मुगल बादशाह भारतीय ज्योतिष में गहरा विश्वास करते थे. हालांकि ये बात अब तक कम सामने आई है जबकि इसका जिक्र हुमायूंनामा से लेकर अकबरनामा तक में था. अकबर से लेकर औरंगजेब तक हिंदू ज्योतिष में जबरदस्त विश्वास करते थे. अकबर तो हिंदू ज्योतिषियों की राय के बगैर कोई काम ही नहीं करता था. यहां तक उसने मुगल दरबार में हिंदू ज्योतिषी के लिए एक बड़ा पद ही बना दिया. बेशक औरंगजेब लोगों के सामने ये जाहिर करता था कि वो कट्टर मुस्लिम धार्मिक है लेकिन चुपचाप कई हिंदू ज्योतिषियों से ना केवल सलाह लेता था बल्कि उनकी बातों पर विश्वास भी था.
वैसे बाबरनामा और तुज़ुक-ए-जहांगीरी जैसी आत्मकथाओं, शाही पत्राचार के रिकॉर्ड और दरबारी दस्तावेज़ में मुगल दरबार में हिंदू ज्योतिषियों को मिलने वाले खास सम्मान और तवज्जो का जिक्र बिखरा पड़ा है. इसी को लेकर जाने माने पत्रकार एम जे अकबर ने एक किताब लिखी है, जिसका नाम है – आफ्टर मी, केयोस – एस्ट्रोलॉजी इन द मुगल एंपायर (After Me, Chaos: Astrology in the Mughal Empire)
दरअसल ज्योतिष पर मुगल शासकों का विश्वास इस्लाम से पहले की सांस्कृतिक जड़ों और चंगेज़ खान के वंश से जुड़ा था, जो देवी मां अलानकोआ के वंशज थे. अकबर ने ज्योतिक राय, यानी शाही ज्योतिषी का औपचारिक पद बनाया, यह पद एक सदी तक बनारस के ब्राह्मण पंडितों के पास रहा, जिन्हें सटीक भविष्यवाणी के इनाम के तौर पर उनके वज़न के बराबर सोना और चांदी दी जाती थी. 1542 में हुमायूं, जो उस समय एक भागा हुआ निराश भगोड़ा था, अपने बेटे अकबर की कुंडली पढ़ने के बाद निश्चित हो गया कि मुगल साम्राज्य फिर से जीवित होगा.
हुमायूं हर दिन अलग-अलग रंगों के कपड़े पहनता था, जैसा कि ग्रहों की स्थिति के अनुसार बताया जाता था. वैसे हिंदू ज्योतिष मुगल राजकाज का हिस्सा था.
ज्योतिषियों की सलाह पर किया युद्ध
अकबर के ज्योतिषी ने उसे 1586 में कश्मीर के शासक यूसुफ शाह चक के खिलाफ मार्च करने के लिए मना लिया, जबकि उसके कमांडरों ने सलाह दी थी कि पहाड़ों से सेना का गुज़रना विनाशकारी हो सकता है.
पंजाब में एक नया शहर बसाने की योजना थी, लेकिन ज्योतिषियों ने कहा कि कोई शुभ मुहूर्त नहीं है. अकबर ने योजना रद्द कर दी. दरबार में ज्योतिषी सुबह की पहली बैठक में मौजूद रहते थे, जहां वे तय करते थे कि सम्राट किससे मिलें या न मिलें. अकबर के दरबार में हिंदू, फारसी और यूनानी ज्योतिषी थे, लेकिन हिंदू ब्राह्मणों को विशेष स्थान था.
अकबर खासतौर पर हिंदू ज्योतिषियों पर बहुत विश्वास करता था. हर काम उनसे पूछकर ही करता था. उसने दरबार में उनके लिए बड़ा पद ज्योतिष राजा सृजित किया.
जहांगीर ने इस परंपरा को और मजबूत किया
अकबर के पुत्र जहांगीर ने ज्योतिष की परंपरा को और मजबूत किया. वे धूमकेतु और ग्रहण जैसी घटनाओं को गंभीरता से लेते थे. जहांगीर ने राशि चक्र की थीम वाले सिक्के जारी किए.
