Last Updated:June 11, 2025, 16:47 IST
Kerala Ship Fire: सिंगापुर के कार्गो शिप M V Wan Hai 503 में लगी आग का 40% से अधिक हिस्सा काबू में है. जहाज 9 जून को विस्फोट के बाद आग की चपेट में आया था. जहाज पर कोई नहीं है और यह अभी भी धुआं छोड़ रहा है.

केरल में सिंगापुर के कार्गो शिप में आग लग गई. (File Photo)
हाइलाइट्स
सिंगापुर के कार्गो शिप में लगी आग का 40% हिस्सा काबू में है.जहाज पर कोई नहीं है और यह अभी भी धुआं छोड़ रहा है.शिप ऑपरेशन से जुड़े 10 सवाल जो आप जरूर जानना चाहेंगे.Kerala Ship Fire: सिंगापुर के कार्गो शिप M V Wan Hai 503 में लगी आग का 40% से अधिक हिस्सा अब काबू में आ चुका है. यह जानकारी इंडियन कोस्टगार्ड की तरफ से दी गई है. जहाज 9 जून को बेयपोर तट से 44 नॉटिकल मील दूर विस्फोट के बाद आग की चपेट में आया था. वर्तमान में यह जहाज भारतीय तट से लगभग 65 नॉटिकल मील दूर 1000-मीटर गहराई वाले शेल्फ क्षेत्र के पार स्थित है. जहाज पर कोई नहीं है और यह अभी भी धुआं छोड़ रहा है. SITREP यानी सिचुएशन रिपोर्ट के अनुसार आग को मुख्य रूप से जहाज के आगे के हिस्सों (बेज) में नियंत्रित किया गया है, जहां सामान रखा जाता है. हालांकि कोई संरचनात्मक नुकसान नहीं हुआ है, लेकिन आग लगे हिस्सों के पास अब भी थर्मल और गैस से जुड़ी जोखिमें बनी हुई हैं. शिप ऑपरेशन के दौरान ऐसे 10 सवाल जिसे हर कोई जरूर जानना चाहेगा? चलिए हम आपको इसके बारे में बताते हैं.
यह पूरी तरह जहाज के प्रकार, उसके आकार, नुकसान की गंभीरता और दुर्घटना के स्थान पर निर्भर करता है. छोटा बोट या फिशिंग वेसल कुछ ही मिनटों में डूब सकता है, जबकि बड़े क्रूज या कार्गो शिप को पूरी तरह डूबने में घंटों लग सकते हैं टाइटैनिक जैसे जहाज को डूबने में करीब 2 घंटे 40 मिनट लगे थे.
अगर जहाज में पानी भर रहा हो, तो सुरक्षा कारणों से इंजन बंद कर दिया जाता है ताकि आग, विस्फोट या शॉर्ट सर्किट की आशंका न रहे. कभी-कभी इंजन को चालू रखा जाता है अगर जहाज को किनारे या सुरक्षित जगह तक पहुंचाने की कोशिश हो रही हो.
परंपरा और समुद्री नैतिकता के अनुसार, कप्तान जहाज का अंतिम व्यक्ति होता है जो उसे छोड़ता है. वह अंतिम समय तक यात्रियों और क्रू को सुरक्षित निकालने की कोशिश करता है. हालांकि आधुनिक समय में कप्तान की प्राथमिक जिम्मेदारी मानव जीवन की रक्षा है, न कि जहाज में फंसे रहना.
हां, अंतरराष्ट्रीय समुद्री कानून के अनुसार हर शिप में यात्रियों और क्रू की संख्या से अधिक लाइफ जैकेट और पर्याप्त लाइफ बोट होनी चाहिए. इनकी समय-समय पर जांच भी होती है.
अधिकतर जहाजों में “Emergency Position-Indicating Radio Beacon” (EPIRB) होती है जो डूबते समय ऑटोमैटिकली एक्टिव हो जाती है और सैटेलाइट्स के जरिए लोकेशन भेजती है. इसके अलावा रेडियो और GPS सिस्टम से SOS भेजा जाता है.
हां, किसी भी समुद्री यात्रा से पहले मौसम का पूर्वानुमान देखा जाता है. लेकिन कभी-कभी मौसम अचानक खराब हो जाता है या तूफान की सटीक जानकारी नहीं मिलती, जिससे हादसे होते हैं.
यदि जहाज पर ज्वलनशील पदार्थ या ईंधन हो और वह पानी में संपर्क या शॉर्ट सर्किट के कारण आग पकड़ ले, तो विस्फोट संभव है. इसी कारण इंजन और इलेक्ट्रिकल सिस्टम बंद किए जाते हैं.
हां, बड़े शिप्स में “Voyage Data Recorder” (VDR) होता है, जो ब्लैक बॉक्स की तरह कार्य करता है. यह कम्युनिकेशन, स्पीड, लोकेशन आदि की जानकारी रिकॉर्ड करता है, जो जांच में मदद करता है.
तैरना आना सहायक हो सकता है, लेकिन खुले समुद्र में लहरें, ठंडा पानी और दूरी जान बचाना मुश्किल बना देते हैं. इसलिए लाइफ जैकेट और लाइफ बोट ज्यादा जरूरी होते हैं.
समुद्री हादसे की जांच मर्चेंट शिपिंग एक्ट और संबंधित देशों के मरीन अथॉरिटी द्वारा की जाती है. भारत में यह जिम्मेदारी DG Shipping या कोस्ट गार्ड की होती है.
पत्रकारिता में 14 साल से भी लंबे वक्त से सक्रिय हूं. साल 2010 में दैनिक भास्कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण और पंजाब केसरी में एक रिपोर्टर के तौर पर काम किया. इस दौरान क्राइम और...और पढ़ें
पत्रकारिता में 14 साल से भी लंबे वक्त से सक्रिय हूं. साल 2010 में दैनिक भास्कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण और पंजाब केसरी में एक रिपोर्टर के तौर पर काम किया. इस दौरान क्राइम और...
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