Last Updated:June 11, 2025, 11:28 IST
Lalu Yadav News: बिहार की सियासत में अपनी अनोखी शैली और बेबाक अंदाज़ के लिए मशहूर लालू प्रसाद यादव ने देश की राजनीति में एक अलग ही छाप छोड़ी है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह शख्स जिसने बिहार की राजनीति को नई द...और पढ़ें

राजद अध्यक्ष लालू यादव 78 वर्ष के हो गए. (फाइल फोटो)
पटना. लालू प्रसाद यादव की जिंदगी एक ऐसी किताब है जिसमें हर पन्ना परिश्रम, संघर्ष, हिम्मत और प्रेरणा से भरा है. सिपाही बनने का उनका सपना भले ही अधूरा रहा, लेकिन इस सपने ने उन्हें उस रास्ते पर ला खड़ा किया जहां उन्होंने न सिर्फ बिहार, बल्कि पूरे देश की राजनीति को एक नया रंग दिया. आज जब हम लालू यादव को याद करते हैं तो यह किस्सा हमें उनके उस साधारण अतीत की याद दिलाता है जिसने एक असाधारण व्यक्तित्व को जन्म दिया. कभी एक साधारण सिपाही बनने का का सपना देखने वाला व्यक्ति आज देश का इतना बड़ा व्यक्तित्व है जिनके इर्द-गिर्द सत्ता के समीकरण के गणित बनते और बिगड़ते हैं. एक साधारण सिपाही बनकर अपने परिवार को गरीबी से निकालने का सपना देखने वाला शख्स कैसे राजनीति का सिरमौर बन गया और इस खास शख्सियत ने पूरे बिहार के गरीबों को वो आवाज दी जो अब दिल्ली दरबार तक सुनी जाती है. आइये आगे लालू यादव के राजनीतिक सफर की जानकारी के साथ ही वह दिलचस्प कहानी भी जानते हैं जब वह बिहार पुलिस में सिपाही बनना चाहते थे.
गोपालगंज के फुलवरिया से शुरू हुआ सफर- लालू प्रसाद यादव वर्तमान में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. वह बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और भारत के रेलमंत्री रह चुके हैं. उनका सिपाही बनने के सपने से सियासत के सिरमौर बनने तक की दिलचस्प कहानी जानने से पहले उनकी जीवन यात्रा के बारे में जानते हैं. लालू प्रसाद यादव का जन्म 11 जून 1948 को बिहार के गोपालगंज जिले के फुलवरिया गांव में एक साधारण यादव परिवार में हुआ था. उनके पिता कुंदन राय के पास मुश्किल से एक बीघा जमीन थी और परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर थी. लालू के बड़े भाई मंगरू राय ने मीडिया से बात करते हुए एक बार बताया था कि, गांव में उनकी झोपड़ी मिट्टी और घास-फूस से बनी थी. घर में खाने को भरपेट भोजन और पहनने को ढंग के कपड़े तक नहीं होते थे. ऐसे में लालू और उनके भाई-बहन मवेशी चराने और खेतों में काम करने में दिन बिताते थे. लेकिन, लालू यादव में बचपन से ही कुछ अलग करने की जिद थी.
सरकारी नौकरी चाहते थे लालू यादव
लालू यादव गांव के उन बच्चों में से थे जो सामाजिक सीमाओं को तोड़कर बड़ों से बेखौफ बात करते थे. लेकिन, लालू यादव की पढ़ाई-लिखाई भी आसान नहीं थी. छह वर्ष की आयु में वह अपने बड़े भाई के साथ पटना आ गए. पटना विश्वविद्यालय के बी.एन. कॉलेज में उन्होंने एलएलबी और राजनीति विज्ञान में मास्टर डिग्री हासिल की. लेकिन, पढ़ाई के दौरान भी उनकी आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि उन्होंने बिहार वेटनरी कॉलेज में क्लर्क की नौकरी की जहां उनके बड़े भाई चपरासी थे. इस दौरान लालू यादव के मन में एक ही सपना पलता था कि एक स्थायी सरकारी नौकरी जो उनके परिवार की आर्थिक स्थिति सुधार सके. उस कालखंड में उनको अपने इस सपने को पूरा करने का सबसे ठोस रास्ता उन्हें बिहार पुलिस में सिपाही की नौकरी में दिखा था.
बिहार पुलिस में भर्ती होना चाहते थे लालू यादव. अगर ऐसा होता तो उनका लुक कुछ ऐसा होता.
