Last Updated:September 19, 2025, 18:01 IST
नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने दावा किया है कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव में सॉफ्टवेयर से वोटर लिस्ट से नाम हटाए गए हैं, लेकिन चुनाव आयोग ने इन आरोपों को गलत बताया है.

नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के उन आरोपों को चुनाव आयोग ने सिरे से खारिज किया है जिसमें उन्होंने सॉफ्टवेयर के माध्यम से वोट काटे जाने का दावा किया था. चुनाव आयोग की तरफ से कहा गया है कि ऑनलाइन डिलीशन असंभव है. दरअसल, राहुल गांधी ने एक प्रेस कांफ्रेंस में दावा किया था कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव के दौरान आलंद सीट से बड़े पैमाने पर मतदान सूची से नाम हटाए थे. उनके आरोप थे कि इन वोटर्स को सॉफ्टवेयर के जरिए हटाया गया था. तो ऐसे में अब सवाल हो उठ रहा है कि क्या किसी एक व्यक्ति का वोट कोई दूसरा व्यक्ति हटवा सकता है, अगर ऐसा होता है तो उसकी प्रक्रिया और प्रावधान क्या हैं? आइए इसे जानते हैं…
चुनाव आयोग के अनुसार, वोटर लिस्ट को अपडेट करते रहना जरूरी है ताकि केवल योग्य नागरिक ही इसमें शामिल रहें. सूची से नाम हटाने का मुख्य आधार मृत्यु, ट्रांसफर, डुप्लिकेट एंट्री या गैर-नागरिकता जैसे कारण होते हैं. यह प्रक्रिया फॉर्म 7 के माध्यम से होती है, जिसे ऑनलाइन या ऑफलाइन दोनों माध्यमों से जमा किया जा सकता है. फॉर्म 7 चुनाव आयोग की वेबसाइट पर भी है, जिसमें निर्वाचन क्षेत्र का नाम, वोटर आईडी नंबर, हटाने का कारण और आवेदक की जानकारी देनी होता है. इसे जमा करने पर बूथ लेवल ऑफिसर यानी बीएलओ से रसीद मिलती है.
समझें क्या है पूरी प्रक्रिया?
किसी मतदाता का नाम सूची से हटवाने के लिए कई स्टेप है, जिनके बाद इन किसी मतदाता का नाम सूची से हटाया जाता है. सिलसिलेवार इन्हें जानते हैं.
आवेदन : किसी व्यक्ति का नाम मतदाता सूची से हटवाने के लिए कोई भी मतदाता फॉर्म 7 भरकर इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर (ईआरओ) को जमा करता है. इस साथ ही कारण स्पष्ट होता है, जैसे-ट्रांसफर, मृत्यु, डुप्लिकेट नाम या पते पर अनुपस्थिति.
आवेदन की जांच: ईआरओ आवेदन की प्रारंभिक जांच करता है कि यह कानूनी आवश्यकताओं को पूरा करता है या नहीं.
नोटिस जारी करना: जांच के बाद, जिस मतदाता का नाम हटाने का प्रस्ताव उसे नोटिस भेजा जाता है. इसके लिए सुनवाई की तारीख, समय और स्थान का निर्धारित होते हैं.
ग्राउंड वेरिफिकेशन: बीएलओ इससे संबंधित मतदाता के पते पर जाकर वैरिफाई करता है कि मतदाता वहां रहता है या नहीं. इसका मुख्य काम ये चेक करना होता है कि जो आवेदन आया है सही है या गलत.
सुनवाई: आवेदक और प्रभावित मतदाता दोनों को सुनवाई में अपनी बात रखने का मौका मिलता है. इसमें अधिकारी दस्तावेज मांग सकते हैं, व्यक्तिगत उपस्थिति की मांग कर सकते हैं. जरूरत पड़ने पर शपथ-पत्र पर बयान दर्ज कर सकते हैं.
ईआरओ की मंज़ूरी: दस्तावेजों पर विचार करने के बाद, इआरओ या तो आवेदन को अस्वीकार कर देता है या नाम हटाने को मंज़ूरी दे देता है. अगर मंज़ूरी मिल जाती है, तो नाम हटा दिया जाता है सूची को अपडेट कर दिया जाता है.
अपील का अधिकार: यदि किसी मतदाता को लगता है कि उसका नाम गलती से हटाया गया है, तो वह ईआरओ के आदेश को चुनौती दे सकता है. वो निवास और पहचान के प्रमाण के साथ फॉर्म 6 भरकर नाम शामिल करने के लिए नए सिरे से आवेदन भी कर सकते है. फॉर्म 7 आवेदन में की गई झूठी घोषणाएँ दंडनीय होती हैं.
क्या कोई व्यक्ति या तीसरा पक्ष किसी का नाम हटा सकता है?
इसका जवाब है हां, लेकिन ये केवल निर्धारित की गई प्रक्रिया के तहत ही हो सकता है. कोई भी संबंधित निर्वाचन क्षेत्र का मतदाता फॉर्म 7 के जरिए अपना नाम या किसी अन्य का नाम (जैसे पड़ोसी या रिश्तेदार) हटाने का आवेदन कर सकता है, इसके पीछे बशर्ते कारण वैध होना चाहिए. हालांकि, सभी आवेदनों पर सत्यापन और सुनवाई अनिवार्य होती है. फॉर्म 7 में झूठी घोषणा पर प्रतिनिधि जनता अधिनियम की धारा 31 के तहत सजा का प्रावधान है.
ऑनलाइन नाम हटाया जा सकता है ?
राहुल गांधी ने आरोप लगाया है कि फर्जी मोबाइल नंबरों और ओटीपी का इस्तेमाल करते हुए हज़ारों आवेदन दाखिल किए गए. हालाँकि, चुनाव आयोग के नियमों की मानें तो संभव नहीं है. ऑनलाइन पोर्टल केवल आवेदन स्वीकार करते हैं, लेकिन वे खुद नाम नहीं हटा सकते हैं. प्रत्येक मामले में अभी भी सत्यापन और सुनवाई की आवश्यकता होती है. किसी भी तरह के संदेह में ईआरओ को प्रक्रिया का पालन करना होता है. किसी वोटर का नाम अगर सॉफ़्टवेयर से हटाने का प्रयास किया गया, तो यह धोखाधड़ी और आपराधिक गतिविधि माना जाता है.
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First Published :
September 19, 2025, 18:01 IST
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