नई दिल्ली/उन्नाव. उत्तर प्रदेश के चर्चित रेप कांडों में से एक उन्नाव रेप केस में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी, जिसमें बीजेपी की पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की उम्रकैद की सजा को रद्द कर दिया गया था. हाईकोर्ट के फैसले के बाद यूपी से लेकर दिल्ली तक बवाल मचा तो सीबीआई सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई. सोमवार यानी 29 दिसंबर 2015 को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस सूर्यकांत की अगुवाई वाली तीन जजों की बेंच ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी. इस फैसले के बाद पीड़िता रो पड़ी और उसने कहा कि वह दोषियों को फांसी के फंदे तक पहुंचाकर ही दम लेगी. आइए जानते हैं कि उन्नाव रेप कांड में 4 जून 2017 की उस रात से लेकर 29 दिसंबर 2025 के बीच कब, कहां और क्या-क्या घटना घटी और पक्ष और विपक्ष कोर्ट में क्या-क्या दलीलें दीं?
भारतीय राजनीति और न्यायपालिका के इतिहास में उन्नाव रेप कांड अब एक ऐसा अध्याय बन गया है, जिसने सत्ता के अहंकार और न्याय की लड़ाई के बीच के फासले को दुनिया के सामने ला दिया. पूर्व भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर आज जेल की सलाखों के पीछे उम्रकैद की सजा काट रहे हैं, लेकिन आज भी उस रात के घटनाक्रम और सेंगर के परिवार द्वारा किए गए दावों पर बहस होती है. खासकर सेंगर की बेटी ने जिस तरह से पिता का पक्ष रखा है, उससे लोगों के मन में सवाल उठ रहे हैं कि कोई शख्स कोसों दूर होने के बाद रेप कैसे कर सकता है? या फिर सेंगर की बेटी के दावों में दम नहीं है? आइए जानते हैं 4 जून 2017 की उस रात की पूरी कहानी और कोर्ट रूम में चली दलीलों का सार.
उस काली रात की टाइमिंग
पीड़िता के अनुसार, वह 4 जून 2017 की रात करीब 8:00 बजे अपने एक रिश्तेदार के साथ कुलदीप सिंह सेंगर के माखी स्थित आवास पर नौकरी की गुहार लगाने गई थी. आरोप है कि विधायक ने अपने रसूख का फायदा उठाते हुए लड़की को एक कमरे में बंधक बनाया और उसके साथ दुष्कर्म किया. पीड़िता उस समय नाबालिग थी. रात के करीब 9:00 से 10:00 बजे के बीच इस वारदात को अंजाम दिया गया. पीड़िता का कहना था कि सेंगर ने उसे धमकी दी कि अगर उसने किसी को बताया तो वह उसके परिवार को बर्बाद कर देगा.
कोर्ट में वकीलों की तीखी बहस
अभियोजन पक्ष (CBI) के तर्क- सीबीआई के वकीलों ने कोर्ट में पीड़िता के बयानों को सबसे मजबूत आधार बनाया. उन्होंने तर्क दिया कि एक 17 साल की लड़की इतने शक्तिशाली विधायक के खिलाफ झूठा आरोप लगाने का जोखिम नहीं उठाएगी. अभियोजन ने यह भी साबित किया कि सेंगर ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर एफआईआर दर्ज होने से रोकी और पीड़िता के पिता को झूठे मुकदमे में फंसाकर पुलिस कस्टडी में उनकी हत्या तक करवा दी.
बचाव पक्ष यानी सेंगर के वकील का तर्क
बचाव पक्ष के वकीलों ने ‘अलिबी’ (Alibi) का सहारा लिया. उन्होंने दावा किया कि वारदात के वक्त कुलदीप सेंगर अपने घर पर थे ही नहीं. बचाव पक्ष ने दलील दी कि सेंगर उस रात कानपुर में थे और एक कार्यक्रम में हिस्सा ले रहे थे. उन्होंने मोबाइल टावर लोकेशन और कॉल डिटेल रिकॉर्ड्स (CDR) पेश कर यह साबित करने की कोशिश की कि विधायक और पीड़िता के बीच कई किलोमीटर की दूरी थी.
सेंगर की बेटी के दावों में कितना दम?
कुलदीप सिंह सेंगर की बेटी ऐश्वर्या सेंगर ने सोशल मीडिया और मीडिया इंटरव्यूज में बार-बार अपने पिता को निर्दोष बताया. उनका मुख्य तर्क ‘डिजिटल एविडेंस’ था. ऐश्वर्या का दावा था कि गूगल मैप्स और मोबाइल लोकेशन के अनुसार, उनके पिता घटना के समय माखी गांव में मौजूद नहीं थे. उन्होंने आरोप लगाया कि यह एक राजनीतिक साजिश थी. पीड़िता के परिवार से उनकी पुरानी पारिवारिक लड़ाई थी. पीड़िता का चाचा भी जेल में है.
कोर्ट ने क्यों खारिज किए दावे?