जहांगीर अपने पोते के साथ यात्रा पर थे. ज्योतिषियों ने चेतावनी दी कि बच्चे को खतरा है. यात्रा के दौरान बच्चा खिड़की से गिर गया लेकिन नीचे गद्दे होने से बच गया. ज्योतिषियों ने पहले ही ऐसा होने की बात कही थी. एक और रोचक किस्सा है – जहांगीर की पोती के जन्म पर ज्योतिषियों ने कहा कि उसे देखना अशुभ है. जहांगीर ने कई साल तक पोती से दूरी बनाए रखी.
ज्योतिष राजा पद दिया गया
दरबार में ज्योतिषियों की अहमियत ऐसी थी कि वे राजकीय नियुक्तियों और सैन्य अभियानों में सलाह देते थे. जहांगीर की आत्मकथा ‘तुजुक-ए-जहांगीरी’ में ज्योतिष का जिक्र मिलता है, जहां वे हिंदू ज्योतिषियों को ‘ज्योतिष राजा’ कहते थे. यह दिखाता है कि मुगल दरबार में हिंदू विद्वान ज्योतिषी न केवल सलाहकार थे, बल्कि सम्मानित सदस्य भी.
फतेहपुर सीकरी के भव्य हॉल में ब्राह्मण ज्योतिषी ग्रहों की गणना करते हुए, और अकबर उनकी बातों पर अमल करते हुए
शाहजहां ने तब 12 दिन इंतजार किया
ताजमहल बनाने वाला शाहजहां भी ज्योतिष के प्रति समर्पित था. 1628 में जब वह सिंहासन पर बैठा तो आगरा में प्रवेश करने से पहले 12 दिन इंतजार किया क्योंकि ज्योतिषियों ने शुभ मुहूर्त नहीं बताया. उनके पुत्रों के जन्म पर ज्योतिषियों ने भविष्यवाणियां कीं – जैसे दारा शिकोह के जन्म पर ग्रहण और धूमकेतु को अशुभ माना गया, जो बाद में उनकी हार से जुड़ा.
शाहजहां के दरबार में ज्योतिषी दैनिक जीवन का हिस्सा थे. वे युद्ध शुरू करने, शहरों में प्रवेश करने और यहां तक कि मेहमानों से मिलने के समय तय करते थे. हिंदू ब्राह्मणों को विशेष महत्व दिया जाता था, जो मुगल साम्राज्य की असुरक्षा को दूर करने में मदद करते थे. शाहजहां ने ज्योतिष को विज्ञान की तरह माना, और उसके फैसलों में इसका प्रभाव स्पष्ट था. औरंगजेब के जन्म से पहले जहांगीर ने एक बंदूक-आकार का धूमकेतु देखा, जिसे ज्योतिषियों ने अशुभ बताया – जो बाद की घटनाओं से साबित हुआ.
जाने माने पत्रकार एमजे अकबर अपनी किताब “आफ्टर मी, केयोस – एस्ट्रोलॉजी इन द मुगल एंपायर” के साथ, जो मुगल दौर में भारतीय ज्योतिष पर लिखी गई है. जिसमें ये बताया गया है कि मुगल शहंशाह किस कदर हिंदू ज्योतिषियों पर विश्वास करते थे और उनकी सलाह पर अमल करते थे. (फोटो सौजन्य – Bahrisons Booksellers)
औरंगजेब भी लेता था सलाह
यहां तक कि औरंगज़ेब ने भी ज्योतिषियों के मामले में अपनी धार्मिकता को एक तरफ रख दिया. औरंगजेब को सबसे धार्मिक मुगल सम्राट माना जाता है, लेकिन वो भी ज्योतिष से अछूता नहीं था. एम.जे. अकबर की किताब ‘आफ्टर मी, केयोस’ में बतदाया गया है कि औरंगजेब ने कई ज्योतिषियों पर भरोसा किया. उन्होंने दो बार राज्याभिषेक किया – पहला 1658 में और दूसरा 1659 में – दोनों ही ज्योतिषियों के बताए समय पर. उसके दरबार में भी ज्योतिषी पहली बैठक में सलाह देते थे कि किससे मिलना है.
77 साल की उम्र में औरंगज़ेब ने अपने बेटे बहादुर शाह से कहा कि उसके तूफानी जीवन की हर एक घटना की भविष्यवाणी उसके जन्म के समय बनाई गई कुंडली में की गई थी, जिसे एक हिंदू ज्योतिषी ने बनाया था. हर मुगल राजकुमार दिन के कामों के लिए शुभ समय तय करने के लिए हिंदू ज्योतिषियों से सलाह लेता था. औरंगजेब युद्ध शुरू करने, शहरों में प्रवेश करने और मेहमानों से मिलने में ज्योतिषियों की सलाह मानता था. सैन्य अभियानों में उन्हें साथ लेकर जाता था.
