सन 81 की वो हत्‍या जिसने खालिदा जिया के मुस्‍तकबिल को बदला, सियासत ने दिया 'बैटल ऑफ बेगम्स' का नाम

2 hours ago

Battle Of The Begums: बांग्लादेश की राजनीति को कई दशकों तक दो प्रमुख महिला नेताओं की कट्टर दुश्मनी का दंश झेलना पड़ा. इसे बांग्लादेश समेत पूरी दुनिया 'बैटल ऑफ द बेगम्स' के नाम से जानती है. 'बैटल ऑफ द बेगम्स' में एक ओर थी अवामी लीग की नेता और बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान की बेटी शेख हसीना वाजेद, जबकि दूसरी ओर थी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) की प्रमुख और पूर्व राष्ट्रपति जियाउर रहमान की पत्नी बेगम खालिदा जिया.

1975 की हत्याओं से शुरू हुई राजनीतिक दुश्मनी

जानकारी के अनुसार, यह राजनीतिक संघर्ष 1975 में शुरू हुआ जब 15 अगस्त को एक सैन्य तख्तापलट के दौरान बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान और उनके परिवार के अधिकांश सदस्य मारे गए. इस हमले को बांग्लादेशी सेना के एक समूह ने अंजाम दिया था. शेख हसीना और उनकी बहन शेख रेहाना उस समय विदेश में थीं, इसलिए वे इस हमले से बच गईं. इस घटना के बाद, हसीना ने अपने पिता की विरासत को संभाला और अवामी लीग का नेतृत्व किया.

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माना जाता है कि इस तख्तापलट के पीछे बांग्लादेश के तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल शफीउल्लाह के साथ पूर्व सेना प्रमुख जियाउर रहमान का हाथ था जो बाद में बांग्लादेश के राष्ट्रपति बने. जियाउर रहमान ने हत्यारों को माफी दिलाने वाला कानून भी पास किया था. शेख हसीना ने जियाउर रहमान पर आरोप लगाया था कि उनके पिता की हत्या में जियाउर रहमान की अहम भूमिका थी. सात साल बाद, 1981 में एक सैन्य विद्रोह हुआ जिसके परिणामस्वरूप जियाउर रहमान की भी हत्या हो गई.

जियाउर रहमान की हत्या के बाद खालिदा जिया ने की राजनीतिक एंट्री

जियाउर रहमान की हत्या के बाद उनकी पत्नी खालिदा जिया ने बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) की कमान संभाली और राजनीति में कदम रखा. खालिदा का कहना था कि अवामी लीग के लोग उनके पति की हत्या में शामिल थे, जबकि हसीना का आरोप था कि जियाउर रहमान ने उनके पिता की हत्या की योजना बनाई थी. इस प्रकार, दोनों के बीच व्यक्तिगत दुश्मनी ने राजनीतिक संघर्ष का रूप ले लिया.

1980 के दशक के अंत में दोनों नेताओं ने मिलकर तानाशाह हुसैन मुहम्मद एर्शाद के खिलाफ संघर्ष किया. 1990 में एर्शाद की सत्ता गिर गई और बांग्लादेश में लोकतंत्र बहाल हुआ. हालांकि, इसके बाद दोनों नेताओं के रास्ते अलग हो गए और उनकी राजनीतिक लड़ाई और तेज हो गई.

सत्ता के लिए संघर्ष

1991 में खालिदा जिया ने बांग्लादेश का पहला लोकतांत्रिक चुनाव जीतकर देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनने का गौरव हासिल किया. इसके बाद 1996 में हसीना की अवामी लीग ने चुनाव जीतकर सरकार बनाई और वे प्रधानमंत्री बनीं. 2001 में खालिदा जिया फिर से सत्ता में लौटीं. इसके बाद से 2009 से लेकर 2024 तक हसीना लगातार सत्ता में रही और 4 बार प्रधानमंत्री बनीं.

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इस दौरान, दोनों नेताओं ने एक-दूसरे पर भ्रष्टाचार, लोकतंत्र को कुचलने और हत्या के प्रयासों के आरोप लगाए. 2004 में हसीना पर एक ग्रेनेड हमला हुआ जिसमें 20 से अधिक लोग मारे गए. हसीना ने आरोप लगाया कि खालिदा के बेटे तारिक रहमान इसके जिम्मेदार थे. इसके बाद 2018 में खालिदा जिया को भ्रष्टाचार के मामलों में गिरफ्तार किया गया और हसीना की सरकार ने उन्हें जेल भेज दिया.

छात्र आंदोलन से फिर आया बांग्लादेश की राजनीति में टर्निंग प्वाइंट

2024 में बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों में कोटा प्रणाली के खिलाफ छात्रों का एक बड़ा आंदोलन शुरू हुआ. यह आंदोलन जल्द ही हसीना सरकार के खिलाफ हो गया और आरोप लगे कि हसीना की सरकार तानाशाही बन गई थी. विपक्षी नेताओं और कार्यकर्ताओं का आरोप था कि चुनाव धांधली से जीते गए और विपक्ष को कुचला जा रहा. जुलाई और अगस्त में यह आंदोलन हिंसक हो गया, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए. आखिरकार, 5 अगस्त 2024 को जब विरोधी आंदोलन ने जोर पकड़ लिया तो हसीना ने इस्तीफा दे दिया और हेलिकॉप्टर से भारत आ गई. इस निर्णय ने बांग्लादेश की राजनीति में एक बड़ा मोड़ ला दिया.

खालिदा जिया की रिहाई

हसीना के भागने के बाद खालिदा जिया को जेल से रिहा किया गया. इसके साथ ही नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस को अंतरिम सरकार का प्रमुख नियुक्त किया गया. अवामी लीग पर प्रतिबंध लगा दिया गया और हसीना पर मानवता के खिलाफ अपराधों के आरोप लगाए गए. नवंबर 2025 में बांग्लादेश के एक ट्रिब्यूनल ने हसीना को मौत की सजा सुनाई. बता दें, बांग्लादेश का बैटल ऑफ बेगम्स एक लंबी और जटिल राजनीतिक लड़ाई रही है, जो दो प्रमुख महिला नेताओं के बीच लगातार बढ़ती दुश्मनी और सत्ता संघर्ष से जन्मी. यह संघर्ष शेख मुजीबुर रहमान और जियाउर रहमान की हत्याओं से शुरू हुआ और अब तक विभिन्न राजनीतिक और सामाजिक घटनाओं से गुजरते हुए एक महत्वपूर्ण मोड़ पर पहुंच चुका है.

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