सबसे पहले दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट ने सेंगर की बेटी और बचाव पक्ष के इन दावों को खारिज कर दिया. जज ने अपने फैसले में टिप्पणी की थी कि एक प्रभावशाली व्यक्ति अपना मोबाइल फोन किसी अन्य स्थान पर अपने सहयोगी के पास छोड़ सकता है ताकि ‘फेक अलिबी’ (झूठा साक्ष्य) बनाया जा सके. कोर्ट ने माना कि तकनीकी साक्ष्यों से ज्यादा पीड़िता की गवाही विश्वसनीय थी, क्योंकि उसने बिना किसी विचलन के पूरी घटना का विवरण दिया था. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि विधायक का रसूख इतना था कि वह मौके पर मौजूद न होने का भ्रम पैदा करने के लिए संसाधनों का उपयोग कर सकते थे.
सत्ता बनाम सत्य की लड़ाई
दिसंबर 2019 में कोर्ट ने कुलदीप सिंह सेंगर को धारा 376 और पोक्सो (POCSO) एक्ट के तहत दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई. कोर्ट ने माना कि सेंगर ने न केवल बलात्कार किया, बल्कि पीड़िता के पूरे परिवार को शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित करने का अपराधिक षड्यंत्र भी रचा. सेंगर की बेटी के दावों में जज्बात तो थे, लेकिन वे कानून की कसौटी पर टिक नहीं पाए.
4 जून 2017 से लेकर 29 दिसंबर 2025 तक इस केस में क्या-क्या हुआ?
4 जून 2017- नाबालिग लड़की ने उस समय उन्नाव से बीजेपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर पर बलात्कार का आरोप लगाया. पीड़िता का दावा कि वह नौकरी के लिए विधायक से मिलने गई थी.
11 जून 2017- रेप का आरोप लगाने के बाद पीड़िता अचानक गायब हो गई. परिवार ने थाने में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करवाई. बाद पीड़िता औरैया में मिली.
3 जुलाई 2017- नाबालिग पीड़िता ने सीएम योगी आदित्यनाथ से पत्र लिखकर कुलदीप सेंगर और उसे भाई पर रेप केस दर्ज करने की मांग की. यह चिट्ठी सार्वजनिक हुई, जिससे मीडिया में सनसनी बन गई. बाद एफआईआर दर्ज हुआ.
3 अप्रैल 2018- पीड़िता के पिता को अतुल सिंह और सहयोगियों ने बेरहमी से पीटा. पिटाई के बाद पुलिस ने उल्टे उसके खिलाफ ही मुकदमा दर्ज कर लिया.
8 अप्रैल को 2018- पीड़िता सीएम आवास के सामने आत्मदाह की कोशिश की. इस घटना के बाद यह मामला और तूल पकड़ लिया.
9 अप्रैल को 2018- पीड़िता के आत्मदाह की कोशिश के अगले ही दिन पिता का पुलिस हिरासत में मौत. इस घटना के बाद सीबीआई जांच की मांग तेज हुई.
10 अप्रैल 2018- इलहाबाद हाईकोर्ट ने मामले की गंभीरता देखते हुए जांच सीबीआई को सौंपी.
13 अप्रैल 2018- सीबीआई ने 13 अप्रैल 2018 को कुलदीप सिंह सेंगर को गिरफ्तार कर लिया.
28 जुलाई 2019- पीड़िता की कार को ट्रक ने टक्कर मारी. इस हादसे में पीड़िता की चाची और मौसी की मौत हो गई. पीड़िता खुद गंभीर रूप से घायल हो गई. इस मामले में भी सेंगर के खिलाफ केस दर्ज हुआ.
1 अगस्त 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने इस केस से जुड़े पांच मामलों को दिल्ली ट्रांसफर कर दिया. सेंगर को भी दिल्ली के तिहाड़ जेल लाया गया. कोर्ट ने निर्देश दिया कि 45 दिनों में सुनवाई पूरी की जाए. पीड़िता को इलाज के लिए एम्स शिफ्ट किया गया.
5 अगस्त 210 दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट में रोजाना शुरुवाई शुरू हुई.
11 सितंबर 2019- पीड़िता की हालत देखते हुए एम्स में ही अस्थायी अदालत लगाई गई. पीड़िता का बयान दर्ज किया गया.
16 दिसंबर 2019 को तीस हजारी कोर्ट ने कुलदीप सिंह सेंगर को दोषी करार दिया. सह आरोपी शशि सिंह बरी कर दिया गया.
20 दिसंबर 2019 को कोर्ट ने बीजेपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को उम्रकैद की सजा सुनाई. कोर्ट ने पोस्को एक्ट की धारा 6 के तहत दोषी ठहराया और 25 लाख का जुर्माना भी लगाया.
23 दिसंबर 2015- दिल्ली हाईकोर्ट ने सेंगर की उम्रकैद की सजा निलंबित करते हुए जमानत दे दी. हालांकि, वह तुरंत रिहा नहीं हो सका क्योंकि पीड़िता के पिता की हत्या के मामले में 10 साल की सजा अलग से चल रही थी.
29 दिसंबर 2025- सुप्रीम कोर्ट ने कुलदीप सिंह सेंगर की उम्रकैद की सजा बरकरार रखा. दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया.

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