Last Updated:August 18, 2025, 15:53 IST
Bhumihar Caste New Demand: बिहार चुनाव से पहले भूमिहार जाति के लोगों ने राज्य के पहले मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह को भारत रत्न देने की मांग उठाई है. क्या एनडीए सरकार मोदी सरकार को यह प्रस्ताव भेजकर लालू यादव को ...और पढ़ें

पटना. बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह को लेकर भूमिहारों ने एक ऐसी मांग कर दी है, जिससे राज्य की राजनीति गर्माहट आ गई है. पटना के श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल में रविवार को ‘ब्रह्मर्षि स्वाभिमान सम्मलेन’ में बिहार केसरी डॉ. श्रीकृष्ण सिंह को भारत रत्न देने की मांग जोर-शोर से उठी है. इस मांग को किसी और ने नहीं नीतीश कुमार की ही पार्टी जेडीयू के एक विधायक डॉ. संजीव कुमार ने प्रमुखता से उठाया है. भूमिहार जाति से आने वाले श्रीकृष्ण सिंह को भारत रत्न देने की पुरानी मांग है. ऐसे में सवाल उठता है कि जो काम लालू यादव, राबड़ी और कांग्रेस राज में नहीं हो सका, क्या वह मांग एनडीए सरकार में पूरा होगा? क्या भूमिहारों के इस पुराने मांग को पीएम मोदी और सीएम नीतीश कुमार पूरा करेंगे?
श्रीकृष्ण सिंह बिहार के पहले मुख्यमंत्री थे, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आधुनिक बिहार के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनके कार्यकाल में जमींदारी प्रथा का उन्मूलन, बीआईटी सिंदरी, बेगूसराय रिफाइनरी, गंगा पर राजेंद्र पुल, देवघर के बाबा धाम में दलितों का प्रवेश और नेतरहाट जैसे शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना का श्रेय जाता है. डॉ. श्रीकृष्ण सिंह न सिर्फ बिहार के पहले मुख्यमंत्री थे, बल्कि स्वतंत्र भारत के उन गिने-चुने नेताओं में से एक रहे जिन्होंने विकास और औद्योगिकरण की नींव डाली. 1947 से 1961 तक वह बिहार के सीएम रहे. उनका शासन काल एक मजबूत प्रशासन और आधुनिक बिहार के निर्माण के लिए जाना जाता है.
नीतीश और भूमिहार वोट बैंक
भूमिहार समुदाय, जो बिहार में सवर्ण जातियों में से एक है और आर्थिक-सामाजिक रूप से प्रभावशाली रहा है, श्रीकृष्ण सिंह को अपने गौरव के प्रतीक के रूप में देखता है. बिहार में 3 से 5 प्रतिशत आबादी भूमिहारों की है. ऐसे में इस मांग के उठने से एक बार फिर से राज्य की राजनीति में गर्माहट आ गई है. जानकारों की राय में नीतीश सरकार और एनडीए गठबंधन के लिए यह मांग एक महत्वपूर्ण राजनीतिक अवसर हो सकता है. 2020 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू तीसरे स्थान पर रहना पड़ा था. भूमिहार वोटरों का एक हिस्सा लोजपा की ओर खिसक गया था, जिसने जदयू के खिलाफ उम्मीदवार उतारे थे. 2021 में नीतीश सरकार ने विधान परिषद में श्रीकृष्ण सिंह को भारत रत्न देने की सिफारिश की थी. लेकिन उसके बाद किसी तरह की कोई पहल नहीं हुई.
जेडीयू विधायक की मांग
इस बार इस मांग को ब्रह्मर्षि स्वाभिमान सम्मलेन के मंच से उठाकर जदयू विधायक ने इसे और बल प्रदान किया है. यह माना जा रहा है कि नीतीश सरकार अगर एक बार फिर से इस मांग को केंद्र सरकार के पास भेजती है तो इससे भूमिहार समुदाय को बड़ा संदेश जाएगा. ऐसे में यह मैसेज जाएगा कि एनडीए खासकर नीतीश कुमार उनके हितों और गौरव को महत्व देती है. साथ ही, बीजेपी के समर्थन से इस मांग को केंद्र तक पहुंचाने की कोशिश हो सकती है, क्योंकि बीजेपी भी बिहार में सवर्ण वोटरों को अपने पक्ष में रखना चाहती है.
लालू यादव और श्रीकृष्ण सिंह
लालू यादव के शासनकाल में श्रीकृष्ण सिंह को भारत रत्न देने की मांग कभी जोर नहीं पकड़ सकी. लालू की राजनीति मुख्य रूप से पिछड़े वर्गों और दलितों पर केंद्रित रही. लालू सवर्ण समुदाय विशेषकर भूमिहारों के साथ उनका रिश्ता तनावपूर्ण रहा. 2015 के विधानसभा चुनाव में लालू के सवर्ण-विरोधी बयानों ने इस तनाव को और बढ़ाया था. इसके विपरीत, नीतीश कुमार ने हमेशा संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की कोशिश की है, जिसमें सवर्ण और पिछड़े दोनों वर्गों को अपने साथ जोड़ने की रणनीति शामिल रही है.
केंद्र में एनडीए सरकार और बिहार में नीतीश कुमार की सरकार के लिए यह मांग एक अवसर और चुनौती दोनों है. केंद्र सरकार ने हाल के वर्षों में भारत रत्न को लेकर उदार रुख अपनाया है, जैसा कि कर्पूरी ठाकुर को इस सम्मान से नवाजने में देखा गया. श्रीकृष्ण सिंह को भारत रत्न देने से एनडीए को बिहार में सवर्ण वोटरों, खासकर भूमिहार समुदाय का समर्थन मजबूत करने में मदद मिल सकती है. भूमिहार समुदाय बीते कई सालों से बीजेपी की परंपरागत वोटबैंक रहा है. भूमिहारों के 80 प्रतिशत वोट एनडीए को जाता है. ऐसे में देखना है कि अगर नीतीश सरकार केंद्र को यह प्रस्ताव भेजती है तो वह इस मांग को कितनी गंभीरता से लेती है. यदि श्रीकृष्ण सिंह को भारत रत्न मिलता है, तो यह नीतीश सरकार की एक बड़ी उपलब्धि होगी, जो 2025 के विधानसभा चुनावों में उनके लिए लाभकारी हो सकती है.
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First Published :
August 18, 2025, 15:53 IST