ये ऐतिहासिक सच्चाई है कि अकबर से लेकर औरंगजेब तक मुगल सम्राटों ने हिंदू ज्योतिषियों पर अटूट विश्वास किया. उनकी सलाह पर महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए. दरबार में उन्हें विशेष सम्मान दिया. अमूमन मुगल बादशाहों के जब भी कोई बेटा या बेटी होता था तो हिंदू ज्योतिष के तौरतरीकों से उनकी जन्मपत्री यानि हारोस्कोप बनवाया जाता था.
नीलकंठ दैवज्ञ – अकबर के दरबार के ‘ज्योतिष राजा’
16वीं शताब्दी में नीलकंठ दैवज्ञ बनारस के सबसे प्रमुख ज्योतिषी थे, जिन्हें अकबर ने ‘ज्योतिष राजा’ का पद दिया. वे अकबर के मंत्री टोडरमल के संरक्षण में काशी आए. नीलकंठ ने ताजिक नीलकंठी नामक ग्रंथ लिखा, जो ताजिक ज्योतिष (फारसी-इस्लामी प्रभाव वाली) पर आधारित था. मुगल दरबार में बहुत लोकप्रिय हुआ.
अकबर के दरबार में नीलकंठ और उनके भाई राम दैवज्ञ कुंडलियां बनाते थे. नीलकंठ को बादशाह की कुंडली और महत्वपूर्ण निर्णयों में सलाह देने का विशेष अधिकार था. उनके कामों को टोडरानंद (एक विश्वकोश) में शामिल किया गया, जो अकबर के मंत्री टोडरमल ने संकलित करवाया. नीलकंठ के वंशज भी दरबार में रहे, जो बनारस की ज्योतिष परंपरा की मुगल दरबार में गहरी पैठ दिखाता है.
कृष्ण दैवज्ञ – जहांगीर के खास ज्योतिष
16-17वीं शताब्दी में कृष्ण दैवज्ञ बनारस के प्रसिद्ध ज्योतिषी-गणितज्ञ थे. वह जहांगीर के दरबार में थे. कृष्ण ने बीजगणित पर टीका लिखी और ज्योतिष ग्रंथों की रचना की.
जहांगीर के जन्म के समय बनारस के ज्योतिषियों ने कुंडली बनाई थी. एक मुगल चित्रकला में जहांगीर के जन्म दृश्य दिखाया गया है, जहां चार ज्योतिषी नवजात की कुंडली बना रहे हैं – इनमें बनारसी ब्राह्मण शामिल थे. कृष्ण दैवज्ञ को जहांगीर से सम्मान और पुरस्कार मिले. उनके भतीजे मुनीश्वर बाद में शाहजहां के दरबार में आए. एक घटना में जहांगीर के पोते के साथ यात्रा पर ज्योतिषी ने खतरा बताया और वाकई बच्चा गिर गया लेकिन बच गया – यह भविष्यवाणी बनारसी ज्योतिषियों की थी. मुगल काल में बनारस ज्योतिष का केंद्र था. कृष्ण दैवज्ञ के भतीजे मुनीश्वर शाहजहां के दरबार में थे. ग्रहण संबंधी ग्रंथ लिखे.
बनारस के ब्राह्मण ज्योतिषी और औरंगजेब
औरंगजेब सबसे धार्मिक मुगल सम्राट माने जाते हैं. वह भी बनारसी ज्योतिषियों पर निर्भर थे. दरबार में मुख्य ज्योतिषी का पद 100 साल से अधिक समय तक बनारस के ब्राह्मणों के पास रहा. हर सुबह दो ज्योतिषी बादशाह को बताते थे कि किससे मिलना शुभ है या नहीं.
1665 में एक बड़े धूमकेतु को देखकर ज्योतिषियों की सलाह पर औरंगजेब ने मांस त्याग दिया. सादा जीवन अपनाया. उनके एक हिंदू ज्योतिषी ने भविष्यवाणी की कि उनकी मौत के बाद साम्राज्य में अराजकता आएगी – जो सच साबित हुई.

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