'रासपुतिन' एक ऐसा नाम जो 100 साल से ज्यादा गुजर जाने के बाद बावजूद चर्चा के केंद्र में रहता है. रूस का एक ऐसा बाबा जो तंत्र-मंत्र में माहिर था, इतना कि रूस का शाही परिवार भी उसका मुरीद था. वह भविष्यवक्ता था, इतिहासकारों के मुताबिक रासपुतिन शराबखोरी और बंधन न माननेवाला जीवन जीने के लिए बदनाम था. इसी शख्स की 30 दिसंबर 1916 को हत्या हो गई थी. उसने अपनी मौत की भी भविष्यवाणी कर दी थी.
कौन था रासपुतिन?
रूस की राजधानी पेट्रोग्राड (वर्तमान सेंट पीटर्सबर्ग) में ग्रिगोरी येफिमोविच रासपुतिन की हत्या कर दी गई थी. रासपुतिन एक रहस्यमयी साधु, आध्यात्मिक व्यक्ति और स्वयंभू संत के तौर पर पहचना जाता था. जिसने रूसी सम्राट जार निकोलस द्वितीय और खास तौर पर महारानी एलेक्जेंड्रा फ्योदोरवोना पर असाधारण प्रभाव बना लिया था. इतिहासकारों के मुताबिक रासपुतिन की हत्या को 1917 की रूसी क्रांति से ठीक पहले घटने वाली सबसे निर्णायक और प्रतीकात्मक घटनाओं में गिना जाता है.
शाही परिवार की साख पर लगे धब्बे
इतिहासकार ऑरलैंडो फाइजेस अपनी मशहूर किताब 'अ पीपल्स ट्रेजेडी: द रशियन रेवोल्यूशन 1891–1924' में जिक्र करते हैं कि रासपुतिन की मौजूदगी ने राजशाही की साख को कमजोर करने का काम किया. जार के बेटे अलेक्सी हीमोफीलिया नामक गंभीर बीमारी से पीड़ित थे और माना जाता था कि रासपुतिन की प्रार्थनाओं और इलाज से उनकी हालत में सुधार होता था. इसी वजह से महारानी एलेक्जेंड्रा रासपुतिन को ईश्वर का भेजा हुआ दूत मानने लगीं.
रासपुतिन का बढ़ता राजनीतिक प्रभाव
रासपुतिन का बढ़ता राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव रूसी अभिजात वर्ग, सेना और चर्च के एक बड़े हिस्से को अस्वीकार्य लगने लगा. अमेरिकी इतिहासकार डगलस स्मिथ अपनी किताब 'रासपुतिन: फेथ, पावर एंड द ट्विलाइट ऑफ द रोमनोवस' में लिखते हैं कि प्रथम विश्व युद्ध के दौरान रूस की हार, आर्थिक संकट और जनता की नाराजगी के बीच रासपुतिन को सत्ता के पतन का प्रतीक माना जाने लगा था. आम लोगों में यह धारणा फैल चुकी थी कि वह शासन को भीतर से खोखला कर रहा है.
30 को हुई रासपुतिन की हत्या
30 दिसंबर 1916 की रात राजकुमार फेलिक्स युसुपोव, ग्रैंड ड्यूक दिमित्री पावलोविच और कुछ अन्य कुलीनों ने मिलकर रासपुतिन की हत्या की साजिश रची. कई ऐतिहासिक स्रोतों में जिक्र मिलता है कि पहले उसे जहर दिया गया, फिर गोली मारी गई और आखिर में उसका शव नेवा नदी में फेंक दिया गया. हालांकि हत्या के तरीके को लेकर आज भी मतभेद हैं, लेकिन यह निर्विवाद है कि यह काम राजशाही को बचाने के नाम पर किया गया था.
कत्ल के बाद शाही परिवार की उल्टी गिनती
इतिहासकारों का मानना है कि रासपुतिन की हत्या से राजशाही को कोई फायदा नहीं हुआ. उल्टा, इससे यह साफ हो गया कि सत्ता के अंदर ही गहरी साजिशें और अस्थिरता पैदा हो गई थीं. कैम्ब्रिज हिस्ट्री ऑफ रशिया जैसे अकादमिक ग्रंथों में रासपुतिन की हत्या को उस पतनशील व्यवस्था का संकेत बताया गया है, जो कुछ ही महीनों बाद फरवरी 1917 की क्रांति में ढह गई.
मिट गई पूरा राजशाही
इस तरह 30 दिसंबर 1916 को हुई ग्रिगोरी रासपुतिन की हत्या सिर्फ एक व्यक्ति की मौत नहीं थी, बल्कि यह रूसी साम्राज्य के अंत की पूर्वसूचना बन गई. जिसकी भविष्यवाणी भी उसने पहले ही कर दी थी. निकोलस द्वितीय को लिखे एक खत में कहा था कि अगर उसकी हत्या रईस परिवार से जुड़े लोगों ने की तो यह रूस की राजशाही के अंत की शुरुआत होगी. हुआ भी वैसा ही, 1917 में रूसी क्रांति हुई, जिसने न सिर्फ निकोलस द्वितीय के शासन को खत्म किया, बल्कि पूरी राजशाही को ही मिटा दिया.
रासपुतिन नाम का गीत
इतिहास में यह घटना आज भी सत्ता, अंधविश्वास और राजनीतिक पतन के खतरनाक मेल की चेतावनी के तौर पर याद की जाती है. रासपुतिन की मौत के बाद भी उसकी कहानी समाप्त नहीं हुई. 1978 में जर्मन-कैरेबियन पॉप ग्रुप बोनी एम ने 'रासपुतिन' नामक गीत जारी किया, जिसने दुनिया भर में धूम मचा दी. इस गीत में रासपुतिन को 'रशियन ग्रेटेस्ट लव मशीन' कहा गया और उसकी रहस्यमयी छवि को नृत्य और संगीत के जरिए पेश किया गया. इतिहास के एक विवादित चरित्र का डिस्को म्यूजिक में बदल जाना यह दिखाता है कि रासपुतिन की कहानी कितनी गहरी और वैश्विक प्रभाव वाली है.
(इनपुट-आईएएनएस)

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