाकों और फिर अरब सागर के किनारे से होते हुए कराची तक पहुंचती थी. इस तरह इस ट्रेन से सफर करने वाले यात्र सफर के दौरान अलग–अलग तरह के नज़ारों का आनंद लेते थे. इस तरह सफर के दौरान अलग अलग नजारों का आनंद लेना होता था, तो इस ट्रेन से सफर कर सकते हैं.

कराची मेल करीब 1901 के आसपास शुरू हुई थी, जो ब्रिटिश काल में बॉम्बे (अब मुंबई) से कराची( सिंध) तक चलती थी. इस वजह से सिंध मेल से भी जानी जाती थी. ट्रेन बॉम्बे विक्टोरिया टर्मिनस (अब सीएसएमटी) से शुरू सिंध होते हुए कराची पहुंचती थी. 1,200 किमी. की दूरी तय करती थी. ट्रेन में तीन क्लास फर्स्ट क्लास, सेकेंड क्लास और थर्ड क्लास होते थे. यह ट्रेन व्यापारियों, यात्रियों, अंग्रेज अफसरों और डाक के लिए महत्वपूर्ण थी. भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद रूट दो हिस्सों में बंट गया.

बंटवारे के बाद क्‍या हुआ  

1947 में भारत–पाकिस्तान बंटवारे के बाद ट्रेन का रूट भी बदल गया. नई अंतरराष्ट्रीय सीमा बनने के बाद रूट दो हिस्सों में बंट गया. भारतीय हिस्सा जोधपुर से मुनाबाओ तक रह गया, जबकि पाकिस्‍तान में खोखरापार से कराची तक का हिस्सा चला गया. बंटवारे के बाद कुछ समय तक इस मार्ग पर शरणार्थी ट्रेनें चलीं, लेकिन बढ़ते तनाव और सुरक्षा कारणों से सीधी सेवा बंद हो गई. 1965 के युद्ध के बाद सीमावर्ती रेल संपर्क लगभग पूरी तरह ठप हो गया और कराची मेल इतिहास का हिस्सा बन गई.

लाल कृष्‍ण आडवाणी से क्‍या है संबंध

इस ट्रेन का देश के पूर्व प्रधानमंत्री लालकृष्‍ण आडवाणी से भी संबंध है. इस ट्रेन से भावनात्मक जुड़ाव माना जाता है. वे सिंधी हिंदू परिवार से थे और कराची व सिंध वही इलाका था, जहां यह ट्रेन पहुंचती थी. विभाजन के बाद 12 सितंबर 1947 को वे आरएसएस स्वयंसेवकों के साथ दिल्ली आए.

आज कहां है यह ट्रेन

भारत में कराची मेल नाम की ट्रेन नहीं चलती है. वहीं पाकिस्‍तान में कुछ ट्रेन सेवाएं इसी ट्रेन के रूप पर चलती हैं. पाकिस्तान रेलवे की बोलन मेल कराची से क्वेटा के बीच चलती है. करीब 916 किलोमीटर का सफर 20–25 घंटे में तय करती है. यह ट्रेन 1960 के दशक में शुरू हुई, जो आज भी चल रही है.

कराची मेल कब शुरू हुई?
कराची मेल ब्रिटिश काल में एक महत्वपूर्ण पैसेंजर ट्रेन थी, जो करीब 1901 में शुरू हुई.

इस ट्रेन का रूट कैसा था?
ट्रेन छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस (मुंबई) से शुरू होकर अहमदाबाद, पालनपुर, जोधपुर, मीरपुर खास, हैदराबाद (सिंध) होते हुए कराची पहुंचती थी.

इस ट्रेन से कौन-कौन सफर करते थे?
व्यापारी, यात्री, अंग्रेज अफसर और आम लोग सफर करते थे. यह व्यापार, यात्रा और डाक के लिए बहुत महत्वपूर्ण थी.

1947 के बंटवारे के बाद क्या हुआ?
बंटवारे के बाद रूट दो हिस्सों में बंट गया. भारतीय हिस्सा जोधपुर-मुनाबाओ तक और पाकिस्तानी हिस्सा खोखरापार-कराची तक.

ट्रेन कब पूरी तरह बंद हुई?
1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद सीमावर्ती रेल ट्रैक नष्ट हो गए, जिसके बाद से कराची मेल पूरी तरह बंद हो गई

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