सिपाही भर्ती का वह रोचक किस्सा
वरिष्ठ पत्रकार संकर्षण ठाकुर की किताब ‘द ब्रदर्स बिहारी’ में लालू के सिपाही बनने के सपने से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा दर्ज है. बात उस समय की है जब लालू पटना विश्वविद्यालय में छात्र राजनीति में सक्रिय होने लगे थे. वह जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से जुड़े थे और छात्र नेता के तौर पर अपनी पहचान बना रहे थे. लेकिन, उनके मन में राजनीति को लेकर कोई बड़ा सपना नहीं था. उन्हें लगता था कि छात्र राजनीति में भविष्य अनिश्चित है और एक सरकारी नौकरी ही उनकी जिंदगी को स्थिरता दे सकती है.
…लेकिन लालू यादव वहां भी नहीं मिले
एक बार बी.एन. कॉलेज में एक बड़ा धरना-प्रदर्शन होने वाला था जिसमें लालू की मौजूदगी बेहद जरूरी थी. लेकिन, उस दिन लालू गायब थे. उनके साथी और वरिष्ठ नेता नरेंद्र सिंह ने उन्हें ढूंढने के लिए लोगों को उनके घर तक भेजा, लेकिन लालू यादव वहां भी नहीं मिले. प्रदर्शन खत्म होने के बाद शाम को लालू थके-हारे और चोटिल अवस्था में नरेंद्र सिंह के पास पहुंचे. नरेंद्र सिंह ने जब पूछा कि वह कहां थे, तो लालू ने बताया कि वह बिहार पुलिस की सिपाही भर्ती में हिस्सा लेने गए थे.
भविष्य सिपाही की वर्दी में नहीं, बल्कि…
लालू यादव ने बताया कि भर्ती प्रक्रिया में सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन दौड़ के दौरान वह गिर गए और चोटिल हो गए. इस वजह से वह भर्ती में असफल रहे. यह असफलता लालू के लिए निराशाजनक थी, लेकिन यही वह पल था जिसने उनकी जिंदगी की दिशा बदल दी. नरेंद्र सिंह ने उन्हें समझाया कि उनका भविष्य सिपाही की वर्दी में नहीं, बल्कि राजनीति में है. इस घटना के बाद लालू ने छात्र राजनीति में और अधिक सक्रियता दिखाई और यहीं से उनके सियासी सफर की नींव पड़ी.
लालू यादव राजनीति में अपने खास मसखरे अंदाज के लिए भी जाने जाते हैं.
सिपाही के सपने से सियासत के सिरमौर तक
लालू प्रसाद यादव की यह असफलता उनके लिए एक वरदान साबित हुई. वर्ष 1977 में मात्र 29 साल की उम्र में वह जनता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में लोकसभा सांसद चुने गए और सबसे कम उम्र के सांसदों में से एक बने. इसके बाद वर्ष 1980 और 1985 में वह बिहार विधानसभा के सदस्य रहे और 1989 में विपक्ष के नेता बने. 1990 में वह बिहार के मुख्यमंत्री बने और उनकी अनोखी शैली ने उन्हें न सिर्फ बिहार, बल्कि पूरे देश में मशहूर कर दिया.
सामाजिक-राजनीतिक स्वरूप को बदल दिया
लालू यादव ने अपनी सियासत में गरीब गुरबों और विशेष रूप से यादव और मुस्लिम समुदायों को एक नई आवाज दी. उनकी नीतियों और बयानों ने बिहार की सामाजिक और राजनीतिक स्वरूप को बदल दिया. हालांकि, उनके करियर में दाग लगे और चारा घोटाले जैसे विवादों में रहे. उनको इस मामले में सजा भी मिली जिससे उनकी छवि को प्रभावित हुई. लेकिन, एक तथ्य यह भी कि इसके बाद भी उनकी लोकप्रियता और जनता से जुड़ाव कभी कम नहीं हुआ.
लालू यादव के सपने और हकीकत का मेल
लालू यादव का सिपाही बनने का सपना भले ही पूरा नहीं हुआ, लेकिन उनकी जिंदगी ने उन्हें उससे कहीं बड़ा मुकाम दिया. एक साधारण गांव से निकलकर देश की सियासत में अपनी जगह बनाने वाले लालू की कहानी यह सिखाती है कि असफलताएं कभी अंत नहीं होतीं, बल्कि वे नए रास्तों की शुरुआत हो सकती हैं. सिपाही की वर्दी का सपना देखने वाला यह शख्स आज भी अपनी बेबाकी और हाजिरजवाबी के लिए जाना जाता है. उनकी यह कहानी हमें सिखाती है कि जिंदगी में सपने बदल सकते हैं, लेकिन हौसले और मेहनत से कोई भी मुकाम हासिल किया जा सकता है.
पत्रकारिता क्षेत्र में 22 वर्षों से कार्यरत. प्रिंट, इलेट्रॉनिक एवं डिजिटल मीडिया में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन. नेटवर्क 18, ईटीवी, मौर्य टीवी, फोकस टीवी, न्यूज वर्ल्ड इंडिया, हमार टीवी, ब्लूक्राफ्ट डिजिट...और पढ़ें
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