Last Updated:August 21, 2025, 23:39 IST
फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जो-जो बातें कही हैं, उससे एक बात तो साफ है कि फ्रांस अमेरिका की दादागिरी बर्दाश्त करने को तैयार नहीं. वह भारत के साथ एक अलग दुनिया बनाना चाहता...और पढ़ें

फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से फोन पर हुई बातचीत के बाद एक बड़ा संकेत दिया है. मैक्रों ने साफ कहा कि भारत और फ्रांस मल्टीलैटरलिज्म यानी बहुपक्षवाद को मजबूती देंगे और इसके लिए 2026 में भारत की BRICS अध्यक्षता और फ्रांस की G7 अध्यक्षता को जोड़कर देखा जाएगा. यह बयान ऐसे वक्त में आया है जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप BRICS का नाम तक लेने से कतराते हैं और इसे लेकर अक्सर अपनी चिढ़ जाहिर करते हैं.
मैक्रों ने ट्वीट में कहा कि उन्होंने मोदी से यूक्रेन युद्ध, वैश्विक शांति, व्यापार और तकनीकी साझेदारी पर चर्चा की. दोनों देशों ने 2026 में नई दिल्ली में होने वाले AI Impact Summit को सफल बनाने पर भी सहमति जताई. लेकिन सबसे बड़ा राजनीतिक संदेश BRICS को लेकर आया, जहां फ्रांस ने खुलकर कहा कि वह भारत के साथ मिलकर बहुपक्षीय सहयोग को आगे बढ़ाना चाहता है.
ट्रंप की लाइन से अलग मैक्रों का रुख
ट्रंप बार-बार BRICS को बेकार और अप्रासंगिक बताकर खारिज करते रहे हैं. उनका मानना है कि यह मंच अमेरिकी हितों के खिलाफ है और इसे बढ़ावा देना चीन और रूस जैसी ताकतों को और मजबूत करता है. ऐसे में मैक्रों का मोदी संग बातचीत के बाद BRICS का नाम लेना, साफ तौर पर संकेत है कि यूरोप अब इस मंच को नजरअंदाज नहीं करना चाहता.
मल्टीलेटरल वर्ल्ड का संकेत
मैक्रों का यह बयान बताता है कि दुनिया अब एकध्रुवीय अमेरिकी दबदबे के बजाय मल्टीलेटरल (बहुपक्षीय) वर्ल्ड ऑर्डर की तरफ बढ़ रही है. जहां G7 जैसे पश्चिमी मंच और BRICS जैसे उभरते गठबंधन को एक साथ लेकर चलना जरूरी है. भारत और फ्रांस की साझेदारी यही दिखा रही है कि अब रणनीतिक संतुलन पश्चिम और दक्षिण दोनों ध्रुवों में बनेगा.
मैंने अभी-अभी प्रधानमंत्री श्री @NarendraModi जी से बातचीत की।
हमने यूक्रेन युद्ध पर अपनी स्थितियों का समन्वय किया ताकि एक न्यायपूर्ण और स्थायी शांति की ओर बढ़ सकें, यूक्रेन के लिए ठोस सुरक्षा गारंटि और यूरोप की सुरक्षा के साथ।
व्यापार संबंधी मुद्दों पर, हमने अपने वाणिज्यिक…
भारत के लिए बढ़ती अहमियत
2026 भारत के लिए अहम होगा, जब वह BRICS की अध्यक्षता करेगा. दूसरी तरफ, फ्रांस G7 की कमान संभालेगा. ऐसे में पेरिस और नई दिल्ली की जुगलबंदी न सिर्फ यूरोप और एशिया को जोड़ेगी बल्कि वैश्विक राजनीति में नए पावर बैलेंस की बुनियाद रख सकती है.
ब्रिक्स से क्यों चिढ़ता है अमेरिका
1. चीन और रूस का दबदबा: BRICS को ट्रंप इसलिए नापसंद करते हैं क्योंकि इसमें चीन और रूस दोनों हैं. ट्रंप इन्हें अमेरिका का सबसे बड़ा रणनीतिक और आर्थिक दुश्मन मानते हैं. BRICS के मज़बूत होने का मतलब सीधा-सीधा वॉशिंगटन की पकड़ ढीली होना है.
2. डॉलर को चुनौती: BRICS देश मिलकर डॉलर की जगह वैकल्पिक करेंसी सिस्टम खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं. ट्रंप बार-बार कहते रहे हैं कि डॉलर ही दुनिया की असली ताकत है. डॉलर को चुनौती मिलने का मतलब अमेरिका की सबसे बड़ी ताकत पर चोट है.
3. ‘अमेरिका फर्स्ट’ बनाम ‘मल्टीलेटरलिज्म’: ट्रंप का एजेंडा हमेशा रहा है अमेरिका फर्स्ट यानी अकेले दम पर फैसले लेना. जबकि BRICS बहुपक्षवाद की वकालत करता है। यही टकराव ट्रंप को खटकता है.
4. तेल-गैस और व्यापार पर असर: BRICS देश खासतौर पर रूस, सऊदी, ब्राजील मिलकर ऊर्जा बाज़ार पर बड़ा दबाव बना सकते हैं. इसका सीधा असर अमेरिकी शेल ऑयल इंडस्ट्री और उसके व्यापारिक हितों पर पड़ता है. ट्रंप इसे अमेरिका की अर्थव्यवस्था के लिए खतरा मानते हैं.
5. अमेरिका की ‘लीडरशिप’ को चुनौती: ट्रंप को लगता है कि BRICS अमेरिका की वैश्विक लीडरशिप को कमजोर करता है. अगर भारत, चीन, ब्राजील, रूस, सऊदी जैसे देश मिलकर नई धुरी बनाएंगे, तो अमेरिका की वन एंड ओनली सुपरपावर वाली छवि धुंधली होगी.
Mr. Gyanendra Kumar Mishra is associated with hindi.news18.com. working on home page. He has 20 yrs of rich experience in journalism. He Started his career with Amar Ujala then worked for 'Hindustan Times Group...और पढ़ें
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Location :
New Delhi,New Delhi,Delhi
First Published :
August 21, 2025, 23:39 IST